• आर्थिक दबाव में नगरीय निकाय

    नगरीय निकायों पर अपना खर्च चलाने का दबाव बढ़ गया है। शहरी क्षेत्रों के विस्तार के साथ नागरिक सुविधाओं के लिए निकायों को संसाधन भी बढ़ाना है, जिस पर आने वाले खर्च की पूर्ति उन्हें अपने घरेलू आय से ही करना होगा, क्योंकि सरकार से इन्हें अब तक जो सहूलियतें मिलती रही हैं, उसमें कटौती हो जाएगी। सरकार ने साफ कर दिया है कि निकायों को सिर्फ योजना मद में ही राशि उपलब्ध कराई जाएगी। ऐसे में जरुरी हो गया है कि निकाय अपनी आय के नए विकल्प तलाश करें। ...

    नगरीय निकायों पर अपना खर्च चलाने का दबाव बढ़ गया है। शहरी क्षेत्रों के विस्तार के साथ नागरिक सुविधाओं के लिए निकायों को संसाधन भी बढ़ाना है, जिस पर आने वाले खर्च की पूर्ति उन्हें अपने घरेलू आय से ही करना होगा, क्योंकि सरकार से इन्हें अब तक जो सहूलियतें मिलती रही हैं, उसमें कटौती हो जाएगी। सरकार ने साफ कर दिया है कि निकायों को सिर्फ योजना मद में ही राशि उपलब्ध कराई जाएगी। ऐसे में जरुरी हो गया है कि निकाय अपनी आय के नए विकल्प तलाश करें। राजधानी के बाद दूसरे सबसे बड़े नगर निगम बिलासपुर का सालाना स्थापना व्यय करीब 340 करोड़ तक पहुंच गया है जबकि आय के सकल घरेलू स्त्रोतों से करीब पौने तीन सौ करोड़ रूपए ही जुट पाते हैं। इस तरह करीब 50 करोड़ रूपए उसे नए विकल्पों से जुटाने होंगे, जो आसान नहीं है। नगरवासियों पर करों का बोझ बढ़ाने वाला अप्रिय फैसला करना कौन चाहेगा, लेकिन नगर निकायों की सत्ता का सुख-रसूख चाहिए तो कुछ तो करना ही होगा। बिलासपुर नगर निगम के वर्ष 2015-16 के बजट में विभिन्न करों, शुल्कों में वृद्धि करके आर्थिक संसाधन बढ़ाने की कोशिश की गई है। ऐसी उम्मीद जाहिर की गई है कि इससे निगम को अपना खर्च चलाने के लिए इतनी राशि जुटाई जा सकेगी, जिससे काम चल जाए। यह कोशिश की गई है कि करदाताओं को अधिक बोझ भी महसूस न हो, और निगम को एक बड़ी धनराशि मिल जाए। कुछ ऐसे छोटे-छोटे प्रयास किए गए हैं, जिनसे लगे कि वृद्धि मामूली है। मसलन प्रकाश और सफाई पर लिए जाने वाले कर में वृद्धि की गई है जो संपत्तिकर के साथ जोड़कर वसूल किया जाता है। इसी तरह अस्थाई दुकानों तथा अब तक जिन संपत्तियों पर कोई कर नहीं था उन पर कर लगाने का निर्णय लिया गया है। करों में वृद्धि के प्रस्तावों का नगरवासियों पर कितना भार पड़ेगा, उसका सही-सही अनुमान कर गणना प्रक्रिया के स्पष्ट होने के बाद ही लगाया जा सकता है। हालांकि निगम पदाधिकारियों का मानना है कि करों में मामूली वृद्धि की गई है। करों में वृद्धि भारी हो या हल्की इसे अलोकप्रिय ही कहा जाता है। यही कारण है कि नगरीय निकायों में  इस तरह की वृद्धि से बचने की भरसक कोशिश की जाती रही हैं। नगर निकायों को मजबूत बनाने के लिए अधोसंरचनाओं के विकास पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए उतना दिया ही नहीं गया। अब सरकार चाहती है कि नगरीय निकाय अपने खर्चों के लिए आत्मनिर्भर बनें। ऐसा एकाएक हो पाना संभव नहीं है। पहले इन निकायों को ऐसे साधनों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करना होगा जिससे आय हासिल की जा सकी। खर्च के मामले में मितव्ययी होना होगा और फिजूलखर्ची रोकनी होगी। सफाई से लेकर विभिन्न सुविधाओं के लिए कम खर्चीली तकनीक के बारे में सोचना होगा। सरकार को भी देखना होगा कि उसके फैसले नगर निकायों के लिए बोझ न बनें। स्वीपिंग मशीनों जैसा सफेद हाथी देकर सरकार इन निकायों की मदद नहीं कर सकती। आज आधा-आधा करोड़ की मशीनें कबाड़ खाने की शोभा बढ़ा रही हैं। ये निकाय आर्थिक रुप से तभी आत्मनिर्भर हो सकेंगे जब शहरी विकास की योजनाएं तैयार करते समय शहर विशेष की जरुरतों और व्यावहारिक पक्षों पर भी गौर किया जाए।

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