देश में मात्र पांच सौ के करीब बचींगंगा की वाहक समझी जाती है डाल्फिन इटावा ! डाल्फिन को भले ही राष्ट्रीय जलीय जीव का दर्जा मिला हो लेकिन देश में इसकी संख्या निराश करने वाली है। गंगा का वाहक समझे जाने वाले इस जलचर की संख्या पूरे विश्व में अब दो हजार ही रह गई है जबकि भारत में इसकी संख्या मात्र चार सौ से कुछ ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार चम्बल में 78,यमुना में 47,बेतवा में पांच,केन में 10,सोन नदी में नौ,गंगा में 35 तथा घाघरा में 295 हैं। इसतरह कुल 479 डाल्फिन ही भारत में बची हैं।खासकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा रेखा की चीरती विश्व की सबसे स्वच्छ नदियों में शुमार की जाने वाली चम्बल नदी में डाल्फिन का अस्तित्व खतरे में है। इस जलचर को बचाने की पहल करते हुए वर्ष 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन ङ्क्षसह ने इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था। इसके पीछे यह मंशा थी कि डाल्फिन के अस्तित्व को बचाया जा सके, लेकिन मौजूदा हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता की डाल्फिन को संकट से बचाया जा सकेगा। नदियों के प्रदूषण ने इसके जीवन का सबसे बड़ा खतरा पैदा किया है। इसके अलावा शिकारियों ने भी इस पर गिद्ध ²ष्टि जमा रखी है। यही कारण हैं कि इनकी संख्या में लगातार कमी होती जा रही है। वन विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि हर वर्ष सैकड़ों डाल्फिन विभिन्न कारणों से दम तोड रही हैं लेकिन इन्हें बचाने के कारगर उपाय नहीं किए गए हैं। डाल्फिन यूं तो देश की विभिन्न नदियों बृह्मपुत्र, मेघना समेत गंगा की सहायक नदियों के अलावा नेपाल और बंगला देश में भी पाई जाती हैं। इसकी संख्या में गिरावट को देखते हुए इसके संरक्षण एवं प्रजनन के लिए 960 किलोमीटर लम्बी चम्बल नदी के 425 किलोमीटर क्षेत्र मध्य प्रदेश के पाली से उत्तर प्रदेश के पचनद तक के क्षेत्र को राष्ट्रीय सेंचुरी क्षेत्र घोषित किया गया था। हालांकि इस सेंचुरी क्षेत्र में डाल्फिन के साथ घडियाल, कछुए और मगरमच्छ भी हैं लेकिन सेंचुरी क्षेत्र में पानी की कमी के चलते डीप पूल सिमटता जा रहा है जिससे अन्य जलीय जीवों के साथ साथ सबसे ज्यादा डाल्फिन के अस्तित्व को खतरा बढ़ता जा रहा है। जानकारों के मुताबिक चम्बल नदी में स्थापित चार बांधों ने इसकी धारा को कुन्द कर दिया है। रेत की सिल्ट डीप पूलों के लिए बाधक साबित हो रही है। उथली नदी में पानी की कमी के चलते जलीय जीवों की जान पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। मध्य प्रदेश की ङ्क्षवद्याचल वादियों से मानपुरा इंदौर से निकली चम्बल नदी पर बने गांधी सागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बाँध, एवं कोटा बैराज नदी के उथलेपन के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार है। अमूमन डाल्फिन को मछली माना जाता है जबकि हकीकत में डाल्फिन एक स्तनधारी जलीय जीव है और अण्डों की जगह शिशु का जन्म देता है, इसे यह नाम ग्रीक शब्द से मिला है। इसके अलावा पौराणिक ग्रीक कथाओं में भी डाल्फिन का जिक्र कई जगह आया है। मछलियों को अपना आहार बनाने वाली डाल्फिन की उछाल हर किसी का मन मोह लेती है। यह सांस लेने के लिए सिर्फ पांच मिनट के लिए पानी से बाहर आती है। उसके बाद लगभग आठ घंटे का समय गहरे पानी में गुजारती है। पूरी तरह नेत्र विहीन डाल्फिन सिर्फ ध्वनि प्रक्रिया के तहत आंखों का काम चलाती है। अपने शिकार को वह अनोखे तरीके से पकडती है। मुंह से अल्ट्रासोनिक आवाज के जरिए वह अपने शिकार तक पहुंचती है। उसके आधार पर इसके दिमाग में शिकार की छवि बनती है जिससे यह अपना शिकार पकडऩे में कामयाब होती है। एक मादा डाल्फिन 2.7 मीटर लम्बी तथा 100 से 150 किलो तक वजन की होती है, जबकि नर डाल्फिन का वजन कम होता है। मादा एक बार में सिर्फ एक बच्चे को जन्म देती है। ज्यादातर झुण्ड में रहने वाली डाल्फिन दुनिया के बेहद समझदार जीवधारियों में से एक है। डाल्फिन भारी जरुर है लेकिन मानवजाति के लिए खतरनाक नहीं है। डाल्फिन को चम्बल में निहारने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। संगम स्थल क्षेत्र में विशेषत: पायी जाने वाली डाल्फिन के लिए जिले का पचनद क्षेत्र काफी मुफीद है। प्रख्यात जलीव जीव विशेषज्ञ डा़ राजीव चौहान के मुताबिक वर्ष 1982 में इनकी संख्या चार से पांच हजार थी ।वर्ष 1991 में इन्हें संरक्षित किया गया। यह कोशिश भी इनकी रक्षा में कारगर साबित नहीं हो सकी जबकि डाल्फिन के शिकार पर छह साल सश्रम कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान होने के बावजूद शिकारी इनके महंगेतेल के लिए इनका शिकार करते हैं। जानकारों के मुताबिक इनका तेल विभिन्न दवाओं में काम आता है। वर्ष 1996-97 में जब घडियालों की मौतों के बारे में पता लगाया जा रहा था तब पचनद क्षेत्र में इसका शिकार करते लोगों को देखा गया था, क्योंकि वहां यमुना, चम्बल,ङ्क्षसधु, क्वारी तथा पहुज नदियों का मिलन होता है। यह क्षेत्र डाल्फिन के लिए सबसे सुरक्षित है। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 1991 में डाल्फिन को बचाने के लिए पचनद क्षेत्र को संरक्षित करने की मांग उठाई गयी थी, परन्तु उसे अनदेखा कर दिया गया था। मछुवारों के जाल से इसके नवजात को जान का खतरा बना रहता है। इसके संरक्षण की जरुरत है। उसके लिए नदी के बसे लोगों को जागरुक होना पडेगा अन्यथा वह किताबों, कहानियों का हिस्सा बनकर रह जायेगी।