आत्मसंघर्ष के दौर में नक्सल क्रांति
दंतेवाड़ा ! दक्षिण बस्तर में नक्सलियों के बीच जारी अंतद्र्वंद्व ने पुलिस को आगे बढऩे की नई राह दिखाई है। स्थानीय नक्सलियों के साथ बाहरी नक्सली जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं वह नक्सलियों के बीच पड़ रही दरार का नतीजा है।
अब ऐसा भी माना जा रहा है कि स्थानीय नक्सली बड़े पैमाने पर नक्सलवाद की राह छोड़ शांति की राह पर बढ़ेंगे। दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले के गादीरास के जंगलों में तेलंगाना के नक्सलियों द्वारा चार स्थानीय नक्सलियों को जन अदालत में मौत की सजा दिए जाने के बाद स्थानीय नक्सली बेहद खफा हैं। नक्सल आंदोलन में यह दौर पहली बार आया है जब कथित क्रांतिकारी स्वयं आत्म संघर्ष की स्थिति में है। चार नक्सलियों की हत्या के बाद मजबूत समझे जाने वाले नक्सलियों के दरभा डिवीजन में फुट पड़ती दिख रही है। पुलिस ने आत्मसमर्पण नीति का प्रचार किया, पाम्पलेट बांटे, समर्पित नक्सलियों के पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था की, प्रोत्साहन राशि बांटी। मिलने वाली सुविधाओं का प्रचार आत्मसमर्पित नक्सलियों की जुबानी भी कराई। इसकी वजह से बड़ी संख्या में स्थानीय नक्सली समर्पण के लिए व्याकुल हुए, इससे बाहरी नक्सली घबरा गए। खासकर तेलंगाना के नक्सली जो स्थानीय नक्सलियों पर राज करते हुए उन्हें अपने कथित आंदोलन के लिए इस्तेमाल करते हैं। समर्पण के लिए लगातार संपर्क में रहने वाले इन नक्सलियों को मौत की सजा देकर बाहरी नक्सलियों ने यह जताने की भी कोशिश की कि स्थानीय नक्सली उनके शोषण से मुक्त होने के बारे में सोंच भी नहीं सकते, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। लगातार समर्पण से नक्सलियों का कैडर बिखरने लगा है और आंदोलन में बिखराव जैसी स्थिति भी दिखने लगी हैं। ऐसी सूचनाएं भी आने लगी हैं कि बाहरी नक्सलियों को अब स्थानीय नक्सलियों पर विश्वास नहीं रहा।