• क्षेत्रीय संतुलन अगली बार

    करीब डेढ़ साल के इंतजार के बाद जिन्हें निगम-मंडलों में नियुक्तियां मिलीं, नि:संदेह वे सत्ता और संगठन में अपनी भूमिका के लिए नजर में थे। इनमें चार विधायक भी हैं, जो अपनी राजनैतिक पृष्ठभूमि और कद के लिए जाने जाते रहे हैं।...

    करीब डेढ़ साल के इंतजार के बाद जिन्हें निगम-मंडलों में नियुक्तियां मिलीं, नि:संदेह वे सत्ता और संगठन में अपनी भूमिका के लिए नजर में थे। इनमें चार विधायक भी हैं, जो अपनी राजनैतिक पृष्ठभूमि और कद के लिए जाने जाते रहे हैं। ये मंत्रिमंडल में जगह देख रहे थे पर उन्हें अब निगम-मण्डलों के अध्यक्ष के रुप में मिलने वाली लालबत्ती से ही संतोष करना पड़ेगा। मंत्रिमंडल विस्तार में मौका न मिलने पर कुछ ने तो सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। इन नियुक्तियों से ऐसे सभी लोगों को साधने की कोशिश की गई है जो अपने-अपने क्षेत्र में सत्ता व संगठन में महत्व रखते हैं। सत्ता में आने के बाद पार्टी के लिए काम करने वालों की महत्वाकांक्षा बढऩा स्वाभाविक है, लेकिन उनका ख्याल तो रखना पड़ता र्है, जिनकी भूमिका भविष्य की राजनीति के लिए जरुरी है। निगम-मंडलों में नियुक्तियों के पहले चरण में इन्हीं लोगों को मौका मिला है और पार्टी में गुटीय संतुलन बनाने की कोशिश की है। क्षेत्रीय संतुलन की दृष्टि से सरगुजा संभाग को अवसर मिलना चाहिए था, लेकिन यहां के लोगों को नियुक्तियों के अगले चरण का इंतजार करना पड़ेगा। अविभाजित सरगुजा ने भाजपा को वर्ष 2003 में सत्ता दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। आठ में से सात सीटें भाजपा को मिली थीं। 2008 के चुनावों में यह घटकर चार हो गई और पिछले चुनावों में यहां से सिर्फ एक सीट पर ही पार्टी जीत पाई। इस सीट से रामसेवक पैकरा पार्टी के विधायक और सरकार में गृहमंत्री हैं। इनके अलावा यहां से सत्ता या संगठन में महत्वपूर्ण पद पर कोई नहीं है। बिलासपुर को भी इन नियुक्तियों में काफी उम्मीद थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सरगुजा और बिलासपुर संभाग को विशेष महत्व न मिलने का कारण भी है। सत्ता और संगठन में बहुधु्रवीय स्थिति नहीं है। जिस तरह सरगुजा इकलौते राजनेता के प्रभाव वाला जिला बन कर रह गया, कुछ-कुछ वैसी ही स्थिति बिलासपुर में बनी रह गई। यही कारण है कि इन नियुक्तियों में राजधानी और आसपास को ही अधिक महत्व मिला है। इन नियुक्तियों के बाद पार्टी की राजनीति में क्षेत्रीय स्तर पर नए स्वर उठ सकतेे हैं। अभी करीब दो दर्जन नियुक्तियां और होंगी और पहले चरण में सिर्फ 16 निगम-मण्डलों में नियुक्तियां करके यह परखने का मौका छोड दिया गया है कि कहां से और कैसी प्रतिक्रिया आती है। सारे पदों पर एक साथ भी नियुक्तियां की जा सकती थी पर ऐसे में यह देख पाना संभव नहीं होता कि कौन कहां खड़ा है। राजनीति में सफलता का एक सूत्र यह भी है कि हर दशा-दिशा को पहले ताड़ लिया जाए।

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