• ..आधा देश : पूरा प्रश्न

    सीरिया ! सीरिया और इराक के करीब आधे हिस्से पर आईएस का कब्जा हो जाना विश्व समुदाय के लिए एक बड़ा प्रश्न है। अमेरिका अपने को विश्व की एकमात्र महाशक्ति बनाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देता। फर्क यह है कि जहां उसके सीधे हित जुड़े होते हैं, वहा वह तत्काल प्रभावी कदम उठाता है, लेकिन अन्य मामलों में ऐसी तेजी दिखाई नहीं देती। मसलन, इस्लामिक स्टेट (आईएस) के खिलाफ कार्रवाई में उसने देर की है। हो सकता है यदि आज जॉर्जबुश वहां के राष्ट्रपति होते तो शायद आईएस पर हमलों में तेजी आती। इसके लिए वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और नाटो का भी सहयोग लेते। इस्लामी आतंकवाद विरोधी अभियान शुरू कराने का श्रेय बुश को ही था। तब कहा गया था जब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा, अभियान जारी रहेगा।...

    सीरिया ! सीरिया और इराक के करीब आधे हिस्से पर आईएस का कब्जा हो जाना विश्व समुदाय के लिए एक बड़ा प्रश्न है। अमेरिका अपने को विश्व की एकमात्र महाशक्ति बनाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देता। फर्क यह है कि जहां उसके सीधे हित जुड़े होते हैं, वहा वह तत्काल प्रभावी कदम उठाता है, लेकिन अन्य मामलों में ऐसी तेजी दिखाई नहीं देती। मसलन, इस्लामिक स्टेट (आईएस) के खिलाफ कार्रवाई में उसने देर की है। हो सकता है यदि आज जॉर्जबुश वहां के राष्ट्रपति होते तो शायद आईएस पर हमलों में तेजी आती। इसके लिए वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और नाटो का भी सहयोग लेते। इस्लामी आतंकवाद विरोधी अभियान शुरू कराने का श्रेय बुश को ही था। तब कहा गया था जब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा, अभियान जारी रहेगा। लेकिन बराक ओबामा आतंकविरोधी अभियान को प्रभावी ढंग से आगे नहीं बढ़ा सके। यही कारण है कि जब पश्चिम एशिया में आईएस ने जड़ें जमानी शुरू की थी, तब अमेरिका और सुरक्षा परिषद, नाटो आदि ने कोई कदम नहीं उठाए। यदि शुरुआती दौर में उसकी कमर तोड़ने का प्रयास होता, तो मानवता के लिए चुनौती बने इस संगठन को इतना आगे बढ़ने, संसाधन एकत्र करने और ताकतवर होने का मौका नहीं मिलता। कुछ दिन पहले आईएस ने इराकी शहर रमादी पर कब्जा जमाया था। इसके बाद उसने अगले पड़ाव के रूप में सीरिया के ऐतिहासिक शहर पलमीरा पर अधिकार कर लिया। इन दो देशों के दो शहरों पर आईएस के कब्जे का चिंताजनक पहलू कहीं ज्यादा है। सीरिया में असद सरकार की सेना ने आईएस को रोकने का प्रयास किया। लेकिन वह पराजित हुई। वह अपने नागरिकों को आईएस के जुल्मों से बचाने में असमर्थ साबित हुई। आईएस ने हजारों की संख्या में सीरियाई नागरिकों को मौत के घाट उतारा, उनकी सेना कुछ नहीं कर सकी। यही दशा इराक में थी। सरकारी सेना अपने नागरिकों को आईएस के आतंक से बचा नहीं सकी। गौरतलब है कि इन दोनों शहरों में जिन हजारों लोगों को आईएस ने मौत के घाट उतारा, वे सभी मुसलमान थे। इन कब्जों से जाहिर हुआ कि आईएस के सामने कई देशों की सेनाएं कमजोर साबित हो रही है। इससे आईएस की ताकत का अंदाज लगाया जा सकता है। वह जितने शहर जीत रहा है, उतनी ही ताकत बढ़ रही है। उतने ही तेल कुएं उसके कब्जे में आ रहे हैं। सीरिया के जिस शहर पर कब्जा किया वह यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल है। आईएस इसे नष्ट कर रहा है। राष्ट्रीय सेनाओं की आईएस के सामने कमजोरी के अलावा यह भी साबित हुआ कि वह अपने मकसद पर आगे बढ़ा है। वह कई देशों को मिलाकर इस्लामी स्टेट बनाना चाहता है। इराक, सीरिया पर हो रही फतह से उसका मंसूबा पूरा हो रहा है। इसके बाद अमेरिका, सुरक्षा परिषद, नाटो सभी को अपनी कार्रवाई तेज करनी होगी, क्योंकि प्रश्न यह है कि आईएस ऐसे ही बढ़ता रहा, तो मानवता का क्या होगा। विश्व समुदाय को इस प्रश्न का समाधान करना होगा।

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