• श्रीलंका में तमिल चरमवाद से सावधान रहे भारत

    नई दिल्ली ! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के नए नेतृत्व के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। लेकिन इसके साथ ही मोदी को श्रीलंका में तमिल चरमवाद से सावधान रहने की भी जरूरत है। राजीव गांधी के बाद श्रीलंका का दौरा कर मोदी ने इतिहास रचा है। राजीव गांधी ने 1987 में श्रीलंका का दौरा किया था।...

    नई दिल्ली !   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के नए नेतृत्व के साथ संबंध प्रगाढ़ बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। लेकिन इसके साथ ही मोदी को श्रीलंका में तमिल चरमवाद से सावधान रहने की भी जरूरत है। राजीव गांधी के बाद श्रीलंका का दौरा कर मोदी ने इतिहास रचा है। राजीव गांधी ने 1987 में श्रीलंका का दौरा किया था। उस समय राजीव गांधी ने तमिल अलगाववाद को समाप्त करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था, जिसकी वजह से 1991 में उन्हें अपनी जान भी गंवानी पड़ी।मोदी ने श्रीलंका यात्रा के दौरान जाफना का दौरा कर कइयों का दिल जीत लिया, जो मुख्यमंत्री सी.वी विग्नेश्वरन के नेतृत्व वाली उत्तरी प्रांतीय परिषद (एनपीसी) का केंद्र माना जाता है। यह समय श्रीलंका के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है जो दशकों से जारी जातीय संघर्ष को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है, जिसकी वजह से देश दो हिस्सों में बंटा हुआ है। इसमें एक तरफ सिंहली और दूसरी तरफ तमिल समुदाय है।मई 2009 में सैन्य संघर्ष में तमिल विद्रोही संगठन लिट्टे का सफाया हो गया था।इस साल जनवरी में महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति चुनाव हार गए, और उसके बाद उन्होंने इस हार के लिए पश्चिम, विशेष रूप से भारत को जिम्मेदार ठहराया।हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव से यह भी पता चला कि राजपक्षे को अभी भी सिंहली क्षेत्रों में व्यापक समर्थन प्राप्त है।यह इतना अधिक संवेदनशील समय था कि विग्नेश्वरन की अध्यक्षता में एनपीसी ने सिरिसेना के भारत के प्रथम दौरे से ठीक पहले फरवरी में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सिलसिलेवार रूप से श्रीलंका सरकार पर तमिलों के नरसंहार का आरोप लगाया गया।इसमें यह भी कहा गया कि तमिलों को राजपक्षे या सिरिसेना सरकार द्वारा या फिर अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप किसी भी तरह से श्रीलंकाई तंत्र से न्याय मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। इस कदम से भारत को काफी शर्मीदगी का सामना करना पड़ा। यही नहीं विग्नेश्वरन ने मोदी के साथ जाफना बैठक में तमिल मुद्दों को बेहतर और रचनात्मक तरीके से सुलझाने के लिए श्रीलंका और भारत की सरकारों के साथ ही उत्तरी और पूर्वी प्रांतीय परिषदों के बीच वार्ता का आह्वान किया।यह ठीक वही स्थिति है, जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू एवं कश्मीर मुद्दे के समाधान में हुर्रियत शामिल होने की मांग करता है। यह आश्चर्यजनक है कि भारत और श्रीलंका के साथ अपनी प्रांतीय परिषद की प्रत्यक्ष वार्ता की मांग करते हुए विग्नेश्वरन ने स्वयं अपनी ही पार्टी को दरकिनार किया है। भारत अलग-थलग पड़े श्रीलंका को जोड़ने की कोशिश कर रहा है, जो कि आसान काम नहीं है। देश को यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि तमिल उग्रवाद भारत विरोधी है। यह हमेशा विरोधी रहा है और रहेगा।भारत को श्रीलंका में इन चरमपंथियों के प्रति सहयोग दिखाने में सावधानी बरतनी चाहिए। इसमें आश्चर्य नहीं है कि विग्नेश्वरन श्रीलंका में किसी तरह के सुलह के बावजूद पश्चिम में मौजूद तमिलों में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।

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