राजभवन व सरकार के बीच रिश्तों में तल्खी का अंदेशा बढ़ा
लखनऊ ! विधान परिषद सदस्यों (एमएलसी) के मनोनयन को लेकर पिछले सवा महीने से भी ज्यादा समय से सरकार और राजभवन के बीच चल रही रस्साकसी फिलहाल अजीबोगरीब मोड़ पर पहुंच गई है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से विधान परिषद सदस्यों के 9 नामों में से राज्यपाल राम नाईक द्वारा महज चार को ही सदस्य बनाने की उलझी गुत्थी आज भी लगभग अनसुलझी ही रह गई।
उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नौ सदस्यों को नामित करने के लिए सरकार की ओर से राजभवन को भेजी गई सूची में से राज्यपाल रामनाईक आज महज चार सदस्यों को ही नामित करने पर रजामंद हुए हैं। बाकी पांच के बारे में मिली शिकायतें सरकार को अग्रसारित करते हुए जांच रिपोर्ट मांग ली है। जाहिर है कि ऐसा करके राज्यपाल ने भले ही कानूनी आधार और अपने अधिकार का इस्तेमाल किया है लेकिन इससे पार्टीजनों और जनता के बीच सरकार की किरकिरी हो रही है। जनता के बीच ‘जितने मुंह उतनी बातें’ वाली स्थिति बन रही है। राज्य सरकार के लिए राजभवन का यह फैसला किसी मुसीबत से कम नहीं माना जा रहा है। वजह भी साफ है। पार्टीजनों के बीच सरकार के इकबाल पर सवाल खड़े होने लगे हैं। इससे एक मुश्किल और खड़ी दिखने लगी है और वह है राजभवन और सरकार के बीच रिश्तों की। मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों अब तक एक दूसरे से अच्छे रिश्तों की दुहाई देते रहे हैं। राज्यपाल राम नाईक ने एमएलसी के लिए जिन नामों की मंजूरी दी है उनमें रामवृक्ष सिंह यादव, एसआरएस यादव, जितेन्द्र यादव व लीलावती कुशवाहा शामिल हैं। संजय सेठ, कमलेश पाठक, रणविजय सिंह, अब्दुल सरफराज खां और राजपाल कश्यप के बारे सरकार की ओर से भेजी गई टिप्पणी या रिपोर्ट से वह संतुष्ट नहीं हैं, लिहाजा इनके बारे में मिली शिकायतों की जांच कराने को कहा है। अब जिनको एमएलसी बनाने के लिए नाम भेजे गए थे, नाम रुकने से समर्थकों के बीच उनकी मिट्टी पलीद हो ही रही है। सरकार के लिए भी मुश्किलों भरा माहौल है कि आखिर वह राज्यपाल को संतुष्ट कैसे करे। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनके मिल चुके हैं। किसी ने इस बात की अधिकारिक पुष्टि तो नहीं की कि उक्त नेताओं की राज्यपाल से मुलाकात में एमएलसी वाली सूची पर चर्चा हुई है लेकिन राजनीति में मेल-मुलाकात के जो मायने निकाले जाते हैं, उनके आधार पर व्यापक तौर पर यह माना गया कि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने राज्यपाल राम नाईक इस मसले पर चर्चा जरूर की होगी। अब जिन नामों को मंजूरी मिली है, उससे साफ है कि परिणाम अधकचरा ही रहा। हो सकता है कि किन्हीं हालात में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव या सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव राज्यपाल से अपने संबंधों को लेकर कोई टीका टिप्पणी न करें, पर पार्टीजनों और जनता के बीच जो संदेश जाना था, चला गया। यह भी संभव है कि समाजवादी पार्टी का कोई न कोई नेता इस पर राजभवन से सरकार के संबंधों पर सवाल उठाए। सपा के कैबिनेट मंत्री आजम खां, सांसद नरेश अग्रवाल और कुछ दूसरे नेता राज्यपाल के कामकाज और बयानों पर पहले भी सवाल उठा चुके हैं।
अब एमएलसी मसले पर राज्यपाल के फैसले से जाहिर हो रहा है कि सरकार और राजभवन के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। दरअसल, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज दोपहर राजभवन पहुंचे थे। राजभवन के एक प्रवक्ता के मुताबिक मुख्यमंत्री राज्यपाल के बुलावे पर आए थे। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को चार नामों को मंजूर करने के अपने फैसले से अवगत कराया।
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से शेष पांच लोगों की ओर से दिए गए शपथपत्रों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी है। राज्यपाल ने इन पांचों के बारे में प्राप्त शिकायती पत्रों को मुख्यमंत्री को भेजते हुए आरोपों की जांच कराकर आख्या देने को कहा है। इनके बारे विभिन्न माध्यमों से ऐसी सूचनाएं मिलीं थी जिनका उल्लेख इन लोगों ने अपने शपथ पत्र में नहीं किया था। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 171 (5) में वर्णित कुल पांच क्षेत्रों, साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन व समाज सेवा में से सहकारिता आंदोलन व समाज सेवा के अलावा शेष तीन क्षेत्रों साहित्य, विज्ञान व कला में भी विशेष ज्ञान अथवा अनुभव रखने वाले व्यक्तियों के नामों की संस्तुति किए जाने की दृष्टि से संविधान के अनुच्छेद 171 (ई) सपठित अनुच्छेद 171 (5) का शब्द: व उसकी भावना का ध्यान रखा जाए। अब देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है।