नेपाल में आए भूकंप ने अपनी प्रगति पर मोहित इंसान को फिर उसकी सीमाओं का एहसास करा दिया। इस विनाशकारी भूकंप में आधिकारिक तौर पर 19 सौ से अधिक लोगों के मरने की सूचना है। भारत में भी कई राज्यों में भूकंप का असर दिखा, 60 से अधिक लोगों की मौत भी अलग-अलग स्थानों में हुई। आंधी, तूफान, चक्रवात, सूखा ऐसी तमाम आपदाओं का पूर्वानुमान तो अंतरिक्ष में भेजे गए उपग्रहों के माध्यम से लगाया जा सकता है, किंतु भूकंप कब और कहां आएगा, इसका पता लगाने का कोई उपकरण अब तक नहींबनाया जा सका है। भूकंप कितनी तीव्रता का आया, यह जरूर नापा जा सकता है। नेपाल में अभी जो भूकंप आया वह 7.9 तीव्रता का था। वैज्ञानिक इस क्षेत्र में किसी बड़े भूकंप का अनुमान तो लगा रहे थे, लेकिन किस वक्त आएगा, इसका कोई अंदाज नहींलगा पाए। इससे पहले 1932 में ऐसा बड़ा भूकंप आया था। नेपाल दुनिया के सबसे ज्यादा भूकंप संभावित क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र में पृथ्वी की इंडियन प्लेट (भारतीय भूगर्भीय परत) यूरेशियन प्लेट के नीचे दबती जा रही है और इससे हिमालय ऊपर उठता जा रहा है। हर साल लगभग पांच सेंटीमीटर ये प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे जा रही है और इससे हर साल हिमालय पांच मिलीमीटर ऊपर उठता जा रहा है। इससे वहां की चट्टानों के ढांचे में एक तनाव पैदा हो जाता है। जब ये तनाव चट्टानों की बर्दाश्त के बाहर हो जाता है तो ये भूकंप आता है। भूकंप रोकना इंसान के बस में नहींहै, लेकिन किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद स्थिति नियंत्रण में रहे, इसकी पूरी तैयारी रहनी चाहिए। विगत कुछ वर्षों में गुजरात, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड, कश्मीर इन तमाम प्रदेशों में प्रकृति का कहर किसी न किसी रूप में भारत ने सहा है। साल दर साल आपदा प्रबंधन की महत्ता समझ में आती गई। जो खामियां दिखी, उन्हें दुरुस्त किया गया और अब हम इस लायक हैं कि अपने देश के साथ-साथ दूसरे देशों की भी मदद कर सकते हैं। विगत वर्ष कश्मीर और पाकिस्तान में बाढ़ के वक्त भारत ने मदद का हाथ बढ़ाया था। इस बार नेपाल के लिए आपरेशन मैत्री चलाया जा रहा है। दुनिया के और देश तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी नेपाल की मदद के लिए आगे आए हैं, जैसे गुजरात के भूकंप के समय आए थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल के दुख को अपना दुख बताया, हर संभव मदद का आश्वासन दिया। आपरेशन मैत्री के तहत 10 विमानों को काठमांडू भेजा जा रहा है, जिसमें इंजीनियरिग टास्क फोर्स, पानी, खाना, एनडीआरएफ टीम, चिकित्सीय सेवा से जुड़े लोग और उपकरण और टेंट आदि रहेंगे। संकट की घड़ी में मैत्री निभाना ही चाहिए, लेकिन वर्तमान सरकार उसका जिस तरह से आलाप कर रही है, और मदद में मोदीजी का महिमामंडन किया जा रहा है, यह सरकार की प्रचारप्रियता की पराकाष्ठा दिखती है। 26 अप्रैल को प्रसारित मन की बात में मोदीजी ने कहा कि आपदाओं के कारण मन की बात करने का मन नहींहो रहा। फिर भी उन्होंने तमाम बातें की और अपनी पीठ ठोंकते हुए देशवासियों को इस देश की सहायता की परंपरा भी समझा दी। उन्होंने बताया कि यमन में किस तरह भारतीयों को बचाया गया और उनके साथ विदेशी नागरिकों को निकलने में मदद की। मोदीजी भारतीय परंपरा का इतना ज्ञान रखते हैं तो उन्हेंंयह भी पता होगा कि कल्याण के कार्यों का बखान नहींकिया जाता, इसलिए गुप्तदान जैसी परंपराएं विकसित हुईं। बहरहाल, यह वक्त नेपाल के साथ खड़े होने का है। भूकंप के बाद तहस-नहस हुए शहरों, कस्बों, गांवों में लोगों को नए सिरे से बसाने, रोजगार देने की व्यवस्था करनी होगी। बीमारियों से बचाव का इंतजाम करना होगा। अव्यवस्था के आलम में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती होगी। नेपाल लंबी राजनीतिक अस्थिरता से गुजरा है, उसके लिए ये तमाम कार्य कठिन होंगे। भारत उसका साथ देगा तो चीजें आसान होंगी।