• सक्रिय विधायिका के बिना शासन संभव नहीं : प्रणब

    नई दिल्ली ! राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि एक सक्रिय विधायिका के बिना शासन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि विधायिका जनता की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है। यह ऐसा मंच है जहां शिष्टतापूर्ण संवाद का उपयोग करते हुए, प्रगतिशील कानून के द्वारा जनता की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए सुपूर्दगी-तंत्र की रचना की जानी चाहिए। ...

    नई दिल्ली !   राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि एक सक्रिय विधायिका के बिना शासन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि विधायिका जनता की इच्छा को प्रतिबिंबित करती है। यह ऐसा मंच है जहां शिष्टतापूर्ण संवाद का उपयोग करते हुए, प्रगतिशील कानून के द्वारा जनता की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए सुपूर्दगी-तंत्र की रचना की जानी चाहिए। राष्ट्रपति ने 66वें गणतंत्र की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि इसके लिए भागीदारों के बीच मतभेदों को दूर करने तथा बनाए जाने वाले कानूनों पर आम सहमति लाने की जरूरत होती है। उन्होंने कहा, "बिना चर्चा कानून बनाने से संसद की कानून निर्माण की भूमिका को धक्का पहुंचता है। इससे, जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है। यह न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही इन कानूनों से संबंधित नीतियों के लिए अच्छा है।" उन्होंने कहा, "पिछला वर्ष कई तरह से विशिष्ट रहा है। खासकर इसलिए कि तीन दशकों के बाद जनता ने स्थाई सरकार के लिए, एक अकेले दल को बहुमत देते हुए, सत्ता में लाने के लिए मतदान किया है और इस प्रक्रिया में देश के शासन को गठबंधन की राजनीति की मजबूरियों से मुक्त किया है।"राष्ट्रपति ने कहा कि इन चुनावों के परिणामों ने चुनी हुई सरकार को, नीतियों के निर्माण तथा इन नीतियों के कार्यान्वयन के लिए कानून बनाकर जनता के प्रति अपनी वचनबद्धता पूरा करने का जनादेश दिया है। उन्होंने कहा, "मतदाता ने अपना कार्य पूरा कर दिया है; अब यह चुने हुए लोगों का दायित्व है कि वह इस भरोसे का सम्मान करें। यह मत एक स्वच्छ, कुशल, कारगर, लैंगिक संवेदनायुक्त, पारदर्शी, जवाबदेह तथा नागरिक अनुकूल शासन के लिए था।"

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