• भाजपा ने अपने सिद्धांतों की चढ़ाई बलि,'दो संविधान और दो निशान से अब परहेज नहीं

    जम्मू ! 23 जून 1953 को जब भारतीय जनसंघ के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत जम्मू-कश्मीर में हुई तो उसके बाद से लेकर आज तक भाजपा और उसके सहयोगी संगठन आरएसएस का कश्मीर को लेकर एक ही नारा रहा है 'दो संविधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगें।Ó समय के साथ जम्मू-कश्मीर से दो प्रधान तो खत्म हो गए पर न ही दो संविधान एक बन पाए और न ही दो निशानों में से एक को हटाया जा सका। दो संविधान और दो निशान का मुद्दा भी था ...

     सत्ता के लिए पीडीपी के साथ हुआ गठबंधन अब भाजपा व पीडीपी के नेताओं के बदल गए हैं सुर जम्मू !    23 जून 1953 को जब भारतीय जनसंघ के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत जम्मू-कश्मीर में हुई तो उसके बाद से लेकर आज तक भाजपा और उसके सहयोगी संगठन आरएसएस का कश्मीर को लेकर एक ही नारा रहा है 'दो संविधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगें।Ó समय के साथ जम्मू-कश्मीर से दो प्रधान तो खत्म हो गए पर न ही दो संविधान एक बन पाए और न ही दो निशानों में से एक को हटाया जा सका। दो संविधान और दो निशान का मुद्दा भी था भाजपा के जम्मू कश्मीर के चुनावी अभियान में। बाप-बेटी का शासन खत्म करेंगें के मुद्दे को तो गांठ में बांधा ही गया था। बदले में जम्मू संभाग की जनता ने भाजपा की झोली में 25 सीटें डाल दी। हालांकि यह इतनी नहीं थी कि भाजपा राज्य में अपने बलभूते सरकार का गठन कर पाती या फिर किसी दूसरे राजनीतिक दल के साथ गठबंधन की सूरत में मुख्यमंत्री का पद मांग सकती। नतीजा सामने हैं। भाजपा ने सत्ता की भूख को मिटाने की खातिर पीडीपी के साथ गठबंधन कर लिया। उस पीडीपी के साथ जिसे मिटाने की खातिर नरेंद्र मोदी ने भी एड़ी चोटी का जोर लगाते हुए राज्य की जनता से अपील की थी कि वह बाप-बेटी के राज से जम्मू-कश्मीर को मुक्ति दिलवा दें। पर राज्य को बाप-बेटी के शासन से मुक्ति नहीं मिली। इसे और 6 सालों के लिए राज्य में पक्का करने की खातिर भाजपा ने खुद मुहर लगा दी। भाजपा ने अब तो अपने ही उस नारे को भी भुला दिया जिसे मुद्दा बना वह 62 सालों से राज्य की जनता समेत देश के लोगों को 'बेवकूफÓ बनाती आई है। यह नारा था देश में न ही दो संविधान चलने देंगें और न ही दो निशान होगें।Ó आज जब मुफ्ती मुहम्मद सईद मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हीं दो निशानों की छांव में बैठे थे जिनको अब भाजपा के मंत्री अपने सरकारी वाहनों पर 6 साल तक लगाए फिरेंगे। शायद 6 साल तक वे अपने नारे को भी भुला देना चाहेंगे और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को भी जिन्होंने राज्य के अलग संविधान और झंडे के खिलाफ कुर्बानी दी थी। सत्ता हाथ में आते ही भाजपा और पीडीपी के सुर भी बदलने शुरू हो गए। भाजपा के नेता और उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह कहते थे कि राज्य की जनता धारा 370 को नहीं हटाना चाहती। वे शायद उन कश्मीरियों की बात कर रहे थे जिन्होंने उन्हें वोट नहीं दिए पर वे उन जम्मू संभाग के मतदाताओं को याद नहीं रखना चाहते जिन्होंने उनकी झोली में 25 सीटें इसी आशा के साथ डाली थी कि भाजपा धारा 370 को हटाने की दिशा में कुछ करेगी। पर अब निर्मल सिंह कहते हैं कि यह अगली बार सोचेंगे जब जनता धारा 370 को हटाने को पूर्ण बहुमत देगी। एक कार्यकर्ता का कहना था कि केंद्र में तो बहुमत ही मिला है। सबसे रोचक बात यह थी कि राज्य में चुनावों की सफलता का सेहरा पाकिस्तान और आतंकियों के सिर बांधने वाले मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की इस बात कोई जवाब भाजपा की ओर से नहीं दिया गया है। शायद भाजपा को डर है कि प्रतिक्रिया करने पर वे दो निशान की सवारी से वंचित हो सकते हैं।

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