• अध्यादेश के खिलाफ आंदोलन की तैयारी

    नई दिल्ली ! केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध की तैयारियां शुरु हो गई हैं। शुरुआती दौर में भाकपा व माकपा के किसान संगठन की एक साथ आए हैं पर तैयारी इस आंदोलन में उन सभी संगठनों को जोडऩे की है, जो किसानों के लिए काम करते हैं। किसान संगठनों की कोशिश है, ऐसी सभी जगह आंदोलन तेज किए जाएं, जहां भूमि अधिग्रहण को लेकर आंदोलन चल रहे हैं या नया भूमि अधिग्रहण लाया जाना है।...

    भारत शर्मा भूमि अधिग्रहण के खिलाफ एकजुट हुए किसान संगठननई दिल्ली !   केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध की तैयारियां शुरु हो गई हैं। शुरुआती दौर में भाकपा व माकपा के किसान संगठन की एक साथ आए हैं  पर तैयारी इस आंदोलन में उन सभी संगठनों को जोडऩे की है, जो किसानों के लिए काम करते हैं। किसान संगठनों की कोशिश है, ऐसी सभी जगह आंदोलन तेज किए जाएं, जहां भूमि अधिग्रहण को लेकर आंदोलन चल रहे हैं या नया भूमि अधिग्रहण लाया जाना है।अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मौल्ला का कहना है, कि उनका संगठन लंबे समय से यह कोशिश कर रहा है, कि सभी किसान संगठनों को एक मंच पर लाया जाए, जिससे किसानों की लड़ाई को व्यापक बनाया जाए। यह कोशिश उसी प्रकार की होगी, जैसी मजदूर संगठनों ने की है। आज मजदूरों की तमाम मांगों को लेकर मजदूर संगठन एक साथ नजर आते हैं चाहे वह भारतीय मजदूर संघ हो, जो आरएसएस से जुड़ा है या इंटक, जो कांग्रेस से। हाल में कोयला मजदूरों की हड़ताल में भी इन संगठनों की एकता नजर आई, पर किसानों के तमाम संगठन अलग-अलग काम कर रहे हैं, इसीलिए किसानों के मुद्दों पर कोई प्रभावी लड़ाई नहीं लड़ी जा सकी है। इसका नतीजा यह है, कि आंदोलन बिखरा हुआ है, सरकार के हमले किसानों पर तेज होते चले जा रहे हैं और किसानों की हालत खराब होती चली जा रही है। हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के बाद इस बात की आवश्यकता फिर महसूस हुई है। शुरुआती तौर पर भाकपा व माकपा के किसान संगठन एक मंच पर आए हैं, पर आने वाले समय में इस आंदोलन में उन सभी किसान संगठनों को शामिल किया जाएगा, जो वाम मार्गी हैं। इन संगठनों की बैठक की तारीख अभी तय नहीं हुई है।    मुख्य प्रावधान जिन पर है आपत्ति 2013 के कानून में जमीन लेने के लिए निजी परियोजना के लिए 80 फीसदी व पीपीपी परियोजनाओं के लिए 70 फीसदी किसानों की सहमति का प्रावधान था, जिसे खत्म कर दिया गया है, अब किसान की सहमति की आवश्यकता नहीं है खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सिंचित जमीन के अधिग्रहण का प्रावधान नहीं, अगर आवश्यक हो, तब जिले की कुल सिंचित भूमि के 5 फीसदी के अधिक का अधिग्रहण किसी भी कीमत पर नहीं, जमीन लेने से पहले सोशल एसेसमेंट जरुरी था, इस प्रावधान को भी खत्म कर दिया गया है पहले निजी चिकित्सालय व शिक्षण संस्थाओं के लिए जमीन अधिग्रहण का प्रावधान इस एक्ट के तहत नहीं था, जमीन खरीदनी पड़ती थी, एक इन दोनों को भी शामिल कर लिया गया है2013 के कानून में प्रावधान था कि पांच साल जमीन का उपयोग नहीं होने पर उसे किसान को वापस कर दिया जाएगा, यह प्रावधान भी खत्म कर दिया गया है

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