30 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकारनई दिल्ली ! प्राथमिक स्कूलों में 2013 तक 12 वर्ष तक के 97 फीसदी बच्चों का दाखिला हो चुका है। इस उम्र समूह के एक तिहाई बच्चों में कुपोषण के संकेत दिखते हैं, जो गरीब और उपेक्षित समुदाय तथा गांवों में अधिक हैं। 19 वर्ष की उम्र तक 49 फीसदी बच्चे स्कूलों में बचे रह गए, जिनमें से नौ फीसदी बच्चों की माध्यमिक शिक्षा पूरी नहीं हो पाई, आठ फीसदी पेशेवर या उच्च-माध्यमिक स्कूलों में चले गए और एक तिहाई ही महाविद्यालय में पहुंच पाए।ये कुछ निष्कर्ष आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कराए गए एक पायलट अध्ययन के हैं। अध्ययन बच्चों में गरीबी का अध्ययन करने वाली अंतरराष्ट्रीय परियोजना यंग लाइव्स द्वारा कराए गए। इसके तहत 15 साल की अवधि में चार देशों में कुल 12 हजार बच्चों पर अध्ययन किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, दाखिला और शुद्ध पेयजल की सुविधा जैसे कुछ संकेतकों में सकारात्मक बदलाव दिखता है। पोषण और स्वच्छता की स्थिति खासकर गांवों में अब भी खराब है। साथ ही युवा और खासकर युवतियों की स्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। इस अध्ययन में शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास जैसे तीन पहलुओं पर प्रारंभिक आंकड़े जारी किए गए हैं। 12 साल के बच्चों में दाखिला बढ़ा है, लेकिन देश में दाखिले का स्तर उच्च माध्यमिक स्कूलों में कम है। ेबालक और बालिकाओं के दाखिले का अनुपात अब लगभग समान हो गया है, जबकि 2006 में इसमें चार प्रतिशतांक का फासला था। हालांकि गरीब और अन्य बच्चों में शिक्षा के स्तर का फासला बरकरार है। अध्ययन के मुताबिक, 2006 के बाद से शिक्षा के स्तर में गिरावट आई है। आधे बच्चे ही गणित के सवालों को सही तरीके से हल कर पाए, जबकि 2006 में दो-तिहाई बच्चे ऐसा करने में सफल रहे थे। पोषण की कमी के कारण विकास अवरुद्ध हो जाने के मामले में कोई फर्क नहीं आया है। आठ साल की अवस्था वाले बच्चों के बीच हालांकि चार प्रतिशतांक की वृद्धि हुई है। अध्ययन के मुताबिक वंचित और उपेक्षित तबके के बच्चों में पोषण बेहतर करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के बीच एक तिहाई बच्चे दुबले पाए गए, जबकि अन्य जातियों के एक चौथाई बच्चे दुबले पाए गए।