• भूकंप के बाद के झटके

    नेपाल में भूकंप से जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। लोग शिविरों में रहने को मजबूर हैं। शनिवार के भूकंप के बाद रविवार और सोमवार को भी बार-बार भूकंप के हल्के झटके आए, जिससे दहशत बढ़ रही है। लोग फोन और सोशल नेटवर्किंग साइट्स से अपने प्रियजनों का हाल-चाल लेने की कोशिश कर रहे हैं। संचार के इन तीव्रगामी साधनों से आपदा प्रबंधन आसान हो जाता है। लेकिन कुछ शरारती तत्व इनका दुरुपयोग करने से बाज नहींआ रहे और स्थिति को बिगाडऩे वाली अफवाहें फैला रहे हैं। एक अफवाह उड़ाई गई कि चांद उल्टा हो गया है, जो अनहोनी की निशानी है।...

    नेपाल में भूकंप से जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। लोग शिविरों में रहने को मजबूर हैं। शनिवार के भूकंप के बाद रविवार और सोमवार को भी बार-बार भूकंप के हल्के झटके आए, जिससे दहशत बढ़ रही है। लोग फोन और सोशल नेटवर्किंग साइट्स से अपने प्रियजनों का हाल-चाल लेने की कोशिश कर रहे हैं। संचार के इन तीव्रगामी साधनों से आपदा प्रबंधन आसान हो जाता है। लेकिन कुछ शरारती तत्व इनका दुरुपयोग करने से बाज नहींआ रहे और स्थिति को बिगाडऩे वाली अफवाहें फैला रहे हैं। एक अफवाह उड़ाई गई कि चांद उल्टा हो गया है, जो अनहोनी की निशानी है। जबकि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस माह चांद ऐसा ही दिखता है और इसमें कोई अनहोनी नहींहै। दूसरी अफवाह नासा के नाम से उड़ाई गई। व्हाट्स ऐप आदि पर संंदेश भेजा जा रहा है कि नासा ने खबर दी है कि उत्तर भारत में अगला भूकंप रात 8.06 बजे आएगा। इसकी तीव्रता 8.2 होगी। अगले भूकंप के और भी भयावह होने की आशंका भी जतलाई जा रही है। सच यह है कि नासा ने ऐसी कोई भविष्यवाणी नहींकी है और अब यह अफवाह इतनी बढ़ गई है कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय को अपील जारी करनी पड़ी कि लोग अप्रामाणिक सूचनाओं को नहीं मानें और सिर्फ सरकार के अधिकृत लोगों की बात पर ध्यान दें। गृह मंत्रालय से बयान जारी किया गया है कि किसी विदेशी या घरेलू संगठन ने इस तरह का कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया है। भूकंप की आशंका की खबरें पूरी तरह निराधार और गलत हैं। लोगों से अपील की गई कि इस तरह की अफवाहों पर ध्यान नहीं दें। केवल गृह, रक्षा, विदेश मंत्रालयों, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण या भारतीय मौसम विभाग के अधिकृत लोगों के बयानों पर ही ध्यान दिया जाए। एक अफवाह पानी के जहरीला होने की फैलाई गई है। जबकि वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकंप की तीव्रता यदि नौ के आसपास हो तो धरती के फटने से पानी में बालू आ सकती है, पानी गर्म हो सकता है, लेकिन जहरीला कतई नहीं। किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद जीवन को पटरी पर लाना कठिन चुनौती होती है। सरकारें अपने-अपने तरीके से इस पर काम करती हैं, कई स्वयंसेवी संगठन, गैरसरकारी संस्थाएं भी सैनिकों की तरह ही दिन-रात और कठिनाइयों की परवाह किए बगैर राहत कार्यों में जुट जाती हैं। जो घटनास्थल तक नहींपहुंच पाते, वे राहत कोष में तरह-तरह से दान देकर इंसानियत का फर्ज निभाते हैं। तमाम कठिनाइयों के बावजूद जीवन पर आस्था इन सब वजहों से बनी रहती है। संचार तकनीकी का दुरुपयोग करने वालों की मंशा परपीड़ा का सुख लेने वालों की है। पहले से परेशान लोग डर और आशंका में कुछ दिन और बिताएं, यह देख उन्हें शायद प्रसन्नता होगी। लेकिन उनके ऐसे संदेशों को बिना सोचे-समझे आगे बढ़ाने वालों को विचार करना चाहिए कि जब आज तक भूकंप की भविष्यवाणी नहींकी जा सकी और न ही ऐसी कोई तकनीक विकसित की गई है कि भूकंप आने की पूर्व सूचना मिल सके, तो नासा अचानक ऐसी खबर कैसे दे सकता है। अगर उसने कोई उपकरण बना लिया है तो वह शनिवार को आए भूकंप के पहले भी सूचना दे सकता था। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स ऐप आदि का इस्तेमाल स्मार्ट फोन के सहारे आसान हो गया है, लेकिन सामान्य समझ की योग्यता के बिना इनका इस्तेमाल खतरों से भरा है, यह बात एक बार फिर जाहिर हो गई। एक ओर विनाशकारी भूकंप में दूसरों की पीड़ा समझने की जगह अपनी मौज में लगे रहने वाले अफवाहों का सहारा ले रहे हैं, दूसरी ओर एक ई-रिटेल कंपनी लेंसकार्ट ने इसे कारोबार बढ़ाने का जरिया बनाना चाहा। शनिवार के भूकंप के तुरंत बाद कंपनी ने छूट के लिए ग्राहकों से एक मैसेज 50 लोगों को भेज कर 3000 रुपए का चश्मा 500 रुपए में हासिल करने की पेशकश की थी। इसमें अंग्रेजी का जुमला 'शेक इट ऑफ लाइक द अर्थक्वेकÓ (भूकंप मचा दो) का इस्तेमाल किया था। इस विज्ञापन के बाद फेसबुक व ट्विटर पर कंपनी की जोरदार आलोचनाओं का सिलसिला चल पड़ा। बाद में कंपनी ने एक और एसएमएस भेजकर गलती से किए गए शब्दों के चयन पर माफी मांगी। नए संदेश में कहा गया, 'हम गलती से किए गए एसएमएस के शब्दों के चयन पर माफी मांगते हैं। हमारा इरादा किसी की भावना को आहत करना नहीं था।Ó लेंसकार्ट को अपनी भूल तुरंत समझ में आ गई कि हर मौका व्यापार का नहींहोता, उम्मीद की जाना चाहिए कि अफवाह उड़ाने वाले भी अपनी हरकतों से बाज आएंगे। अगर सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल सूझबूझ से हो, तो ऐसी अफवाहों को थामा जा सकता है।

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