• मोदीजी के मन की बात

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर अपने मन की बात के साथ देश की जनता से मुखातिब थे। हमेशा की तरह इस बार भी उन्होंने वही कहा, जो उनके मन में था या मन मुताबिक था या मन को भला लगने वाला था। वे प्रधानमंत्री के रूप में मितभाषी हैं और राजनीति से इतर मुद्दों पर इधर मृदुभाषी भी हो गए हैं। ...

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर अपने मन की बात के साथ देश की जनता से मुखातिब थे। हमेशा की तरह इस बार भी उन्होंने वही कहा, जो उनके मन में था या मन मुताबिक था या मन को भला लगने वाला था। वे प्रधानमंत्री के रूप में मितभाषी हैं और राजनीति से इतर मुद्दों पर इधर मृदुभाषी भी हो गए हैं। जब वे बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि बस देश उनकी अभी बोली जा रही बातों को ही सुने और उस पर अमल करे तो हमारी सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। क्योंकि वे मन की बात करते हुए कभी भी गंभीर, दूरगामी परिणामों वाली समस्याओं पर जाते ही नहींहैं। तेजी का, इंस्टेंट का जमाना है, सेल्फी का समय है, तो वे बखूबी जानते हैं कि अभी इस वक्त का लाभ कैसे उठाया जाए। आगे भी जाने न तू, (पीछे का तो सब जानते हैं) जो भी है, बस यही एक पल है। देश की युवा पीढ़ी भी कमोबेश इसी जीवनशैली को पसंद करती है। इसलिए उसे मोदीजी की बातें, उनके ट्वीट, सेल्फी, सोशल स्टेट्स सब अच्छे लगते हैं। अपनी इस इंस्टेंट राजनीति में नरेन्द्र मोदी ने मन की बात जितने भी बार की, सबमें ऐसे-ऐसे मुद्दों को उठाया जो समाज में हमेशा चिंता का विषय रहे हैं। ये चिंताएं तभी दूर हो सकती हैं जब उनकी जड़ों तक पहुंचा जाए। लेकिन मोदी के मन की बात में केवल ऊपरी तौर पर जिक्र होता है, जैसे चाय की गुमटी पर बैठे लोग आस-पड़ोस से लेकर कश्मीर और ईरान, सीरिया, अमेरिका सबकी चर्चा कर अपने-अपने रास्ते चल देते हैं। एक बार नरेन्द्र मोदी ने विद्यार्थियों को परीक्षा पर नसीहत दी थी। सफलता और असफलता में संयम बरतने की बात कही थी। आज इस परीक्षा प्रणाली, शैक्षणिक व्यवस्था और समाज की मानसिकता के कारण व्यापमं जैसे खतरनाक घोटाले हो रहे हैं, उस पर एक वाक्य बोलने या चंद शब्दों का ट्वीट करने का जोखिम माननीय प्रधानमंत्री नहींउठाते। वे जानते हैं कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। पिछली बार मन की बात में उन्होंने स्त्री सुरक्षा का जिक्र किया। विगत दिनों दिल्ली में सरेआम एक लड़की को चाकुओं से मारा गया, दिल्ली पुलिस केेंद्र के अधीन नहींराज्य सरकार के पास रहनी चाहिए, इसे लेकर बड़ा विवाद चल रहा है, लेकिन मोदी जी इस पर भी चुप रहे। इस बार मन की बात में उन्होंने जय जवान, जय किसान के अंदाज में की। मानसून है, मानसून सत्र है, कारगिल विजय दिवस है, यानी मौका भी है, दस्तूर भी। तो नरेन्द्र मोदी ने दलहन, तिलहन की पैदावार बढऩे पर किसानों को बधाई दी, लेकिन किसान आत्महत्या पर उनके मंत्री ने जो अनर्गल बयान दिया उस पर अफसोस तक व्यक्त नहींकिया गया। सूखा पीडि़त किसान कैसे ऊंट के मुंह में जीरे की तरह मुआवजा पा रहे हैं, यह तकलीफ उन्हें नजर नहींआई। फसल अच्छी होगी तो क्या महंगाई कम होगी, इस बारे में वे कुछ बोल ही नहींसकते। कारगिल विजय दिवस पर शहीदों को नमन तो नरेन्द्र मोदी करते हैं, लेकिन लंबे समय से वन रैंक, वन पेंशन के लिए आंदोलनरत सैन्यकर्मी उन्हें नजर नहींआते। 26 जुलाई की मन की बात में सड़क सुरक्षा को नरेन्द्र मोदी देश की सबसे बड़ी और गंभीर समस्या बनाने में कामयाब रहे। उनके समर्थकों को यह कहने का मौका मिला कि इससे पहले किस प्रधानमंत्री ने सड़क दुर्घटनाओं पर इतनी चिंता दर्शाई थी। बात सही है कि हर घंटे सड़क पर अगर एक जान दुर्घटना के कारण जाए तो यह बहुत बड़ी समस्या है। लेकिन इसका हल नसीहत से या दुर्घटना के बाद मदद के वादे से नहींनिकल सकता। क्या मोदी सरकार सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए सचमुच कठोर कदम उठा सकती है? क्या वह वाहन उद्योग के दबाव को ताक पर रखकर सार्वजनिक यातायात मजबूत करने का साहस दिखा सकती है? क्या सड़क, फ्लाईओवर आदि निर्माण कार्यों में होने वाले भ्रष्टाचार को रोककर उच्चकोटि के निर्माण करवा सकती है? क्या हिंदुस्तान की जनता को सचमुच नियम से चलना सिखा सकती है? क्या सड़क पर वीआईपी भोंपू बंद करवाकर सबको एक जैसे नियम से चलवा सकती है? क्या अवैध निर्माणों को तुड़वाने की हिम्मत सरकार में है? ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिनके जवाब देना प्रधानमंत्री जी को भारी पड़ सकता है। उन्होंने सड़क दुर्घटना की दुखती रग तो छेड़ दी है, उस पर वादों का फाहा भी रखा है, लेकिन ये जख्म इससे भरने वाले नहींहैं। खुले में शौच, उत्तर पूर्व राज्यों का विकास, विज्ञान में प्रगति ऐसे कुछ और मुद्दों पर चंद सतही बातें प्रधानमंत्री ने की। उनके मन की बात के समर्थक यह बार-बार कहते हैं कि वे देश की जनता द्वारा भेजे गए सुझावों और शिकायतों पर गौर करते हैं, और उन्हींका जिक्र अपने संबोधन में करते हैं। लेकिन समर्थक यह नहींबताते कि क्या नरेन्द्र मोदी आलोचना के पत्रों को भी अपने कार्यक्रम में स्थान देते हैं या फिर उन्हें दबा दिया जाता है?

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