• सड़क पर अराजकता

    देश में सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। सड़क पर गाड़ी चलाने वाले अक्सर खुद को राजा समझते हैं। उन्हें कानून का डर नहीं होता। उनके इस रवैये से सड़क पर चलने वाले सभ्य लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। दूसरों की जि़न्दगी को ले कर लापरवाह ये लोग कभी नशे में होते हैं, कभी सिर्फ रोमांच के लिए सड़क पर गाड़ी गलत तरीके से चलाते हैं, ऐसे लोगों में कानून का डर होना चाहिए। उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वो हलकी सज़ा या जुर्माना दे कर बच जाएंगे।...

    देश में सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। सड़क पर गाड़ी चलाने वाले अक्सर खुद को राजा समझते हैं। उन्हें कानून का डर नहीं होता। उनके इस रवैये से सड़क पर चलने वाले सभ्य लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। दूसरों की जि़न्दगी को ले कर लापरवाह ये लोग कभी नशे में होते हैं, कभी सिर्फ रोमांच के लिए सड़क पर गाड़ी गलत तरीके से चलाते हैं, ऐसे लोगों में कानून का डर होना चाहिए। उन्हें ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वो हलकी सज़ा या जुर्माना दे कर बच जाएंगे। हर जि़न्दगी अमूल्य है। जब कोई अपनी लापरवाही से किसी की जान लेता है तो वो मरने वाले के साथ उससे जुड़े कई लोगों के लिए बड़ी सज़ा होती है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की पीठ ने सोमवार को ये टिप्पणियां हरियाणा सरकार की अपील पर दिए गए फैसले में की। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें दो लोगों को गाड़ी से टक्कर मारकर मारने वाले को कुछ दिन जेल में गुजारने को ही सजा मानकर माफ कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने सौरभ बक्शी को मिली एक वर्ष की सजा को 24 दिन में तब्दील कर माफ कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि हमें यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि हाईकोर्ट ने पीडि़तों को मुआवजा देने के आधार पर उसकी सजा माफ कर दी। यह गलत रूप से दिखाई गई उदारता है। हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर सुप्रीम कोर्ट ने उसे छह माह की सजा देते हुए कहा कि वह तत्काल सरेंडर करे और जेल जाए। कोर्ट ने कहा कि ऐसी सजा न्याय का मजाक है। ऐसा अपराध न सिर्फ पीडि़तों को जिंदगी को खत्म करता है बल्कि उसके आसपास के लोगों को भी खतरे में डालता है। इन टिप्पणियों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संसद से आग्रह किया है कि वो लापरवाही से किसी की जान लेने के मामले में लगने वाली आईपीसी की धारा 304 ए में संशोधन करने पर विचार करे। दोषी को मिलने वाली सजा को बढ़ाने की कोशिश की जाए। गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 304 ए के तहत अधिकतम 2 साल की सजा और जुर्माना होता है। कई मामलों में दोषी कुछ ही दिन जेल में काट कर बाहर आ जाता है। यह अजीब दुर्योग है कि इधर सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं पर सजा सख्त करने की बात कही, उधर सड़क परिवहन मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए विधेयक के अंतिम मसौदे में सजा और जुर्माना दोनों कम करने का उल्लेख है, हालांकि यह विधेयक अभी संसद में पेश नहींहुआ है। विधेयक के अंतिम मसौदे में जुर्माने की राशि 3 लाख रुपए से घटाकर 50 हजार रुपए कर दी गई है। साथ ही दुर्घटना में किसी बच्चे की मौत होने पर सात साल की सजा भी घटाकर एक साल कर दी गई है। मंत्रालय ने विधेयक में हुए बदलाव की जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध कराई है। इसके अलावा ओवरस्पीडिंग की गलती को दोहराने पर लगने वाले जुर्माने को घटाकर एक हजार से लेकर 6 हजार तक कर दिया गया है, जबकि पहले प्रस्ताव में यह 5 हजार से 12,500 रुपए तक था। इसी तरह शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए पहले प्रस्तावित 30 हजार जुर्माने को घटाकर 10 हजार रुपए कर दिया गया है, यही गलती दोहराने पर 20 हजार रुपए तक बढ़ाने का प्रावधान है। मंत्रालय का तर्क है कि सजा, जुर्माना सख्त होगा तो ले-देकर मामले को रफा-दफा करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी, उसे रोकने के लिए ऐसा किया गया। भ्रष्टाचार रोकने के लिए सजा कम करने की बात को तर्क कहा जाए या कुतर्क यह जनता को तय करना चाहिए, जो सड़क पर बेधड़क चलने का अधिकार लगभग खो चुकी है। देश में जो लोग भ्रष्टाचार बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं, वे ही लोग सड़कों पर बढ़ती दुर्घटनाओं के भी जिम्मेदार हैं, अर्थात समाज का उच्च और उच्च मध्यमवर्ग। इस वर्ग के लोग ही हैं जो कानून जेब में रखना चाहते हैं और सड़कों पर मालिकाना हक। पैदल, साइकिल या रिक्शा सवार लोगों को ये हिकारत से देखते हैं, अपनी रफ्तार में इन्हें बाधक समझते हैं। किसी बड़ी सड़क दुर्घटना पर कोई कठोर सजा किसी बड़ी हस्ती को मिली हो, ऐसी नज़ीर देश में अब तक देखने को नहींमिली। सलमान खान पर कानून का शिकंजा कसा तो उनके ड्राइवर ने अपने बयान से उसे ढीला करवा दिया। अब अगर मंत्रालय का विधेयक मंजूर हो जाता है तो सुप्रीम कोर्ट ने जिन लोगों के लिए राजा शब्द का प्रयोग किया है, वे और मनमाने ढंग से सड़कों पर राज करेंगे।

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