सरकारी शिक्षा व्यवस्था हमेशा सवालों के घेरे में रही है। शिक्षा के स्तर में गुणात्मक सुधार की आवश्यकता पर जोर दिए जाने के बाद भी कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं लाया जा सका। शहरी क्षेत्रों के कुछ सरकारी स्कूल अपवाद हो सकते हैं पर ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में पांचवीं, आठवीं कक्षा के बच्चे ठीक से हिन्दी की किताब तक नहीं पढ़ पाते। गणित और अंग्रेजी में इन स्कूलों के प्राय: बच्चे इतने कमजोर पाए जा रहे हैं कि शिक्षकीय कुशलता पर ही संदेह होने लगता है। तो क्या सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं लाया जा सकता? इस प्रश्न का उत्तर सरकार के उस फैसले में भी खोजा जा सकता है, जिससे स्कूलों के युक्तियुक्तकरण करते हुए ऐसे स्कूलोंं को बन्द करने को कह दिया गया है, जहां बच्चों की दर्ज संख्या के अनुपात में 10 फीसदी भी नियमित उपस्थिति नहीं होती। ऐसे करीब 3000 स्कूल बंद किए जा रहे हैं। कोई यदि थोड़ा भी सक्षम है तो वह अपने बच्चों को निजी स्कूल में ही भेजना चाहता है। निजी स्कूलों में प्रवेश के लिए कतारें लगी हुई है और सरकारी स्कूलों को बंद करने की नौबत है। यह इसी का संकेत है कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था विफल हो रही है या कहें कि हो चुकी है। युक्तियुक्तकरण के बाद बन्द किए जा रहे स्कूलों के बच्चों व शिक्षकों को नजदीक के स्कूल भेजा जा रहा है। इस फैसले का विरोध भी हो रहा है। जांजगीर जिले में एक कन्या स्कूल को बंद करके बालक स्कूल से संलग्न किए जाने का छात्राओं ने ही विरोध शुरू कर दिया है। युक्तियुक्तकरण की इस कार्रवाई ने ऐसे स्कूलों के खोले जाने के औचित्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। स्कूल जाने में दूरी बाधक न बने, इस सोच के साथ नए स्कूल खोले गए थे। न्यूनतम 25 बच्चे भी दाखिला लेने के लिए मिल जाएं तो नया स्कूल खोला जा सकता था। इस तरह के नए स्कूल ज्यादातर शहर से लगे हुए इलाकों में खुले। बच्चों के सर्वे का काम शिक्षकों ने ही किया और ऐसे स्कूलों में अपनी पदस्थापना भी करा ली। यह देखने की कोशिश भी किसी ने नहीं की कि आखिर इन स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति क्या है? अब तक शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण ही होता आ रहा था, पहली बार स्कूलों के बारे में भी यह निर्णय लिया गया। ऐसे करीब तीन हजार स्कूलों को बंद किए जाने का अर्थ समझा जा सकता है। उंगलियों पर गिने जाने वाले बच्चों की उपस्थिति वाले इन स्कूलों में पदस्थ शिक्षकों की संख्या कितनी थी, यह जानना और भी दिलचस्प हो सकता है। सरकारी शिक्षा व्यवस्था को प्रभावशाली बनाना है तो स्कूलों के साथ शिक्षकों को भी सुधार कार्यक्रम से जोडऩा होगा। शिक्षकों में यह जिम्मेदारी उठाने के लिए कहना होगा कि बच्चों को नियमित उपस्थिति के लिए प्रेरित करंे और अध्यापन का स्तर इतना सुधारे कि पांचवी, आठवीं के बच्चे हिन्दी की किताब तो पढ़ सकें। जिस दिन यह व्यवस्था हो जाएगी किसी स्कूल को बंद करने की जरुरत नहीं पड़ेगी।