• पेड़ों का मजहब

    सुनने में यह अजीब लगता है, कि पेड़ भी हिन्दू, मुसलमान या ईसाई हो सकते हैं। लेकिन वृहन्मुम्बई नगर पालिक निगम के एक पार्षद महोदय तो ऐसा ही मानते हैं। हनुमंत राजे नामक इन पार्षद- जो म.न.पा. के वृक्ष प्राधिकरण में शिवसेना की ओर से मनोनीत सदस्य हैं, ने पिछले दिनों मांग की है...

    सुनने में यह अजीब लगता है, कि पेड़ भी हिन्दू, मुसलमान या ईसाई हो सकते हैं। लेकिन वृहन्मुम्बई नगर पालिक निगम के एक पार्षद महोदय तो ऐसा ही मानते हैं। हनुमंत राजे नामक इन पार्षद- जो म.न.पा. के वृक्ष प्राधिकरण में शिवसेना की ओर से मनोनीत सदस्य हैं, ने पिछले दिनों मांग की है, कि मुंबई में सिर्फ वही पेड़ लगाये जायें, जिनकी हिन्दू धर्म में पूजा की जाती है। अशोक, इमली, कदम्ब, देवदार, पलाश, चन्दन, बेल और अर्जुन जैसे पेड़ों के नाम भी उन्होंने यह कहते हुए सुझाये हैं, कि इन पेड़ों में औषधीय गुण होते हैं, जिनसे वातावरण शुद्ध रहता है और उनके काटे जाने की सम्भावना कम होती है...श्री राजे खुद एक उद्यानिकी विशेषज्ञ हैं, इसलिए तकनीकी रूप से उनकी बात सही हो सकती है। लेकिन उन्हें निश्चित ही यह भी मालूम होगा, कि तकरीबन हर एक पेड़ की अपनी कोई न कोई खासियत कारूर होती है, उसकी पूजा हो या न हो। पेड़ों को किसी धर्म विशेष से जोडऩे की उनकी बात अगर मान ली जाए, तो इस महानगरी में लगे 16 लाख से भी ज्यादा पेड़ों में से छांट-छांट कर क्या उन पेड़ों को गिरा देना होगा, जो हिन्दुओं के लिए ‘‘पूजनीय’’ नहीं हैं? और क्या गैर हिन्दुओं के लिए पेड़ों की कोई अलग फेहरिस्त बनाई जायेगी या उनसे यह कहा जाएगा, कि वे ‘‘हिन्दू’’ पेड़ों की छाँव में न खड़े हों, उनमें लगने वाले फल-फूल न तोड़ें, न ही उनकी खुशबू लें। कल को क्या परिंदों के लिए भी हुक्म होगा, कि वे किस पेड़ पर बैठें और किस पर घोंसला बनायें?ये तमाम सवाल उठाने की कारूरत इसलिए पड़ रही है, क्योंकि केंद्र में जबसे भाजपा की सरकार बनी है, हिंदुत्ववादियों को लगने लगा है, कि उन्हें कुछ भी कहने और करने की छूट मिल गई है। वे अपनी हर जायज-नाजायज मांग पूरी करवा लेना चाहते हैं, जैसे जनादेश उन्हें इसी बात के लिए मिला हो ‘‘हिन्दू’’ पेड़ों की वकालत करने वाले पार्षद महोदय को क्या जानते नहीं हैं, कि इस देश में तो अनादि काल से ही पेड़ों को भगवान माना जाता रहा है और पेड़ मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या गिरिजाघर देखकर नहीं उगते? एक पेड़ की जितनी अहमियत किसी हिन्दू के लिए है, उतनी ही किसी मुसलमान या ईसाई के लिए भी है। पीपल जैसे किसी खास पेड़ को लेकर उनके विश्वास या अन्धविश्वास भी एक जैसे हो सकते हैं। यदि वास्तव में श्री राजे को मुंबई के पर्यावरण की चिंता होती, तो वे अपना ज्ञान शहर के उन अनगिनत ‘‘वर्षा वृक्षों’’ को बचाने में लगाते, जो पिछले बरस रहस्यमय ढंग से सूखकर बेजान हो गए। उन्होंने और कॉलोनी के उन ढाई हजार पेड़ों की भी फिक्र की होती, जिनकी बलि मुंबई में मेट्रो रेल के तीसरे चरण के लिए दी जाने वाली है। या कम से कम उन 60 पेड़ों की, जिन्हें कुर्ला रेल यार्ड के विस्तार के लिए काटे जाने की इजाजत मध्य रेल ने म.न.पा. से मांगी है।यूँ भी, मुंबई जैसे महानगर में- जहां हर प्रान्त, भाषा, धर्म, जाति और पेशे के लोग बसते हों, वहां किसी धर्म या वर्ग विशेष के वोट बटोर कर कोई पार्षद, महापौर, विधायक या सांसद भले ही बन जाए, वह बाकी बचे लोगों की अनदेखी कर अपनी मनमानी नहीं कर सकता। बेहतर होता, कि श्री राजे मुंबई की पड़ोसी ठाणे नगर निगम से ही सबक ले लेते, जिसका वृक्ष प्राधिकरण एवं उद्यान विभाग लोगों को प्रकृति और पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने के लिए हर साल पौध तथा पुष्प प्रदर्शनी आयोजित करता है। यह प्रदर्शनी पूरे तीन दिनों तक चलती है। वे दिल्ली सरकार के वन विभाग के उस कानून का भी अध्ययन कर लेते, जिसमें कोई पेड़ काटने से पहले मकसद बताने और उसके हिसाब से अच्छी खासी रकम सुरक्षा राशि जमा के रूप में करवाने का प्रावधान है। संभवत: ऐसे प्रावधान वृहन्मुम्बई नगर पालिक निगम के वृक्ष प्राधिकरण या महाराष्ट्र के वन विभाग में भी हों। लेकिन श्री राजे जैसे लोग अपनी आँखों पर चढ़ी धर्म की पट्टी हटाकर यह सब देखें-समझें तो सही।कहना न होगा, कि हनुमंत राजे की मांग उतनी ही हास्यास्पद है, जितनी गाय को हिन्दू और भैंस को मुसलमान मानने की किाद (मजे की बात है, कि उत्तर प्रदेश पुलिस पिछले दिनों एक भाजपा विधायक की चोरी गई भैंस ढूँढने के लिए वैसे ही परेशान रही, जैसे वह आकाम खान की भैंस को ढूँढने के लिए थी) दरअसल, धर्म के आधार पर पेड़ लगाने की मांग साम्प्रदायिकता की उस विष बेल को बढ़ाने की ही एक और कोशिश है, जिसने समाज के एक बड़े हिस्से को जकड़ रखा है। इस बेल को न केवल फैलने से रोकना होगा, बल्कि जितनी जल्दी हो सके, जड़ से उखाड़ फेंकना होगा।

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