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अनिल जनविजय
मॉस्को ! 21 वीं शताब्दी पर एशिया का नाम लिखा है। नरेन्द्र मोदी ने चीन, मंगोलिया और दक्षिणी कोरिया की यात्रा पर निकलने से पहले यह बात कही थी। ऐसा लगता है कि चीन और रूस के साथ-साथ भारत भी एशिया महाद्वीप पर बड़े पैमाने पर राजनीतिक और आर्थिक एकीकरण की उत्प्रेरक शक्ति बनने के लिए तैयार है।
नरेंद्र मोदी की चीन-यात्रा के दौरान 22 अरब डॉलर के व्यापारिक और आर्थिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। जबकि मंगोलिया को भारत ने ढांचागत निर्माणों और आर्थिक विकास के लिए एक अरब डॉलर का ऋण देने की बात कही है। दक्षिणी कोरिया के साथ भारत ने सैन्य-तकनीकी सहयोग के साथ-साथ कुछ अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण समझौते किए हैं और भारत-दक्षिणी कोरियाई सम्बंधों को विशेष रणनीतिक सहयोग सम्बन्धों का स्तर प्रदान किया है। नरेंद्र मोदी की इस विदेश-यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है, चीन के साथ रिश्तों को एक जरूरी मोड़ देकर उन्हें पूरी तरह से बदल देना। भारत और चीन के बीच चल रहा सीमा-विवाद पिछले पांच दशकों से इन दो एशियाई महाशक्तियों के बीच नेक पड़ोसीपन के सम्बन्धों के विकास में ही नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर पूरे यूरेशिया के एकीकरण की सारी प्रक्रिया में ही बाधा बना हुआ है। पिछले करीब पच्चीस साल से भारत और चीन यह मानकर चल रहे थे कि इस जटिल सीमा-विवाद का समाधान भविष्य के लिए छोड़ देना चाहिए।
लेकिन इस अनिश्चितता के कारण दोनों देशों की सीमा पर छोटी-मोटी मुठभेड़ें और विवाद हो जाते थे, जिससे दोनों देशों के बीच आपसी अविश्वास और अधिक बढ़ता जा रहा था। सितम्बर 2014 में चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी चिन फिंग की भारत-यात्रा की पूर्ववेला में चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय सीमाक्षेत्र में की गई घुसपैठ भी दो देशों के रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ा था। लेकिन अब भारत के साथ चल रहे सीमा-विवाद पर चीन के नजरिए में काफी बदलाव सामने आया है। अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होने वाले चीनी अखबार ’ग्लोबल टाइम्स’ ने लिखा है कि दोनों तरफ से नियंत्रण रेखा की सुनिश्चितता वह मुख्य कदम होगा, जो इस विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से से हल करने की दिशा में बढ़ाया जाएगा। सीमा-विवाद को हल करने की दिशा में होने वाली इस प्रगति से और भारत व चीन के निकट आने से न सिर्फ एशिया की, बल्कि सारी दुनिया की परिस्थिति को मूलभूत रूप से बदलने के रास्ते में पड़ी मुख्य बाधा दूर हो जाएगी। सवाल यह उठता है कि ऐसा अभी ही क्यों हो रहा है? कुछ विश्लेषक इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी छवि से जोड़ते हैं, जिन्हें चीनी नेताओं को यह समझाने में सफलता मिल गई है कि उनकी सरकार भारतीय-चीन सम्बन्धों को सामान्य बनाने की दिशा में ही आगे बढ़ेगी। इसके अलावा इस तरह के कुछ विदेशी कारण भी रहे, जिनकी वजह से सकारात्मक बदलाव लाना संभव हो पाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन की यात्रा ने दिखाया कि एशिया में हालात बदल रहे हैं।