कोलकाता। पश्चिम बंगाल सरकार की अनदेखी के कारण पिछले करीब 20 वषा6 से आर्सेनिक जैसे जहरीले रसायन के कारण त्वचा और किडनी के कैंसर से पीडित रहे यहां के सैकडों गावों के हजारों ग्रामीणों को आखिरकार फ्रेंच कंपनी की तकनीक से जीने की नयी उम्मीद मिली है। जमीन के पानी में आर्सेनिक के कारण राज्य के करीब 1.6 करोड लोग प्रभावित है। जहरीला पानी पीने के लिये मजबूर है। लेकिन राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में कोई कदम नही उठाने के बाद भारत में फ्रेंच कंपनी 1001 फोंटेनेस ने गांवों की समितियों, स्थानीय गैर सामाजिक संस्थाओं और सुलभ इंटरनेशनल के साथ मिलकर गांवों में उपलब्ध तालाबों, वर्षा से उपलब्ध होने वाले पानी और नदियों के जहरीले पानी को अपनी तकनीक से शोधन कर उपलब्ध कराने का काम किया है। खास बात यह है यह तकनीक कंबोडिया के बाद पहली बार भारत में उपयोग में लाई गई है। प्रत्येक संयंत्र को स्थापित करने के लिये करीब 10 लाख रूपये का खर्चा आता है। इस तकनीक के जरिये रोजाना करीब दो हजार लीटर पानी को शोधन कर बोतलो के जरिये गांवों के परिवारों को उपलब्ध कराया जा रहा है। हालांकि फिलहाल इस तकनीक का इस्तेमाल उत्तर 24 परगना, मुर्शिदाबाद, दक्षिण 24 परगना जिले के सुभाष ग्राम और नोडिया जिले में आने वाले मायापुर में उपयोग किया गया है। इस तकनीक के जरिये स्थानीय लोगों की मदद से गांवों में संयंत्र स्थापित किये गये है और हर परिवार को 50 पैसा प्रति लीटर की दर से पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।जमीन के पानी में आर्सेनिक के स्तर को इस तकनीक से काफी हद तक खत्म कर पीने लायक बनाया गया है। बंगलादेश सीमा से मात्र 14 किलोमीटर दूर स्थित मधुसूदन कांती गांव की कृषण कल्याण समिति ने एक निजी तालाब को खरीदकर इस तकनीक को गांव में स्थापित किया है जिससे पांच और गांवों को पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। गांव में करीब 150 परिवारों को इससे फायदा मिला है। अन्य गांवों में रहने वाले परिवारों की संख्या भी सैंकडो में है। तेगडिया गांव में रहने वाले सपन दास और 36 वर्षीय जया दास ने जहरीले पानी की समस्या को लेकर कहा, गांव में पिछले 20 वर्ष से जहरीला पानी आ रहा है जिससे अब तक लगभग हर परिवार के किसी न किसी व्यक्ति को कैंसर पेट या त्वचा की बीमारियों का सामना करना पडा है जबकि करीब एक वर्ष में तीन से चार लोगों की मौत आम है। जया ने कहा, गांव में कोई डॉक्टर या डिसपेंसरी की सुविधा नहीं है और कोलकाता शहर से यह करीब 100 किलोमीटर दूर है। मेरे पति अस्पताल में है। उन्हें कैंसर है और साथ ही त्वचा भी खराब हो चुकी है। लेकिन सरकार की ओर से कोई मदद नही मिली है। लेकिन विडबंना यह है कि खेती. मछली पालन. मांस बेचने जैसे पेशे पर पूरी तरह आश्रित ग्रामीणों के लिये इतनी कम दरों पर भी पानी खरीदना संभव नहीं है जबकि संस्था द्वारा हर परिवार को केवल 20 लीटर पानी ही मिल पा रहा है। गांवों में संयंत्र लगाने में मुख्य भूमिका निभा रहे सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने बताया कि आर्सेनिक के पानी को उबाल कर पीना और भी भयानक है क्योंकि इससे रसायन और जहरीला हो जाता है। उन्होंने बताया कि समय समय पर पानी की गुणवत्ता की जांच के लिये बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज और एनजीओ समय समय पर इसकी समीक्षा करती है। डा. पाठक ने राज्य सरकार से मिलने वाली मदद को लेकर कोई सीधा जवाब न देते हुये कहा कि सरकार नैतिक मदद कर रही है।साफ है कि वित्तीय मदद या अधिक प्लांट लगाने में अब भी राज्य की ममता बनर्जी सरकार उदासीन है।