• चेतावनी नहीं, चर्चा से निकलेगा हल

    छत्तीसगढ़ की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका बेहतर सुविधाओं की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं। सरकार ने उनकी मांगों पर विचार करने का आश्वासन तो दिया है, पर वह चाहती है कि वे पहले काम पर लौट जाएं। इससे पहले उन्हें तीन दिन में काम पर लौटने को कहा गया था, लेकिन वे हड़ताल पर अड़ी रहीं और अब सरकार तीन अप्रैल की तारीख तय करते हुए काम पर न लौटने की स्थिति में उन्हें सेवा से निकाल देने और उनकी जगह नई नियुक्तियां करने का ऐलान कर दिया है।...

    छत्तीसगढ़ की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका बेहतर सुविधाओं की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं। सरकार ने उनकी मांगों पर विचार करने का आश्वासन तो दिया है, पर वह चाहती है कि वे पहले काम पर लौट जाएं। इससे पहले उन्हें तीन दिन में  काम पर लौटने को कहा गया था, लेकिन वे हड़ताल पर अड़ी रहीं और अब सरकार तीन अप्रैल की तारीख तय करते हुए काम पर न लौटने की स्थिति में उन्हें सेवा से निकाल देने और उनकी जगह नई नियुक्तियां करने का ऐलान कर दिया है। इस समय आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रतिमाह मानदेय के रुप में 4 हजार और सहायिकाओं को तीन हजार रूपए मिलते हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों का संचालन केन्द्र सरकार की सहायता से होता है। इसमें आधा अंशदान राज्य सरकार का होता है। कुछ राज्यों में मानदेय अधिक है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका मानदेय में बढ़ोतरी के साथ भविष्य की सुरक्षा भी चाहती हैं। गे्रच्यूटी और पेंशन संबंधी उनकी मांगें इससे ही जुड़ी हुई हैं। उनकी ये मांगें जायज भी हैं। उनके भी भविष्य निधि खाते हों और आड़े वक्त में विशेष आर्थिक सुरक्षा और निशुल्क उपचार की सुविधा मिले, यह क्यों नहीं हो सकता। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका आज सरकार की एक महत्वपूर्ण इकाई के रुप में अपनी भूमिका निभा रही हैं। वे सिर्फ आंगनबाड़ी केन्द्र ही नहीं चला रहीं बल्कि ग्रामीण स्तर पर हर कार्य में उनकी भागीदारी हो गई है। इस लिहाज से उनके मानदेय में जितनी बढ़ोतरी होनी चाहिए उतनी नहीं हुई। यह ठीक है कि बेरोजगारी के आलम में एक खोजने पर कई मिल जाएंगी, लेकिन व्यवस्था के बारे में निर्णय इस आधार पर नहीं लिए जाने चाहिए। यदि सरकार उनकी मांगें मान लेती हैं तो प्रश्न सरकारी खजाने पर बढऩे वाले बोझ का भी है। सरकार इसका हल उनकी कुछ मांगों को तत्काल पूरा करने तथा कुछ मांगों को आगे चलकर स्वीकार करने का आश्वासन देकर भी निकाल सकती है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं को पता है कि उन्हें सेवा से हटा देना सरकार के लिए सहज भी नहीं है। वे तीन अप्रैल तक काम पर लौट आएगी, इसकी संभावना फिलहाल नजर नहीं आती। सरकार को भी बातचीत करने के रास्ते बंद नहीं करने चाहिए। हड़ताल से आंगनबाड़ी केन्द्र बंद है और बड़ी संख्या में बच्चों, महिलाओं को पोषण आहार नहीं मिल रहा है। उम्मीद तो यह थी कि सरकार जल्दी ही कोई हल निकाल लेगी मगर यह हड़ताल कुछ ज्यादा ही खिंच गई। गांवों में सिर्फ आंगनबाड़ी केन्द्र चलाने वाली कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं को ही बेहतर सुविधाएं देने का मामला ही नहीं है बल्कि मितानिनें भी सुविधाओं में बढ़ोतरी की मांग कर चुकी हैं। मानदेय आधारित सेवाओं के मामले में सरकार को एक समग्र दृष्टि अपनानी चाहिए। यह देखा जाना चहिए कि विभिन्न स्तरों पर सरकारी सेवाओं में लगे कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ की तुलना में मानदेय तथा दूसरी सुविधाएं किस अनुपात में दी जा सकती हैं।

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