• भारत के मानव मिशन में लग सकते हैं 10 से 15 साल

    नई दिल्ली । विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी प्रगति करने तथा अंतरिक्ष में ऊंची छलांग लगाने के बावजूद अंतरिक्ष में मानव भेजने के भारत के मिशन को मूर्त रूप लेने में अभी 10 से 15 साल का समय लग सकता है। यह कहना है अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के जान्सन स्पेस सेंटर में पिछले 50 वर्षों से कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.कुमार कृष्ण का जिन्होंने भारत के चंद्रयान और मंगल यान की गहन समीक्षा की है।...

    नई दिल्ली । विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी प्रगति करने तथा अंतरिक्ष में ऊंची छलांग लगाने के बावजूद अंतरिक्ष में मानव भेजने के भारत के मिशन को मूर्त रूप लेने में अभी 10 से 15 साल का समय लग सकता है। यह कहना है अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के जान्सन स्पेस सेंटर में पिछले 50 वर्षों से कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.कुमार कृष्ण का जिन्होंने भारत के चंद्रयान और मंगल यान की गहन समीक्षा की है।उनका कहना है कि मानव को अंतरिक्ष में भेजने की प्रौद्योगिकी के मामले में अमरीका, रूस और चीन से भारतीय बहुत पीछे है और इसके लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) तथा इस दिशा में काम कर रही वैज्ञानिक एजेंसियों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की जरुरत है।  उन्होंने  कहा कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत ने पिछले लंबे समय में निश्चित रूप से काफी काम किया है लेकिन यदि अंतरिक्ष विज्ञान की बात करें तो इससे जुड़ी संस्थाओं को आर्थिक रूप से और सक्षम बनाने की जरूरत है। कुमार ने कहा, मैंने चंद्रयान और मंगलयान मिशन के बारे में काफी गहन समीक्षा की है और यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। इन मिशनों की सफलता ने देश को अंतरिक्ष विज्ञान के मामले में अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर ला दिया है लेकिन इसरो और इस दिशा में काम कर रही एजेंसियों को और अधिक धन उपलब्ध कराने की जरूरत है। भारत ने 2008 में चंद्रयान मिशन को लांच किया था जबकि नवंबर 2013 को मंगलयान मिशन का आगाज हुआ था।   भारत के अंतरिक्ष में मानव भेजने के मिशन के बारे में नासा वैज्ञानिक ने कहा, भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में बहुत काम किया है लेकिन अब भी चीन, अमेरिका और रूस की तरह मानव मिशन को मूर्त रूप देने के लिए जरूरी तकनीक पर ज्यादा काम नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, भारत मानव को अंतरिक्ष में भेजने के लिये न वैसी तकनीक हासिल कर पाया है और न ही उतना बजट उसके पास है। जरूरी है कि भारत सरकार अंतरिक्ष विज्ञान के लिए अधिक पैसा मुहैया कराए।  मंगल यान की सफलता के बाद इसरो ने मानव मिशन पर काम करना शुरु कर दिया है। अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की योजना ने गत दिसंबर में एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार कर लिया जब अभी तक के सबसे वजनी और नवीनतम पीढ़ी के रॉकेट जीएसएलवी-मार्क 3 का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। यह रॉकेट अपने साथ प्रायोगिक क्रू मॉड्यूल भी लेकर गया जो मानवरहित था। करीब 155 करोड़ रुपए की लागत वाला यह मिशन इसरो की अंतरिक्ष में यात्रियों को भेजने की योजना का हिस्सा था। यह अपने साथ 3.7 टन वजनी क्रू मॉड्यूल भी लेकर गया , जिसे क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री-एंट्री एक्सपेरिमेंट नाम दिया गया है. इसके जरिये अंतरिक्ष से धरती पर लौटने की तकनीक का परीक्षण किया जा रहा है। इस क्रू मॉड्यूल का आकार एक छोटे से शयनकक्ष के बराबर है, जिसमें दो से तीन व्यक्ति आ सकते हैं। उड़ान के पांच मिनट बाद रॉकेट 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर 3.7 टन वजनी क्रू माड्यूल से अलग हो गया। उसके बाद क्रू माड्यूल पृथ्वी की तरफ काफी तेज गति से गिरा। पृथ्वी से 80 किलोमीटर की ऊंचाई तक इसकी गति का नियंत्रण किया गया। माड्यूल अंडमान एवं निकोबार द्वीप के निकट बंगाल की खाड़ी में गिरा जहां से इसे नौसेना के पोत के जरिए निकाला गया।   डा. कुमार कृष्ण ने भारत में विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास की गति बहुत धीमी होने पर भी ङ्क्षचता जताई। उन्होंने कहा कि अमेरिका की तुलना में भारत ने मानव जीवन को सुगम बनाने जैसे कि बिजली उत्पादन, रेलवे, कूड़ा प्रबंधन, पर्यावरण, आटो मोबाइल,खाद्य प्रसंस्करण और सौर उर्जा के क्षेत्र में कोई खास काम नहीं किया है। इसलिये देश् के विकास के लिये संपूर्ण रूप से विज्ञान के क्षेत्र में काम किये जाने की आवश्यकता है।

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