• कानून तोडऩे वाले वीआईपी

    जानते नहींहो मैं कौन हूं, वाली वीआईपी संस्कृति भारत में कितनी तेजी से बढ़ रही है, इसके कुछ उदाहरण पिछले दिनोंंदेखने मिले। पटना के जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय विमानतल पर केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री रामकृपाल यादव निकास द्वार से प्रवेश करने जा रहे थे। तब वहां मौजूद केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की महिला सिपाही ने उन्हें रोका।...

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    जानते नहींहो मैं कौन हूं, वाली वीआईपी संस्कृति भारत में कितनी तेजी से बढ़ रही है, इसके कुछ उदाहरण पिछले दिनोंंदेखने मिले। पटना के जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय विमानतल पर केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री रामकृपाल यादव निकास द्वार से प्रवेश करने जा रहे थे। तब वहां मौजूद केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की महिला सिपाही ने उन्हें रोका। मंत्री महोदय फिर भी निकास द्वार से ही जाने की कोशिश में थे। उनका कहना था कि उनके साथ आए लोग रुक जाएंगे, लेकिन उन्हें जाने दिया जाए। सिपाही तब भी नहींमानी और आखिरकार मंत्री महोदय को गलत रास्ते से प्रवेश की अनुमति नहींमिली। महिला सिपाही की कत्र्तव्यपरायणता प्रशंसनीय है कि एक मंत्री द्वारा रूतबा जतलाए जाने के बावजूद उसने नियम तोडऩे की इजाजत नहींदी। वह सिपाही अपना कत्र्तव्य निभाने के लिए पुरस्कृत भले हो, लेकिन क्या सरकार केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के आला अधिकारी यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उसे इस कत्र्तव्यनिष्ठा के लिए भविष्य में परेशानी भुगतनी पड़े। यह सवाल इसलिए कि अक्सर मंत्री या आला अधिकारी दूसरों द्वारा नियम समझाने को अपनी हेठी समझते हैं और उन्हें देख लेंगे जैसी मानसिकता से कार्य करते हैं। सवाल यह भी है कि रामकृपाल यादव को निकास द्वार से ही प्रवेश करने की क्यों सूझी? वे पहली बार विमानतल नहींगए होंगे, ही विमानतल पर नियमों को तोडऩे के खतरे से अपरिचित होंगे, फिर ऐसी हरकत उन्होंने क्यों की? कुछ समय पहले ही केन्द्रीय उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू ने बड़ी शान से बताया था कि वे हवाई यात्रा के दौरान माचिस की डिब्बी लेकर चलते हैं और कानून तोड़ते हैं। अतिविशिष्ट श्रेणी के बहुत से लोग सुरक्षा जांच जैसे नियमों में छूट का लाभ उठाते हैं। ये लोग साधारण लोगों की तरह कतार में रहकर अपनी बारी आने की प्रतीक्षा नहींकरते। बल्कि सीधे विमान में जाकर अग्रिम पंक्ति में बैठते हैं। क्या इतनी सुविधा, जो इन्हें आम जनता से अलग दर्जा देती है, इन्हें पर्याप्त नहींलगती, जो वे नियमों को तोडक़र अपनी विशिष्टता प्रदर्शित करते हैं। ये नियम केवल आम जनता की ही नहीं, उनकी सुरक्षा के लिए भी जरूरी होते हैं। 


    मंत्रियों, सांसदों, सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं को सत्ता का घमंड होता है, तो अधिकारियों को अपने पद का। इसका ताजा उदाहरण है गोरखपुर का। जहां गोरखपुर विकास प्राधिकरण के एक माली को केवल इसलिए धारा 151 के तहत जेल भेजा गया, क्योंकि वह जब घास काट रहा था तो धूल उड़ रही थी। उस वक्त पार्क में सैर के लिए पहुंची एसडीएम नेहा प्रकाश ने उसे काम करने से रोका, यह कहते हुए कि उन्हें धूल से एलर्जी है। माली का कसूर केवल घास काटने और धूल उड़ाने का ही नहींथा, उससे बड़ा अपराध उसने एसडीएम को जवाब देने का किया। उसने कहा कि वह केवल अपना काम कर रहा है। यह बात एसडीएम को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने कैैंट पुलिस को बुलाकर उसे जेल भिजवा दिया। मंत्री कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं और अधिकारी कानून का अनुचित लाभ ले रहे हैं। इधर इलाहाबाद की एसडीएम सदर हर्षिता माथुर पर आम आदमी पार्टी के नेता सुनील चौधरी को ज्ञापन देते वक्त फोटो खींचने के लिए जेल भेजने का आरोप लगाया गया है। फिलहाल इस मामले में राजनीति शुरु हो गई है। आप पार्टी के लोगों का कहना है कि ज्ञापन की रिसीविंग देने से इन्कार करने के कारण उन लोगों ने रिकार्ड के लिए फोटो खींचनी चाही। जबकि पुलिस प्रशासन का कहना है कि आप के लोग वहां तमाशा कर रहे थे, अभद्रता कर रहे थे, इसलिए शांति भंग करने का मामला दर्ज किया गया। इस मामले की सच्चाई कब सामने आएगी, नहींमालूम। किंतु यह सच्चाई जनता को नजर रही है कि मंत्री, सांसद, अधिकारी जिन लोगों पर कानून बनाने, उसका पालन करवाने की जिम्मेदारी होती है, वे ही कैसे मखौल उड़ा रहे हैं। इससे जो अराजकता का माहौल बनता है, उसका खामियाजा जनता ही भुगतती है।

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