• बिजली का एक और झटका

    एक आम उपभोक्ता के लिए बिजली की दरों का फार्मूला ऐसी पहेली की तरह है, जिसे बूझने के लिए दिमाग पर काफी जोर देना पड़ता है। यहां तो आलम यह है कि बिजली की दरें लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर दरों में इतनी वृद्धि की आखिर वजह क्या है।...

    एक आम उपभोक्ता के लिए बिजली की दरों का फार्मूला ऐसी पहेली की तरह है, जिसे बूझने के लिए दिमाग पर काफी जोर देना पड़ता है। यहां तो आलम यह है कि बिजली की दरें लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर दरों में इतनी वृद्धि की आखिर वजह क्या है। राज्य बिजली बोर्ड को विघटित कर कंपनियां बना देने के बाद बिजली आपूर्ति और सुविधाओं में विस्तार की स्थितियों में कोई खास बदलाव तो दिखाई नहीं देता, अलबत्ता ये कंपनियां सरकार के लिए सफेद हाथी जरुर बन गई हैं। इन कंपनियों ने राज्य विद्युत नियामक आयोग को 2400 करोड़ रूपए की घाटे की पूर्ति के लिए बिजली की दरों में कम से कम 30 प्रतिशत का प्रस्ताव रखा था। अगर आयोग को दरों में इस वृद्धि के प्रस्ताव पर उपभोक्ताओं के गुस्से का ख्याल न होता तो उसे इन कंपनियों का प्रस्ताव मंजूर कर देने से परहेज नहीं होता मगर पिछली जनसुनवाईयों में जिस तरह वृद्धि के प्रस्तावों पर लोगों का गुस्सा फूटा था, उसे ध्यान में रखते हुए आयोग ने करीब 15 प्रतिशत पर ही हामी भरी। बिजली दरों में वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी का विधान यह है कि राज्य विद्युत नियामक आयोग पहले जनसुनवाई आयोजित करता है। बिजली बोर्ड के दौर में इस तरह की जनसुनवाइयां जिला स्तर पर होती थीं और उसके बाद निर्णय लिया जा सकता था। पहली बार ऐसा हुआ है जब जनसुनवाई का मौका दिए बगैर आयोग ने दरों में वृद्धि का प्रस्ताव मंजूर कर लिया, जिसकी वैधानिकता संदिग्ध कही जा सकती है। पिछली जनसुनवाई में बिलासपुर में आयोग के अधिकारियों को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। लोगों ने कुर्सियां तक तोड़ डाली थीं। इसी तरह के विरोध का सामना फिर न करना पड़े। आयोग ने राजधानी में जनसुवाई की खानापूर्ति कर ली और वृद्धि के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी। घरेलू बिजली एक जून से 11 फीसदी महंगी हो जाएगी जबकि औद्योगिक और व्यावसायिक बिजली की दर करीब 15 फीसदी तक बढ़ जाएगी। आयोग इस बार 40 यूनिट का एक नया स्लैब लेकर आया है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक सामान्य उपभोक्ता को भी दूसरे स्लैब की दर से बिजली का भुगतान करना होगा। यह स्लैब सिर्फ उपभोक्ताओं को भरमाने के लिए लाया गया है, और यह बताने की कोशिश की गई है कि 40 यूनिट बिजली खर्च करने वालों के लिए सबसे न्यूनतम दर होगी जबकि एक सामान्य गरीब परिवार के यहां भी इससे ज्यादा बिजली खर्च होती है। बिजली कंपनियों ने बिजली बोर्ड के समय विभागीय स्तर पर होने वाले सारे काम ठेके पर दे दिए हैं। फ्यूज काल सेंटरों में निजी एजेन्सियों के लोग आ गए हैं, जो उपभोक्ताओं की कोई परवाह नहीं करते। कंपनियों के अधीन कार्यरत अधिकारियों की इस व्यवस्था में मौज हो गई है। निजी एजेन्सियों के बिजली कंपनियों से जुडऩे के साथ भ्रष्टाचार के भी नए-नए रास्ते खुल गए हैं। मीटर शिफ्टिंग तक में करोड़ों का घोटाला हो रहा है और बिजली कंपनियां कह रही है कि उन्हें घाटा हो रहा है। इसका बोझ उपभोक्ताओं पर डाला जा रहा है।

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