• इस वर्ष होगी भारतीय अर्थव्यवस्था की अग्निपरीक्षा!

    नई दिल्ली ! अमरीकी फेडरल रिजर्व के इस साल के अंत तक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के संकेत के बाद अब यह साफ हो गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की अग्निपरीक्षा इसी साल शुरू हो सकती है, हालाँकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लगार्ड समेत कई विशेषज्ञ कह चुके हैं कि भारत इस स्थिति के लिए पहले से कहीं ज्यादा तैयार है।...

    नई दिल्ली !   अमरीकी फेडरल रिजर्व के इस साल के अंत तक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने के संकेत के बाद अब यह साफ हो गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की अग्निपरीक्षा इसी साल शुरू हो सकती है, हालाँकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लगार्ड समेत कई विशेषज्ञ कह चुके हैं कि भारत इस स्थिति के लिए पहले से कहीं ज्यादा तैयार है।फेडरल रिजर्व की अध्यक्ष जेनेट येलेन ने शुक्रवार को सैन फ्रांसिस्को में एक सम्मेलन में कहा, आर्थिक परिस्थितियों में लगातार हो रहे सुधार के मद्देनजर इस साल के अंत तक ब्य़ाज दरों में एक निश्चित दायरे में बढ़ोतरी संभव है।  इससे पहले फेडरल रिजर्व की नियमित समीक्षा बैठक के बाद ब्याज दरों के संबंध में जारी दिशा-निर्देश से 'धैर्यपूणÓ शब्द हटा दिया गया था। हालाँकि अभी भी आर्थिक मोर्चे पर कमजोर आँकड़ों के मद्देनजर विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्रीय बैंक अचानक दरें बढ़ाने के बदले धीरे-धीरे इस दिशा में कदम बढ़ा सकता है। अमरीका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी से एक बार फिर मई-जून 2013 जैसी स्थिति पैदा हो सकती है जब अमरीका के प्रोत्साहन पैकेज में कटौती करने से विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार से पैसा निकालना शुरू कर दिया था। दरें बढऩे से डॉलर में मजबूत की संभावना है जिससे भारत का व्यापार घाटा भी डॉलर मूल्य में बढ़ सकता है। मार्च के मध्य में भारत दौरे पर आई आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लगार्ड ने कहा था कि भारत इस समय 2013 जैसी स्थिति का मुकाबला करने के लिए बेहतर स्थिति में है। भारत ने पहले से ही इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। सरकार ने चालू खाता घाटा और व्यापार घाटा कम करने के लिए कई नीतिगत निर्णय लिए हैं। इसमें सरकारी खर्चों में कटौती, सब्सिडी पर आने वाला खर्च कम करना, करों का दायरा बढ़ाना और कर चोरी रोकने के उपाय करना आदि शामिल है। इसके अलावा सरकार ने विनिर्माण में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 'मेक इन इंडियाÓ अभियान भी चलाया हुआ है और निवेशकों का विश्वास जीतने के लिए उनके अनुकूल माहौल तैयार किया जा रहा है। इन सभी उपायों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में उपलब्ध पूँजी और इसकी तरलता बढ़ाना है जिससे संकट के समय किसी भी झटके को झेलने के लिए अर्थव्यवस्था को तैयार किया जा सके।  रिजर्व बैंक ने भी ब्याज दरों में जनवरी और मार्च में दो बार चौथाई-चौथाई प्रतिशत की कमी कर पूँजी लागत कम करने के उपाय किये हैं, हालाँकि इसके बावजूद व्यावसायिक बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती के प्रति उदासीन रवैया अपनाया हुआ है। आरबीआई ने विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने की दिशा में भी कई उपाय किये हैं। इसने लगातार डॉलर की खरीद की है जिससे 20 मार्च को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के रिकॉर्ड 339.99 अरब डॉलर पर पहुँच गया है। हालाँकि केंद्रीय बैंक के डिप्टी गवर्नर आर. गाँधी ने पिछले दिनों कहा था कि यह ठीकठाक स्थिति है, लेकिन अमेरिका में ब्याज दरों में संभावित वृद्धि के मद्देनजर मुद्रा भंडार और बढ़ाये जाने की जरूरत है। इसके अलावा 2013 के मुकाबले वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 40 प्रतिशत कम हैं जिससे भारत का व्यापार संतुलन बेहतर हुआ है। डॉलर के मुकाबले रुपये में आई तुलनात्मक मजबूती और स्थिरता के कारण भी भारत इस बार अमरीकी दबाव को झेलने में ज्यादा सक्षम है। हालाँकि सुश्री येलेन ने कहा है कि ब्याज दरों में कब और कितनी बढ़ोतरी की जायेगी यह उस समय की आर्थिक परिस्थितियों और भविष्य में आने वाले आर्थिक आँकड़ों पर निर्भर करेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कमजोर आर्थिक आँकड़ों के बीच ब्याज दरों में मामूली बढ़ोतरी होती भी है तो इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि ऐसे में विदेशी निवेशक जल्दबाजी में पैसा निकालने की बजाय थोड़ा इंतजार करना पसंद करेंगे।

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