• सनसनीखेज खुलासा : शिवराज ने व्यापमं प्रमुख को बनाया वित्त आयोग सदस्य

    नई दिल्ली ! व्यापमं घोटाले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को लेकर एक आरटीआई में बेहद सनसनीखेज खुलासा सामने आया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने व्यापमं के पूर्व अध्यक्ष मलय राय को मध्य प्रदेश राज्य वित्त आयोग का सदस्य नियुक्त करने का आदेश बेहद जल्दबाजी में टेलीफोन पर दिया था। सूचना का अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं में इस बात का खुलासा हुआ है।...

    बेहद जल्दबाजी में टेलीफोन पर दिया था आदेश

    नई दिल्ली !   व्यापमं घोटाले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को लेकर एक आरटीआई में बेहद सनसनीखेज खुलासा सामने आया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने व्यापमं के पूर्व अध्यक्ष मलय राय को मध्य प्रदेश राज्य वित्त आयोग का सदस्य नियुक्त करने का आदेश बेहद जल्दबाजी में टेलीफोन पर दिया था। सूचना का अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं में इस बात का खुलासा हुआ है।

    राय साल 2009-10 के दौरान मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) के अध्यक्ष थे और उन्हें सदस्य नियुक्त करने का आदेश (6 जून, 2014) तब दिया गया था, जब व्यापमं घोटाले की जांच जारी थी।

    शिवराज साल 2014 में उस वक्त विदेश दौरे पर थे, जब उन्होंने मलय की नियुक्ति के लिए राज्य वित्त आयोग को आपात कॉल की थी।

    यह खुलासा व्हिस्लब्लोअर अजय दूबे को राज्य वित्त विभाग से आरटीआई के तहत दिए गए जवाब से हुआ है। आरटीआई जवाब के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने नियुक्ति के प्रस्ताव को टेलीफोन पर मंजूरी दी, जो विदेश दौरे से उनके लौटने के बाद औपचारिक पुष्टि का विषय था।

    राज्य वित्त विभाग के आदेश की एक प्रति को आरटीआई जवाब के साथ प्रदान किया गया है। जवाब में यह भी कहा गया है कि वित्त आयोग का कार्यकाल 30 जून, 2015 तक होगा।

    दूबे ने आईएएनएस से कहा कि इस संबंध में वह सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर करेंगे।

    उन्होंने कहा, "टेलीफोन पर आदेश जारी करने की क्या जल्दबाजी थी? हमारा तर्क यह है कि जब परीक्षा समिति खुद जांच के अधीन थी, फिर व्यापमं के पूर्व अध्यक्ष की नियुक्ति सरकार वित्त आयोग में कैसे कर सकती है।" उन्होंने कहा कि समिति के किसी भी अधिकारी को क्लिन चिट नहीं मिली है।


    दूबे ने यह भी कहा कि साल 2008 तथा 2009 में व्यापमं प्रश्न पत्र लीक के बाद सरकार ने साल 2010 में उत्तर पुस्तिकाओं की स्कैनिंग की निगरानी के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) तथा अकादमिक क्षेत्र के सेवानिवृत्त अधिकारियों सहित केंद्रीय प्रेक्षकों की नियुक्ति की थी।

    उन्होंने कहा, "उत्तर पुस्तिकाओं की स्कैनिंग की निगरानी के लिए सरकार साल 2010 से लेकर अबतक लगभग 500 केंद्रीय प्रेक्षकों को नियुक्त कर चुकी है, लेकिन अनियमितताएं अब भी हैं। पेशेवरों की नियुक्ति का घोटाले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।"

    व्यापमं राज्य में सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति तथा मेडिकल पाठ्यक्रमों में नामांकन के लिए परीक्षा लेने का काम करता है।

    यूं तो व्यापमं सालों से विवादित रहा है, लेकिन साल 2013 में यह तब प्रकाश में आया, जब साल 2009 की मेडिकल परीक्षा में दूसरे के बदले परीक्षा देने के आरोप में 20 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

    इसके बाद, अगस्त 2013 में मामले की जांच के लिए स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के गठन के बाद राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, नौकरशाहों, व्यापमं के अधिकारियों, रैकेटियरों, मध्यस्थों, उम्मीदवारों तथा उनके माता-पिता को गिरफ्तार किया गया।

    घोटाले से जुड़े दो हजार से अधिक लोगों को अबतक गिरफ्तार किया जा चुका है। रपटों के मुताबिक, यह नामांकन व भर्ती घोटाला 20 हजार करोड़ रुपये का हो सकता है, जिसमें मध्य प्रदेश के राजनीतिज्ञ, वरिष्ठ अधिकारी व कारोबारी सहित लगभग 30 हजार लोग शामिल हो सकते हैं।

    व्यापमं से जुड़े अबतक 45 लोगों की अस्वाभाविक या रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है।

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