दिल्ली में किसान की आत्महत्या के बाद कोई बड़ा कदम उठाने के पक्ष में नहीं सरकारनई दिल्ली ! भूमि अधिग्रहण विधेयक पर लाए जाने वाले विधेयक को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिलने में अभी काफी समय लग सकता है। राज्यसभा का अंकगणित अभी भी सरकार के पक्ष में नहीं है। वह फिलहाल दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के विकल्प को अपनाने से भी परहेज कर रही है। राजनीतिक माहौल को देखते हुए सरकार अभी इस पर कोई बड़ा कदम नहीं उठाएगी। मौजूदा अध्यादेश छह महीने तक प्रभावी रहेगा। उसके बाद भी उसके पास फिर से अध्यादेश लाने का विकल्प खुला रहेगा। इस बीच, अध्यादेश पर विधेयक को सत्र के आखिरी सप्ताह में लोकसभा में लाया जाएगा, जहां सरकार का बहुमत है। दिल्ली में किसान की आत्महत्या के बाद भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर सरकार कोई बड़ा कदम उठाने के पक्ष में नहीं है। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा कि राज्यसभा में समर्थन मिलने की उम्मीद न के बराबर और माहौल संयुक्त बैठक के विकल्प को अपनाने का नहीं है। हालांकि सरकार के रणनीतिकार गैर कांग्रेसी विपक्ष के साथ चर्चा कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई बात नहीं बनी है। दरअसल, सरकार की दिक्कत जनता परिवार की एकता से और ज्यादा बढ़ गई है। अभी तक वह सपा, राजद और जदयू, इनेलो के साथ अलग अलग बात करती थी, लेकिन अब उनके विलय के फैसले के बाद स्थिति बदल गई है। इन दलों का फैसला इकठ्ठा होगा और बिहार के चुनावों को देखते हुए इनसे सरकार को समर्थन मिलने की उम्म्मीद कम ही है। वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज कहा कि प्रधानमंत्री जनभावना का सम्मान करते हुए भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस लेते है तो इससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । कुमार ने आज यहां कृष्ण मेमोरियल हॉल में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भूमि अधिग्रहण बिल को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। यदि लोगों के मन में यह धारना बैठ गई है कि यह विधेयक किसान विरोधी है तो इसे लागू नहीं किया जाना चाहिए। और 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को बरकरार रखना चाहिए । मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री यदि जनभावना के सम्मान के लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस ले लेते है तो इससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । उन्हें यह समझना चाहिए कि जनभावना के विरोध में काम करने से प्रतिष्ठा बढ़ती नहीं बल्कि घटती है । उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर किसान सकते में है और इसके कारण देश भर के किसान भाजपा के विरोध में है । बाहर और भीतर विरोधअन्नाद्रमुक और बीजद का भी रवैया भी पूरी तरह सरकार के साथ नहीं है। सरकार की सहयोगी शिवसेना भी कुछ प्रावधानों के विरोध में है। विपक्ष के नेता भी सरकार की अलग अलग बात से खुश नहीं है। उनका कहना है कि सरकार सर्वदलीय बैठक बुलाए और वहां पर जो राय बने उस पर काम करे। दूसरी तरफ भाजपा ने इस मामले पर अपनी एक समिति भी बनाई थी, उसमें भी पचास फीसदी किसानों की सहमति लेने की बात प्रमुखता से सामने आई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन भारतीय किसान संघ पहले से ही मौजूदा अध्यादेश के विरोध में है।