• डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहा भारत

    नई दिल्ली/भोपाल ! भारत डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहा है और तकनीक हर क्षेत्र में बदलाव ला रही है। अब तो स्कूल से लेकर कॉलेज तक की किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हो रही हैं। यानी ई-बुक किताबों का नया संसार है। बड़े शहरों से लेकर सुदूर इलाकों में रहने वाले विद्यार्थियों के लिए अपने पाठ्यक्रम के मुताबिक मनचाही पुस्तक हासिल करना एक बड़ी समस्या रही है...

    नई दिल्ली/भोपाल !  भारत डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहा है और तकनीक हर क्षेत्र में बदलाव ला रही है। अब तो स्कूल से लेकर कॉलेज तक की किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हो रही हैं। यानी ई-बुक किताबों का नया संसार है।  बड़े शहरों से लेकर सुदूर इलाकों में रहने वाले विद्यार्थियों के लिए अपने पाठ्यक्रम के मुताबिक मनचाही पुस्तक हासिल करना एक बड़ी समस्या रही है, क्योंकि उन्हें उसी लेखक की पुस्तक से अपनी पढ़ाई करनी होती है, जो उनके नजदीक स्थित किताब विक्रेता के पास सुलभ हो। इतना ही नहीं कागज की बढ़ती कीमतों के साथ किताबें भी महंगी हो चली हैं। पढ़ाई के बदलते तरीके और महंगी होती किताबों के बीच देश में ई-बुक्स का बाजार जोर पकड़ रहा है। इसकी वजह भी है, देश में लगभग 20 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल लैपटॉप, कंप्यूटर के जरिए करते हैं, तो 10 करोड़ सेलफोन से। एक तरफ जहां इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर किताबों की अनुपलब्धता व कीमतों में इजाफा हो रहा है। इसी के चलते ई-बुक्स के बाजार को संभावनाओं के पर लग गए हैं।  ई-बुक्स के क्षेत्र में काम करने वाली कॉपी किताब डॉट कॉम के मुख्य तकनीकी अधिकारी अमित श्रीवास्तव ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के कोरबा के रहने वाले हैं, उनकी प्रारंभिक शिक्षा वहीं हुई, उसके बाद बीएचयू बनारस से आईआईटी की। तब उन्होंने इस बात को महसूस किया कि किताब खरीदना और उसे पाना कितना कठिन है। यही कारण रहा कि उन्होंने ई-बुक्स शुरू करने की ठानी। श्रीवास्तव कहते हैं कि आज वे नौवीं से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट तक की ई-बुक्स उपलब्ध करा रहे हैं। उनका दावा है कि यह किताबें बाजार में मिलने वाली किताबों के मुकाबले दाम में आधी कीमत की होती हैं। वर्तमान में वे लगभग 60 प्रकाशकों की ई-बुक्स उपलब्ध करा रहे हैं। ये ई-बुक्स देश के लगभग हर हिस्से के पाठ्यक्रम से 50 से 70 फीसदी तक मेल खाती हैं। ई-बुक्स जहां कंप्यूटर पर इंटरनेट की जरिए उपलब्ध है, उसके लिए डिवाइस बनाई है। वहीं टैबलेट व मोबाइल के लिए एप तैयार किया गया है। भारत विज्ञान सभा के डॉ. एसआर आजाद का हालांकि मानना है कि बच्चों को ई-बुक्स उपलब्ध कराने से पहले इस पर मंथन होना चाहिए। तकनीक दोधारी तलवार के समान है, ई-बुक्स कितनी उम्र के बच्चों को उपलब्ध कराई जाए यह तय हो। उन्हें इस बात का डर भी है कि ई-बुक्स बच्चों के नैसर्गिक विकास में बाधक बन सकती है। कंप्यूटर के जानकार आशीष शर्मा ई-बुक्स को उन विद्यार्थियों के लिए तो ठीक मानते हैं, जिनके पास कंप्यूटर या ऐसा सेलफोन है जिस पर इंटरनेट की सुविधा हो, साथ ही कहते हैं कि उन विद्यार्थियों के तो किताबें ही सहारा रहेंगी जो अपनी माली हालत के चलते मुश्किल से स्कूल या कॉलेज तक पहुंच पाते हैं।


     

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