• हर किसी की समझ से परे है पीडीपी-भाजपा का गठजोड़

    श्रीनगर ! कहते हैं प्यार और जंग में सब जायज होता है। पर यह कथन राजनीति में सबसे ज्यादा फिट बैठता है। तभी तो राज्य में दो दिनों के बाद सत्ता संभालने जा रहा पीडीपी-भाजपा का गठजोड़ किसी के हलक से नीचे नहीं उतर रहा है। इस गठबंधन के प्रति रोचक तथ्य यह है कि दोनों ही दलों के कार्यकर्ता सबसे अधिक परेशान हैं।...

     श्रीनगर !  कहते हैं प्यार और जंग में सब जायज होता है। पर यह कथन राजनीति में सबसे ज्यादा फिट बैठता है। तभी तो राज्य में दो दिनों के बाद सत्ता संभालने जा रहा पीडीपी-भाजपा का गठजोड़ किसी के हलक से नीचे नहीं उतर रहा है। इस गठबंधन के प्रति रोचक तथ्य यह है कि दोनों ही दलों के कार्यकर्ता सबसे अधिक परेशान हैं। उनकी परेशानी यह है कि वे इस गठबंधन पर खुशी मनाएं या फिर मातम। इस गठबंधन को लेकर होने वाली प्रतिक्रियाएं सिर्फ सोशल मीडिया पर ही नहीं हैं। बल्कि गली-नुक्कड़ों में भी है। अगर सोशल मीडिया पर आने वाली प्रतिक्रियाएं इसे मतदाताओं के साथ किया जाने वाला सबसे बड़ा धोखा करार दिया जा रहा हे तो जम्मू संभाग में भाजपा के वे कार्यकर्ता अपने विरोधी राजनीतिक दलों के उन संवादों का जवाब नहीं तलाश पा रहे हैं जो उन्हें 'बाप-बेटीÓ के राज से मुक्ति के उनके द्वारा लगाए जाने वाले नारों की याद दिला रहे हैं। भाजपा ने पहली बार राज्य में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 25 विधानसभा सीटें हथिया ली थीं। इस जीत के पीछे का श्रेय संभाग के उनके उन मतदाताओं को जाता था जिन्होंने वाकई 'बाप-बेटीÓ और 'बाप-बेटाÓ के शासन से मुक्ति की खातिर भाजपा के पक्ष में जम कर वोटिंग की थी। जानकारी के लिए ये नारे भाजपा नेताओं ने ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भीर अपनी चुनावी सभाओं में लगा कर भाजपा के लिए वोट मांगे थे। और बाप-बेटी का संबोधन मुफ्ती मुहम्मद सईद तथा उनकी बेटी के लिए किया गया था जबकि बाप-बेटा का संबोधन फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दल्ला के लिए किया गया था। पर अब भाजपा कार्यकर्ता हैरान और परेशान हैं। भाजपा नेतृत्व पहली बार राज्य में बनने जा रही भाजपा गठबंधन वाली सरकार पर खुशी मनाने को कह रहा है तो काडर के लिए परेशानी यह है कि वह काहे की खुशी मनाए। 'राज तो फिर से बाप-बेटी का ही होगा। मुख्यमंत्री तो छह साल के लिए उन्हीं का होगा, हमारे हाथ क्या आया बाबा जी का ठुल्लू,Óएक कट्टर भाजपा कार्यकर्ता गुस्से में तिलमिलाया था। ऐसा ही कुछ हाल पीडीपी कार्यकर्ताओं का कश्मीर में है। वे एक दूसरे का मुंह ताक रहे हैं। हालांकि पीडीपी नेता उन्हें समझाने की मुहिम में उसी दिन से जुटे हुए हैं जिस दिन से यह बात सामने आई है कि पीडीपी भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाने जा रही है। हालांकि पीडीपी काडर यह कह कर अपने कार्यकर्ताओं को समझाने की कोशिश में है कि मुख्यमंत्री का पद पीडीपी के पास ही रहेगा और नेतृत्व भी। इसलिए भाजपा से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि उनके बकौल भाजपा तो एक 'कठपुतलीÓ बन कर ही सरकार में शामिल होगी। पीडीपी ने इस बार कश्मीर से खूब वोट बटोरे थे। नेशनल कांफ्रेंस के खिलाफ जहर उगल कर नहीं बल्कि कश्मीरियों को भाजपा के आ जाने का डर दिखला कर वोट बटोरे गए थे। अपनी रैलियों और भाषणों में खुद मुफ्ती मुहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती ने भाजपा के बढ़ते कदमों का डर कश्मीरियों को दिखाया था। कश्मीर के सभी समीकरणों के बदल जाने का डर दिखाया था। पर अब वह डर कहां गया। फिलहाल इसकी तलाश में पीडीपी काडर भी जुटा हुआ है। जैसा माहौल और स्थिति भाजपा काडर की जम्मू संभाग में है वैसी ही दशा और परिथतियों से पीडीपी का कश्मीरी काडर जूझने लगा है। ऐसा भी नहीं है कि दोनों ही राजनीतिक दलों का काडर इस गठबंधन से परेशान हो बल्कि उनके नेताओं को भी अपने अपने इलाकों में पांव तले से जमीन खिसकने का अंदेशा इसलिए पैदा हो गया है ।क्योंकि पहली बार उत्तरी और दक्षिणी धु्रव मिल रहे हैं और उसका असर कहीं न कहीं तो होगा ही। स्पष्ट शब्दों में कहें तो दोनों ही राजनीतिक दलों पर यह गठबंधन अस्तित्व का संकट पैदा कर सकता है।

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