• तपती धरती, झुलसते लोग

    जेठ का महीना चल रहा है और पूरा देश भीषण गर्मी से परेशान है। आग उगलते सूरज और गर्म हवाओं से लोगों की जान पर बन आई है। मसूरी और पचमढ़ी जैसे पहाड़ी शहर भी गर्मी की चपेट में आए हैं। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, विदर्भ, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना, देश के इन राज्यों में गर्मी का प्रकोप अधिक है।...

    जेठ का महीना चल रहा है और पूरा देश भीषण गर्मी से परेशान है। आग उगलते सूरज और गर्म हवाओं से लोगों की जान पर बन आई है। मसूरी और पचमढ़ी जैसे पहाड़ी शहर भी गर्मी की चपेट में आए हैं। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, विदर्भ, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना, देश के इन राज्यों में गर्मी का प्रकोप अधिक है। आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में पिछले कुछ दिनों में लगभग 5 सौ लोगों की मौत हो गई है। इनमें ज्यादातर मजदूर वर्ग के लोग हैं या फिर वे जिन्हें रोजी-रोटी कमाने के लिए दिन-दिन भर सडक़ों पर रहना पड़ता है। मौसम का बदलना और अप्रैल से लेकर जून तक गर्मी का पडऩा और तापमान का 45 डिग्री के पार होना कोई प्राकृतिक आपदा नहींहै। यह प्रकृति का चक्र है और सदा से ऐसे ही चलता आया है। गर्मी, सर्दी, बरसात पहले भी होती थी, आगे भी होगी, फर्क इतना ही है कि पहले इनसे कमोबेश सब एक जैसे प्रभावित होते थे, अब गरीब मौसम की मार झेलता है और अमीर मौसम का लुत्फ उठाता है। पुराने जमाने में राजाओं के पीछे चंवर हिलाने वाले खड़े होते थे, उनके संग-संग छतरी लेकर भागने वाले नौकर होते थे, अंग्रेज बहादुरों के लिए छत से लटके कपड़े के पंखे को बाहर बैठकर अर्दली हिलाया करता था। अब यह वर्गभेद और गहरा गया है। चंवर और पंखों की जगह वातानुकूलित यंत्रों यानी एसी ने ले ली है। सरकारी दफ्तरों में, शापिंग मालों में, दुकानों में, संपन्न घरों में कई-कई एसी दिन-रात चलते हैं। बाहर का तापमान 30 डिग्री हो या 40 डिग्री, इससे कोई फर्क नहींपड़ता, भीतर का तापमान 18-20 डिग्री रहता है और लोग चैन से रहते हैं। भीतर ठंडक पहुंचाने वाले ये एसी बाहर कितनी गर्मी बढ़ा रहे हैं या कितनी ज्यादा बिजली की खपत कर रहे हैं, इसके बारे में सोचकर गर्मी की परेशानी क्यों बढ़ाई जाए? सडक़ों पर रहने वाले एसी के हकदार नहींहैं, लेकिन पेड़ों की छाया निश्चित तौर पर उनका हक है, जिससे वे निरंतर वंचित किए जा रहे हैं। इधर कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक जुमला खूब छाया हुआ है कि वे लोग कार पार्क करने के लिए पेड़ की छाया ढूंढते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में एक पेड़ भी नहींलगाया। यह जुमला अनायास ही नहींआ गया है। सचमुच ऐसा हो रहा है कि प्रकृति का आनंद वे लोग उठाना चाहते हैं, जो प्रकृति का आदर करना नहींजानते। विकास के नाम पर लोगों के जेहन में बड़ी-बड़ी इमारतें, लंबी-चौड़ी सडक़ेें, फ्लाईओवर, दिन-रात दौड़ते वाहन, कारखाने यही सब उभरते हैं। ऊंचे, फलदार, छायादार वृक्ष, नदियां, झरने, तालाब ये सब मानो पिछड़े प्रदेशों की निशानी बन गए हैं। जिस प्रदेश में जितना अधिक वनक्षेत्र, वह उतना अधिक पिछड़ा हुआ। प्रकृति के साथ विकास की एक अवांछित होड़ कराई जा रही है, जिसमें प्रकृति पिछड़ रही है। लेकिन उसके पिछडऩे से इंसानों की जिंदगी पर क्या असर पड़ रहा है, यह गर्मी, बरसात और ठंड से होने वाली मौतों से समझा जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में सडक़ों के चौड़ीकरण, शहरों के सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों पेड़ काट दिए गए हैं और कई तालाब पट चुके हैं। इसके कारण गर्मी अधिक महसूस होती है। पहले लोग समाजसेवा करने के लिए कुएं, तालाब, बावडिय़ां खुदवाते थे। गर्मी के मौसम में जगह-जगह प्याऊ लगे होते थे, जहां राहगीर साफ, ठंडा पानी पीकर प्यास बुझा सकते थे। अब हर शहर में दो-तीन वाटरपार्क, फनपार्क जरूर होते हैं, जहां संपन्न तबका बीट द हीट, यानी गर्मी को पछाडऩे पहुंचता है। स्वीमिंग पूल, रेन डांस आदि का आनंद लेता है। विपन्न लोगों के नहाने के लिए पानी उपलब्ध है या नहीं, इसकी फिक्र किसी को नहींहै, सरकार भी इस ओर से आंंखें मूंदे नजर आती है। बोतलबंद पानी और शीतल पेय पदार्थों का धंधा चलता रहे, इसलिए प्याऊ नहींखुलते। कहीं-कहींइक्का-दुक्का प्याऊ दिख जाते हैं। सरकार और प्रशासन भी अपनी ओर से प्याऊ नहींलगवाते। जबकि इतने सक्षम और संपन्न तो वे हैं ही कि दो-तीन महीने लोगों को पानी पिला सकेें। आने वाले कुछ दिनों में गर्मी और बढ़ेगी, ऐसा मौसम विभाग का अनुमान है। आंध्रप्रदेश, तेलंगाना में सरकार ने लोगों को लू से बचाव के उपाय बताए हैं, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों में जैसे सार्वजनिक स्थलों पर पेयजल उपलब्ध हो, ऐसे निर्देश प्रशासन को दिए हैं। गर्मी से प्रभावित अन्य प्रदेशों में भी राज्य सरकारों, स्थानीय प्रशासन और समाज के सक्षम तबकों को कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे आम जनता को थोड़ी राहत मिल सके। इन फौरी उपायों के अलावा मौसम की मार से बचने के लिए दीर्घकालिक उपायों की भी जरूरत है।

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