दुष्कर्म मामले पर सर्वोच्च न्यायालय का बड़ा फैसला
निचली अदालत के फैसले को दी चुनौती
महिला का शरीर उसका मंदिर : न्यायालय
निचली अदालत का फैसला भारी भूल
नई दिल्ली ! सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दुष्कर्म के मामले में विवाह पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने निचली अदालत के एक फैसले को चुनौती देने वाली मध्य प्रदेश सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की, जिसमें दुष्कर्मी को विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लेने पर मामले से बरी कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि दुष्कर्म के आरोपी तथा पीडि़ता के बीच विवाह के नाम पर समझौता वास्तव में महिलाओं के सम्मान से समझौता है। साथ ही यह इस तरह के समझौते कराने वाले पक्ष की असंवेदनशीलता का भी परिचायक है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर वह उदार रवैया नहीं अपना सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि इस बारे में निचली अदालत का फैसला उसकी भारी भूल व असंवेदनशीलता को दर्शाता है, जिसने विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिए जाने के बाद दुष्कर्मी को मामले से बरी कर दिया।
क्या था मामला
2008 में जब पीडि़ता सिर्फ 14 साल की थी, तब गांव के ही एक आदमी वी. मोहन ने उसे कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिलाकर पिलाया और बाद में उसके साथ रेप किया। लडक़ी के अभिभावक पर उसका अबॉर्शन कराने के लिए काफी दबाव डाला गया, मारपीट भी की गई। साल 2014 में निचली अदालत ने आरोपी को सात साल की सजा और दो लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई।
समझौता महिला के सम्मान के खिलाफ
जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने कहा कि रेप के मामलों में आरोपी और पीडि़ता के बीच समझौता कराना महिला के सम्मान के खिलाफ है। इस प्रकार के समझौतों में जो लोग मध्यस्थता करते हैं, उनमें संवेदनशीलता की कमी होती है। अदालत ने कहा कि इन मुद्दों पर नरम रुख नहीं अपनाया जा सकता।