• कर्मचारियों का हक देने से मना नहीं कर सकती सरकार

    नयी दिल्ली ! उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले मे कहा है कि अतिरिक्त आर्थिक बोझ का बहाना बनाकर नियोक्ता अपने कर्मचारियों का वाजिब हक देने से मना नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा है कि बेदाग रहते हुए काम करने वाले कर्मचारी को पेंशन से महरूम नहीं किया जा सकता।...

    नयी दिल्ली  !  उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले मे कहा है कि अतिरिक्त आर्थिक बोझ का बहाना बनाकर नियोक्ता अपने कर्मचारियों का वाजिब हक देने से मना नहीं कर सकता। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा है कि बेदाग रहते हुए काम करने वाले कर्मचारी को पेंशन से महरूम नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह टिप्पणी राजस्थान के करीब 250 सेवानिवृत्त कॉलेज शिक्षकों के हक में फैसला सुनाते हुए की। खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति मिश्रा द्वारा लिखे गए इस फैसले में कहा गया है कि बेदाग रहते हुए अगर कोई व्यक्ति काम करता है तो उसे पेंशन से महरूम नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने 23 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा है कि नियोक्ता को अपने कर्मचारियों के प्रति सही रवैया अपनाना चाहिए क्योंकि कर्मचारी को पेंशन देना उसके प्रति कोई एहसान नहीं है।राजस्थान सरकार ने याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त शिक्षकों को संशोधित वेतनमान के तहत पेंशन देने से इनकार कर दिया था, जबकि वे इसकी पात्रता रखते थे। शीर्ष अदालत ने राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी। खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा कि तीन महीने के भीतर सभी सेवानिवृत्त शिक्षकों को संशोधित पेंशन दी जाए। देरी होने की स्थिति में सरकार को नौ फीसदी ब्याज सहित यह रकम चुकानी पड़ेगी। पीठ ने राज्य सरकार की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता सेवानिवृत्त शिक्षकों को यह लाभ देने से सरकार पर बहुत अधिक वित्तीय बोझ पड़ेगा। राज्य सरकार ने राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। सरकार की दलील थी कि पेंशन के कारण सरकार पर अधिक आर्थिक बोझ पड़ेगा, लेकिन कर्मचारियों के वकीलों ने दलील दी थी कि अब मात्र 200 से 250 कर्मचारी जिंदा बचे हैं और वित्तीय बोझ के आधार पर कर्मचारियों के वाजिब हक मारे नहीं जा सकते।


     

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