• यह इंसाफ नहीं है

    बिहार में नालंदा जिले में एक गांव के निजी स्कूल के निदेशक देवेन्द्र प्रसाद की सरेआम लाठी से पीट-पीट कर हत्या की घटना अत्यंत दुखद, शर्मनाक व चिंतनीय है। ...

    बिहार में नालंदा जिले में एक गांव के निजी स्कूल के निदेशक देवेन्द्र प्रसाद की सरेआम लाठी से पीट-पीट कर हत्या की घटना अत्यंत दुखद, शर्मनाक व चिंतनीय है। कानून-व्यवस्था एक अरसे से बिहार में सवालों के घेरे में रही है। नियमों को न मानना, कानून तोडऩे में बहादुरी समझना, बाहुबल से अपना दबदबा कायम करना, सत्ता का रौब झाडऩा, इन सबमें कुछ गलत न देखते हुए, इन्हें रोजाना की जिंदगी का हिस्सा मान लिया गया है। कानून के छोटे-छोटे उल्लंघनों की अनदेखी का ही शायद नतीजा है कि गुस्साई भीड़ अपना गुस्सा उतारते हुए एक व्यक्ति की जान ले लेती है और लोग इस हत्या का तमाशा देखते हैं। नालंदा का नाम विश्व भर में उच्च शिक्षा के प्राचीनतम केेंद्र के रूप में जाना जाता रहा है। इस बार नालंदा में शिक्षा के क्षेत्र में काला धब्बा लगा है। दो दिन पहले देवेन्द्र पब्लिक स्कूल के चार छात्र हॉस्टल से सुबह बाहर निकले, इनमें से दो तो वापस लौट आए और दो गायब रहे। जब उनकी खोजबीन की गई, तो उनकी लाश नहर में मिली। मृत बच्चों के चेहरे पर चोट के निशान भी थे। इस कांड में तीन अलग-अलग प्राथमिकियां दर्ज कराई गईं। नालंदा के थानेदार सुनील कुमार निर्झर ने सात को नामजद व 15-16 सौ अज्ञात लोगों के विरुद्ध एफआईआर करायी, वहीं दूसरी ओर निदेशक की पत्नी प्रमिला सिन्हा ने नीरपुर के ही एक निजी स्कूल के संचालक समेत कुल छह लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी करायी और मृतक छात्रों के परिजनों ने स्कूल की प्रिंसिपल प्रमिला सिन्हा, निदेशक देवेन्द्र प्रसाद सिन्हा व चालक के खिलाफ एफआईआर करायी है, जिसमें हत्या के बाद दोनों बच्चों को खाई में फेंकने का आरोप लगाया गया है। जाहिर है मामला काफी उलझा हुआ है और इसकी निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है। इस घटना के बाद थानेदार सुनील कुमार निर्झर को एसपी ने निलंबित कर दिया। उधर आक्रोशित ग्रामीणों ने निदेशक को पीटकर मार डाला। खबरों के मुताबिक स्कूल के संचालक ने भीड़ को और उकसाने का काम किया। दो बच्चों की मौत और उसके बाद निदेशक की हत्या, निश्चित तौर पर पुलिस प्रशासन की घोर लापरवाही और निष्क्रियता का नतीजा है। हॉस्टल से बच्चों के गायब होने और फिर संदिग्ध अवस्था में उनके शव मिलने से नाराजगी भडक़ना स्वाभाविक है। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहींहै कि कानून अपने हाथों में लेकर बिना असली दोषी की शिनाख्त हुए किसी के प्राण लिए जाएं। लोगों को अगर निदेशक पर शक था कि बच्चों की हत्या के पीछे उसका कोई हाथ है, तो वे उसे पुलिस के हवाले कर सकते थे। क्या उन्हें यह यकीन नहींथा कि पुलिस उनकी शिकायत पर निष्पक्ष जांच करेगी और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ जांच करने में किसी दबाव में नहींआएगी? अगर ऐसा है तो पुलिस-प्रशासन से जनता का भरोसा उठना चिंतनीय पहलू है। दूसरी बात यह भी हो सकती है कि गांववालों के आक्रोशित होने का फायदा स्वार्थी तत्वों ने उठाया हो, और उन्हें निदेशक की हत्या करने के लिए उकसाया गया हो। ऐसा करने से पुलिस और सरकार की छवि खराब होती है यह संदेश भी जाता है कि बिहार में जंगलराज है। बिहार में शीघ्र ही चुनाव होने वाले हैं। एक ओर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद का गठबंधन है, तो दूसरी ओर भाजपा है और उसके साथ कई मौकापरस्त राजनेता अपने-अपने दलों के साथ उपस्थित हैं। बिहार में सत्ता हासिल करने के लिए सभी दल एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, मुमकिन है ऐसी घटनाओं के बहाने राजनीति का कोई घिनौना खेल खेला जा रहा हो। जनता को अब पहले से अधिक सावधान रहने और समझदारी बरतने की आवश्यकता है। फिलहाल नीतीश कुमार के सामने चुनौती है कि वह घटना को तार्किक अंजाम तक कैसे पहुंचाती है और लोगों को कैसे भरोसा दिलाती है कि उनके मुख्यमंत्री रहते बिहार में सुशासन रहेगा।

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