• स्कूली बच्चों को मध्याह्न भोजन की लागत महज चार रूपए 65 पैसे

    नयी दिल्ली। बच्चों को पौष्टिक आहार देने और कूपोषण से बचाने के लिए सरकार की महत्वपूर्ण और दुनिया में अपनी तरह की अकेली मध्याह्न भोजन योजना में खाने की अधिकतम लागत महज चार रूपए 65 पैसे प्रति बच्चा है जिस पर संसदीय समिति ने नाराजगी जाहिर करते हुए दुघरटनाएं होने की आशंका व्यक्त की है। लोकसभा की महिलाों को शकि्तयां प्रदान करने संबंधी समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्याह्न भोजन योजना देशभर में 12 लाख 12 हजार स्कूलों क्रियान्वित हो रही है और 10 करोड 44 लाख बच्चे इसका लाभ उठा रहे हैं।...

    नयी दिल्ली। बच्चों को पौष्टिक आहार देने और कूपोषण से बचाने के लिए सरकार की महत्वपूर्ण और दुनिया में अपनी तरह की अकेली मध्याह्न भोजन योजना में खाने की अधिकतम लागत महज चार रूपए 65 पैसे प्रति बच्चा है जिस पर संसदीय समिति ने नाराजगी जाहिर करते हुए दुघरटनाएं होने की आशंका व्यक्त की है। लोकसभा की महिलाों को शकि्तयां प्रदान करने संबंधी समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्याह्न भोजन योजना देशभर में 12 लाख 12 हजार स्कूलों क्रियान्वित हो रही है और 10 करोड 44 लाख बच्चे इसका लाभ उठा रहे हैं। इस योजना से बच्चों को पौष्टिक आहार मिल रहा है और उनको कुपोषण से बचाने में मदद मिल रही है। इससे स्त्री पुरूष समानता की भावना विकसित होती है और बच्चों के स्वास्थ्य का विकास होता है। इस योजना खर्च केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर उठाते हैं।इसके लिए दोनों का अनुपात तीन-एक का होता है। प्राथमिक स्कूलों में प्रति बच्चे के आहार के लिए व्यय तीन रूपए 11 पैसे और माध्यमिक स्कूलों के लिये चार रूपए 65 पैसें निर्धारित की गयी है। समिति ने इस गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि इसे बढाया जाना चाहिए। समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि पूरे देश में पानी की एक बोतल की कीमत 10 रूपए प्रति कम कहीं भी नहीं है। जबकि दूसरी और बच्चों को पौष्टिक आहार देने के लिए तीन से चार रूपए निर्धारित किए जाते हैं। समिति ने कहा कि स्कूलों में परोसे जाने वाले मध्याह्न भोजन खाने की प्रति इकाई लागत वास्तविक आधार पर निर्धारित की जानी चाहिए अन्यथा मध्याह्न भोजन के बाद छात्रों के साथ दुघरटनाएं हो सकती है। रिपोर्ट में बिहार में मध्याह्न भोजन के बाद स्कूली छात्रों की मौत का जिक्र किया गया है। मध्याह्न भोजन प्रणाली की समीक्षा करने की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रति इकाई लागत, कैलोरी तथा भोजन तैयार करने की पद्धति की नियमित निगरानी की जानी चाहिए। हालांकि योजना में खंड, जिला और राज्य तथा केंद्र स्तर पर निगरानी समितियां गठित है लेकिन इनके कामकाज पर समिति ने नाराजगी जताई है और कहा है कि इनकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए जिससे की ये अपने काम को गंभीरता ले सके। यह योजना कक्षा एक से लेकर आठ तक के छात्रों के लिए सभी स्कूलों, मदरसों और मकतबों में लागू हैं। इस योजना के तहत भोजन तैयार करने के लिए 28 लाख 29 हजार रसोईयों और सहायकों को नियुक्त किया गया है। इनमेंसे 80 प्रतिशत महिलाएं हैं। दस लाख भंडार गृह बनाए गए हैं।

अपनी राय दें