• अंतरिक्ष में चीन की छलांग से अमेरिकी साख को खतरा

    नई दिल्ली ! अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में चीन के तेज विकास करने की वजह से अंतरिक्ष में अमरीकी सैन्य क्षमता का प्रभाव खत्म हो जाएगा। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के भूमण्डलीय संकट और सहयोग संस्थान के विशेषज्ञों की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। यह रिपोर्ट अमरीकी संसद के लिए तैयार की गई है और 2 मार्च को प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम किसी भी तरह से अमरीकी, रूसी या यूरोपीय अन्तरिक्ष कार्यक्रमों से कमतर नहीं है। ...

    नई दिल्ली !  अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में चीन के तेज विकास करने की वजह से अंतरिक्ष में अमरीकी सैन्य क्षमता का प्रभाव खत्म हो जाएगा। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के भूमण्डलीय संकट और सहयोग संस्थान के विशेषज्ञों की रिपोर्ट में यह बात कही गई है।  यह रिपोर्ट अमरीकी संसद के लिए तैयार की गई है और 2 मार्च को प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम किसी भी तरह से अमरीकी, रूसी या यूरोपीय अन्तरिक्ष कार्यक्रमों से कमतर नहीं है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि  चीन और अमरीका के बीच टकराव होता है तो चीन की विकसित अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी अमरीका के सैन्य उपग्रहों के लिए खतरा पैदा कर सकती है। इस सिलसिले में चर्चा करते हुए रूसी सैन्य विशेषज्ञ व्लादीमीर द्वोरकिन ने कहा, सचमुच उपग्रहों को निशाना बनाकर अमरीकी फौजी मशीन को विकलांग किया जा सकता है, क्योंकि उपग्रहों पर ही अमरीका की सारी सुरक्षा क्षमता निर्भर करती है। उन्होंने बताया कि किसी भी तरह की अमरीकी खूफिया कार्रवाई या अमरीकी सैन्य नियंत्रण कार्रवाई पूरी तरह से अंतरिक्ष में तैनात उपग्रहों पर ही निर्भर करती है। इसीलिए जब भी अंतरिक्ष सम्बन्धी कोई नया आविष्कार सामने आता है या अंतरिक्ष में कोई नया परीक्षण किया जाता है, अमरीका चिन्तित होने लगता है। अब अमरीका को यह डर है कि एक दिन चीन अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में उस स्तर पर पहुँच जाएगा, जब उसकी उपग्रह रोधी क्षमता वास्तव में इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी कि वह सेना कि नियन्त्रित करने की अमरीकी अंतरिक्ष क्षमता को बरबाद कर सकेगी। चीन के सैन्य अंतरिक्ष कार्यक्रम के अनुसार वह सभी कक्षाओं में ऐसे विभिन्न प्रकार के हथियार तैनात करना चाहता है, जो अन्तरिक्ष यानों और उपग्रहों को बेकार कर सकें। अमरीकी विशेषज्ञ भी इस ओर ध्यान दे रहे हैं। रूसी विशेषज्ञ व्लादीमीर येव्सेयेफ ने कहा,चीन ऐसी क्षमता का विकास कर रहा है, जिसके माध्यम से वह न केवल उपग्रहों को तकनीकी तौर पर अक्षम बना देगा, बल्कि वह उन्हें अंधा भी कर देगा। खासकर इसके लिए वह दुश्मन के अन्तरिक्ष में तैनात उपग्रहों के पास कुछ ऐसे माइक्रो-उपग्रह भेजेगा, जो उसे घेर कर उसे पूरी तरह से अन्धा कर देंगे। इस दिशा में काम किया जा रहा है। यह अलग बात है कि यह काम अभी किस स्तर तक पहुंचा है। शायद काम अभी परीक्षण के दौर में ही है। सैन्य विश्लेषक कन्सतान्तिन सिव्कोफ का कहना है कि चीन अंतरिक्ष में अमरीका को चुनौती दे सकता है और इसके लिए वह पहले से ही तकनीकी आधार का निर्माण कर चुका है। सबसे पहले वह उपग्रह विरोधी हथियार बना रहा है। यही वह वास्तविक हथियार है, जिसका चीन निर्माण कर रहा है। अन्य क्षेत्रों में प्रतिद्वन्द्विता करते-करते चीन इस हथियार का भी निर्माण करने में लगा हुआ है, जैसे अमरीका ने रॉकेट हमले को रोकने के लिए अन्तरिक्ष यानों में तैनात की जा सकने वाली लाजेर तोपों का निर्माण किया है। चीन भी ऐसी तोपें बना रहा है। अमरीका बैलिस्टिक रॉकेटों को नाकाम करने के लिए अंतरिक्ष में ये लाजेर तोपें तैनात करना चाहता है। चीन भी ऐसी ही तोपें बना रहा है। अब चीन को एक ऐसा देश माना जाना चाहिए, जो आधुनिकतम तकनीक और अभिनव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे, बहुत आगे बढ़ आया है। वह दूसरे देशों के बेहद करीब पहुंच गया है, लेकिन बाकी बची शेष दूरी भी वह आने वाले सालों में पूरी कर लेगा। पिछले साल अप्रैल में चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी चिन फिंग ने कहा था कि चीन को अन्तरिक्ष में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की जरूरत है। इसके साथ-साथ उसे प्रतिद्वन्द्वी देशों, सबसे पहले अमरीका द्वारा अन्तरिक्ष के सैन्यकरण का जवाब भी देना चाहिए। पिछले जुलाई माह में, अमरीकी खूफिया एजेन्सियों के अनुसार, चीन ने पृथ्वी के समीप की कक्षाओं में तैनात उपग्रहों को नष्ट करने वाले एक मिसाइल का परीक्षण किया था। हालांकि निशाने को नष्ट करके नहीं देखा गया था। यदि इस बात को ध्यान में रखा जाए कि अपने उपग्रह विरोधी हथियार का पहला परीक्षण चीन ने सन् 2007 में किया था, तो साफ है कि अब वह इस क्षेत्र में अपनी क्षमता बढ़ाने में लगा हुआ है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बावजूद कि  चीन अपने इस हथियार का विकास कर रहा है, वह शायद ही इस तरह के हथियार को अन्तरिक्ष में तैनात करेगा क्योंकि चीन ने संयुक्त राष्ट्र संघ की उस सन्धि पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके अनुसार अन्तरिक्ष में हथियारों की तैनाती पर प्रतिबन्ध लगाया गया है। परन्तु अमरीका ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है।     

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