• 'मन की बात' बनेगी अधिकारियों के लिए गले की हड्डी

    नई दिल्ली ! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बातÓ कृषि मंत्रालय के अफसरों के लिए गले की फांस बन गई है। अगर प्रधानमंत्री की सोच के मुताबिक सब कुछ हुआ तो अगले कुछ महीनों में गले की ये फांस दूसरे मंत्रालयों के गले में भी फंस सकती है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बातÓ कार्यक्रम में पिछले दिनों किसानों को संबोधन के बाद से कृषि मंत्रालय में किसानों के खत आने का सिलसिला कुछ ऐसी तेजी से बढ़ा है ...

     जोगेन्द्र सोलंकीकृषि मंत्रालय में किसानों के आ रहे पत्र नई दिल्ली !   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बात' कृषि मंत्रालय के अफसरों के लिए गले की फांस बन गई है। अगर प्रधानमंत्री की सोच के मुताबिक सब कुछ हुआ तो अगले कुछ महीनों में गले की ये फांस दूसरे मंत्रालयों के गले में भी फंस सकती है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बातÓ कार्यक्रम में पिछले दिनों किसानों को संबोधन के बाद से कृषि मंत्रालय में किसानों के खत आने का सिलसिला कुछ ऐसी तेजी से बढ़ा है कि उच्च स्तरीय विचार विमर्श के बाद इसके लिए अलग से एक प्रकोष्ठ बनाने का फैसला लेना पड़ा। फिलहाल अपर सचिव स्तर के अधिकारी आरपी सिंह को इस प्रकोष्ठ का डॉयरेक्टर बनाया गया है। उच्च स्तरीय जानकारी के मुताबिक, 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी पर 'मन की बातÓ में किसानों को संबोधित किया था। इस कार्यक्रम के बाद से अचानक मंत्रालय के अलग-अलग विभागों में देशभर से किसानों के खत आने शुरू हो गए हंै, जिनमें किसानों की समस्याओं का जिक्र है। प्रतिदिन आने वाले खतों की तादाद अचानक 100-150 से बढ़कर एक हजार से ऊपर पहुंच गई है। इतनी बड़ी संख्या में समस्याओं से भरी चिट्ठियों का जवाब देने के लिए विभाग के पास पहले से कोई नीति नहीं थी इसलिए आनन-फानन में इसे लेकर पीएमओ में चर्चा की गई। बताया गया है कि चिट्ठियों के जरिए मंत्रालय से बड़ी संख्या में खतों के शुरू होने को लेकर प्रधानमंत्री के रणनीतिकार एक सकारात्मक प्रतिक्रिया मान रहे हैं। इसका सीधा मतलब ये भी निकाला जा रहा है कि रेडियो पर प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम को लोग गंभीरता से ले रहे हंै। यहां तक की खेती व किसानी से जुड़े तबके में भी प्रधानमंत्री को गंभीरता से सुना जा रहा है। ऐसे में पीएमओ चाहता है कि इस कार्यक्रम के जरिए किसी भी विभाग से जुड़े अधिकारियों से अगर लोग अपनी पीड़ा कहना चाहते हैं तो उसका समाधान और उचित जवाब दिया जाए। माना जा रहा है कि कृषि विभाग में तत्काल प्रभाव से इसीलिए किसानों के खतों का जवाब देने और उन पर उचित कार्रवाई के लिए संबधित विभाग के अधिकारी तक पहुंचाने के लिए एक अधिकारी की निगरानी में मन की बात प्रकोष्ठ की स्थापना की गई है। खतों का जवाब देने से लेकर समस्याओं का समाधान करने के लिए एक समय सीमा भी तय की गई है। बताया जा रहा है कि किसानों के अधिकांश मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा व पंजाब से आ रहे हैं। जिनमें बेमौसम बरसात से तबाह हुई फसलों को लेकर मुआवजे और अन्य तरह के सवालों की भरमार है। उच्च स्तरीय सू़़त्रों का ये भी कहना है कि सभी मंत्रालयों में मन की बात प्रकोष्ठ की स्थापना के लिए पीएमओ में गंभीर मंथन चल रहा है। इस प्रकोष्ठ का मसला प्रधानमंत्री के कार्यक्रम से जुड़ा होने के कारण अधिकारी इसे अपने गले में फांस मान रहे हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते साल अक्टूबर से हर महीने मन की बात कार्यक्रम के जरिए राष्ट्र को रेडियो पर संबोधित करते रहे हैं। अमरीका में भी राष्ट्रपति के रेडियो संबोधन की परंपरा है। किसानों से पिछले महीने इस कार्यक्रम के जरिए संवाद के बाद से विपक्ष ने मोदी की आलोचना की थी, जिसके बाद से ये कार्यक्रम चर्चाओं में है।

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