• विदेश घूमने के बजाय मोदी घरेलू समस्याओं को सुलझाते

    नई दिल्ली ! मोदी सरकार अपने कार्यकाल के एक साल पूरे होने के मौके पर जहां कई रैलियां और जनसभाएं आयोजित कर अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने में लगी है वहीं माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा) ने इस मौके पर ‘एक साल बुरा हाल’’ का नारा दिया है। पार्टी ने सोशल मीडिया पर गत एक साल में मोदी सरकार की विफलताओं के खिलाफ अभियान छेड़ा है...

    मोदी सरकार का एक साल, बुरा हालनरेन्द्र मोदी ने 18 देशों की यात्रा कर एक रिकॉर्ड बनाया जबकि देश की जनता चाहती थी कि वह घरेलू समस्याओं को सुलझाते।नई दिल्ली !   मोदी सरकार अपने कार्यकाल के एक साल पूरे होने के मौके पर जहां कई रैलियां और जनसभाएं आयोजित कर अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने में लगी है वहीं माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा) ने इस मौके पर ‘एक साल बुरा हाल’’ का नारा दिया है। पार्टी ने सोशल मीडिया पर गत एक साल में मोदी सरकार की विफलताओं के खिलाफ अभियान छेड़ा है और इसके लिए ‘एक साल बुरा हाल’ शीर्षक से कार्टून, टिप्पणियां और फोटो लगाई हैं। पार्टी ने एक साल बुरा हाल को रेखांकित करते हुए एक कविता भी पोस्ट की है।  पार्टी ने फेसबुक तथा ट््िवटर का सहारा लेते हुए भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक को किसान विरोधी बताया है और श्रम कानूनों को कमजोर बनाने की तीखी आलोचना की है। पार्टी ने एक साल बुरा हाल नामक एक हेशटेग भी बनाया है जिसमें मोदी सरकार को कारपोरेट की सरकार तथा उसकी नीतियों को जनविरोधी करार दिया। पार्टी ने आज तीन अन्य वामदलों के साथ मिलकर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मजदूरों, किसानों, महिलाओं पर हमले, शिक्षा के व्यापारीकरण, भ्रष्टाचार तथा अपराध और साम्प्रदायिकता के खिलाफ संयुक्त सम्मेलन भी आयोजित किया।  माकपा ने सोशल मीडिया पर ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ को पोस्ट किया है जिसमें कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 देशों की यात्रा कर एक रिकॉर्ड बनाया जबकि देश की जनता चाहती थी कि वह घरेलू समस्याओं को सुलझाते। संघ परिवार मोदी की विदेश यात्राओं से इस वजह से खुश है कि इनसे 40 देशों में उसका नेटवर्क मजबूत हुआ है। पार्टी का कहना है कि पिछले एक साल में मोदी सरकार ने लोगों के जीवन पर तिहरा आक्रमण किया है। एक तरफ आर्थिक सुधार के नाम पर तीव्र गति से नव उदारवादी नीतियों को अपनाया है वहीं दूसरी तरफ भारतीय गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष तथा लोकतांत्रिक ढांचे को ध्वस्त करने की लगातार कोशिश की है। जनतांत्रिक संस्थानों के अधिकारों में कटौती की है तथा संसदीय परंपराओं को भी कमजोर किया है।  ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ के संपादकीय में यह भी कहा गया है कि 1990-91 में सकल घरेलू उत्पाद में श्रमिकों के वेतन का हिस्सा 25 प्रतिशत से अधिक था जबकि अब यह घटकर मात्र दस प्रतिशत के करीब रह गया है। वर्ष 2011 में 55 लोग अरबपति थे जिनकी संख्या 2014 में बढक़र 100 हो गई है। 

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