• घरों में काम कर भी हासिल किए 85 फीसदी अंक

    बेंगलुरू ! आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार की मदद के लिए घरों में सहायिका के तौर पर काम करने वाली 17 वर्षीया शालिनी अब बड़े सपने संजोना चाहती हैं। शालिनी ने हाल ही में प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स (पीयूसी) बोर्ड परीक्षा में 85 प्रतिशत अंक पाकर सभी हैरान कर दिया है। कर्नाटक में 12वीं की परीक्षा को पीयूसी कहा जाता है। शालिनी ने कड़ी मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया है। शहर के पश्चिमी उपनगर में अपने किराये के छोटे से घर में रहने वाली शालिनी ने आईएएनएस को बताया, "मेरी कड़ी मेहनत का फल मिला है। मैं आस-पास के पांच-छह घरों में और अपने घर में भी काम करती थी।...

    बेंगलुरू ! आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार की मदद के लिए घरों में सहायिका के तौर पर काम करने वाली 17 वर्षीया शालिनी अब बड़े सपने संजोना चाहती हैं। शालिनी ने हाल ही में प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स (पीयूसी) बोर्ड परीक्षा में 85 प्रतिशत अंक पाकर सभी हैरान कर दिया है। कर्नाटक में 12वीं की परीक्षा को पीयूसी कहा जाता है। शालिनी ने कड़ी मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया है। शहर के पश्चिमी उपनगर में अपने किराये के छोटे से घर में रहने वाली शालिनी ने आईएएनएस को बताया, "मेरी कड़ी मेहनत का फल मिला है। मैं आस-पास के पांच-छह घरों में और अपने घर में भी काम करती थी। खाली वक्त में परीक्षाओं के लिए पढ़ाई करती थी।" कर्नाटक परीक्षा प्राधिकरण ने मार्च में हुई पीयूसी परीक्षाओं का परिणाम 18 मई को घोषित किया था। गरीब की परिवार की इकलौती बेटी शालिनी ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा में भी 86 फीसदी अंक हासिल किए थे। अपनी परीक्षाओं की तैयारियों के दौरान वह अपने पिता अर्मुगम की देखभाल करती थी, जो लगभग एक दशक पहले एक इमारत से गिरने के बाद से बिस्तर पर हैं। शालिनी को अपने छोटे भाई सूर्या को भी देखना होता था, जिसका राज्य संचालित अस्पताल में ब्लड कैंसर का इलाज चल रहा है। शालिनी ने बताया, "मेरी मां विजय परिवार में अकेली कमाने वाली थीं, इसिलए मैं बर्तन, कपड़े धोकर, घरों के बाहर रंगोली बनाने के लिए फर्श धोने का काम करके उनकी मदद करती थी।" परिवार की आय में मदद के लिए बाद में शालिनी ने कुछ घरों में काम करना शुरू कर दिया। शालिनी ने सातवीं कक्षा तक तमिल माध्यम और नौवीं कक्षा तक कन्नड़ माध्यम से पढ़ाई करने के बाद 10वीं की परीक्षा अंग्रेजी माध्यम से दी। शालिनी ने बताया, "तमिल मेरी मातृभाषा है और कन्नड़ स्थानीय भाषा है। मैंने पीयूसी के लिए 10वीं में अंग्रेजी माध्यम का चुनाव किया। शालिनी ने अपने मालिकों को भी हैरान कर दिया। शालिनी ने बताया, "मालिक लोग पीयूसी में मेरे प्रदर्शन के बारे में समाचार चैनलों पर मुझे बोलते हुए देखकर और समाचारपत्रों में मेरे बारे में पढ़कर बहुत खुश थे। उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि उनके घरों में काम करते हुए मैंने इतना अच्छा प्रदर्शन कैसे किया।" शालिनी अब इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में स्नातक करके सॉफ्टेवेयर इंजीनियर बनना चाहती हैं। शालिनी ने बताया, "मैं सीईटी (कॉमन एंट्रेन्स टेस्ट) के परिणामों का इंतजार कर रही हूं, ताकि मैं शहर में ट्रस्टों, वजीफों और धर्मार्थ संस्थानों की मदद से बीएमएस, बीएनएम या वीआईईटी जैसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले सकूं।" एसएसएलएसी बोर्ड परीक्षा में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण होने के बाद शालिनी को हुए मैसूर के स्वामी विवेकानंद यूथ मूवमेंट की ओर से पीयूसी की पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद मिली थी। शालिनी ने बताया, "ट्रस्ट ने मेरे वार्षिक बस पास और किताबों के लिए भी भुगतान किया था। अन्य संस्थानों से भी ऐसी ही मदद की उम्मीद करती हूं, क्योंकि मेरा परिवार डिग्री कॉलेज के शुल्क का वहन नहीं कर पाएगा।" शालिनी ने कहा, "बेंगलुरू जैसे खर्चीले शहर में रहना हमारे लिए संघर्ष की तरह है, क्योंकि हमारे पास धन या संपत्ति नहीं है। लेकिन मैंने बेहतर करने के लिए मुसीबतों का सामना करना और दबाव झेलना सीख लिया है।"

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