नई दिल्ली ! ईरान में बहाई समुदाय के उत्पीड़न को समाप्त करने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति द्वारा सुझाए गए दस में से सिर्फ दो सुझावों को ईरान सरकार ने स्वीकार किया है। इससे हताश व निराश बहाई समुदाय को उम्मीद है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।नई दिल्ली स्थित बहाइयों के धार्मिक स्थल लोट्स टेंपल के निदेशक शत्रुघ्न जिवनानी के मुताबिक, "ईरान में अभी भी बहाई समुदाय का उत्पीड़न हो रहा है।" ईरान में ही 19वीं शताब्दी में बहाई धर्म अस्तित्व में आया था।जिवनानी ने आईएएनएस को बताया, "मोदी ने भारत में विभिन्न धार्मिक समूहों को पहचाना है। हम लगातार बहाई समुदाय पर हो रहे उत्पीड़न को कम करने में मदद के लिए विदेश मंत्रालय से मदद मांग रहे हैं। वे हमारी तकलीफों पर ध्यान दे रहे हैं।""हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना है और हम एक बार में एक ही कदम आगे बढ़ा रहे हैं। हम एक दिन अपना लक्ष्य हासिल कर लेंगे। मुझे मानवता पर विश्वास है। हमें उम्मीद है कि मोदी बहाई समुदाय की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।"बहाई एकेश्वरवादी धर्म है, जो मानवता में आध्यात्मिक एकता पर बल देता है। बाहुल्लाह ने फारस में बहाई धर्म की स्थापना की थी।बहाई की शिक्षा और सिद्धांतों के मुताबिक सृष्टि के निर्माण में सिर्फ एक ही ईश्वर का योगदान है। सभी मुख्य धर्म एक ही ईश्वर से उत्पन्न है और सभी मानव समान हैं। समय के साथ कई अवसरों पर बहाई धर्म के मुख्य सिद्धांत और इस्लाम के बीच टकराव बढ़ता गया।समय के साथ बहाई समुदाय ने फारस से बाहर निकलना शुरू किया। इसके बाद उत्पीड़न से बचने के लिए इन्होंने ईरान से निकलना शुरू किया। भारत में पहला बहाई 1844 में आया। दुनियाभर में फैले पचास लाख बहाइयों में से लगभग बीस लाख बहाई भारत में रहते हैं, जो कि ईरान से बाहर किसी देश में बहाइयों की सर्वाधिक संख्या है।दक्षिण दिल्ली स्थित लोट्स टेंपल (कमल मंदिर) भारत में बहाई समुदाय का सबसे प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है। फूल की आकृति का यह मंदिर पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यह किसी भी धर्म के मानने वालों के लिए खुला है।जिवनानी को लगता है कि ईरान के साथ भारत के अच्छे संबंधों की वजह से मोदी की बातों को ईरान में तवज्जो दी जाएगी।बहाई महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने और समुदाय के लोगों के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ बहाई सहित सभी अल्पसंख्यकों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए ईरान ने 19 मार्च को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के दो सुझावों को स्वीकार किया है।ईरान ने इसके साथ ही बहाई के लिए अन्य आठ सुझावों को नकार दिया है।जिवनानी ने कहा कि 1979 में इस्लाम क्रांति के बाद बहाई समुदाय के लिए परेशानियां बढ़ने लगी। हालांकि यह देश में सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है।उन्होंने कहा, "यदि ईरान सरकार की नीतियों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ तो ईरान में मानवाधिकारों के प्रति लोगों का दृष्टिकोण निराशाजनक हो जाएगा।"इस बात का उल्लेख करते हुए कि पिछले कुछ सालों में बहाइयों पर हमले की घटनाओं में इजाफा हुआ है, जिवनानी ने कहा कि इन घटनाओं से वह हताश थे लेकिन वह आश्वस्त हैं कि इस दिशा में अधिक अभियानों (विशेष रूप से भारत में) से ईरान सरकार पर दबाव पड़ेगा।उन्होंने कहा, "इस दिशा में सार्वजनिक जागरूकता अधिक महत्वपूर्ण है।"उन्होंने कहा कि पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली जे. सोराबजी सहित 40 प्रमुख भारतीयों ने बहाइयों पर अत्याचार को समाप्त करने के लिए इस महीने ईरान सरकार को खुला पत्र लिखा है।