• जल सम्पदा के संरक्षण के लिए कारगर कानून बनाने की जरूरत

    जलगांव ! 'देश की जल संपदा के संरक्षण के लिए कारगर कानून बनाने की जरूरत है। पुराने कानून कोई काम के नहीं हैं। सरकारें कारगर कानून बनाने के लिए तैयार नहीं हैं और राजनेताओं को सत्ता पाने के अलावा और किसी चीज से कोई सरोकार नहीं रह गया है। संविधान में भी जल को कोई खास अहमियत नहीं दी गई है।' यह बात 'जल-जन-अन्नÓ सुरक्षा के मुद्दे पर आज जलगांव स्थित गांधी तीर्थ के विशाल सभागार में शुरु हुए दो दिन के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कही।...

    'जल-जन-अन्नÓ सुरक्षा के मुद्दे पर सम्मेलन का आयोजन जलगांव !   'देश की जल संपदा के संरक्षण के लिए कारगर कानून बनाने की जरूरत है। पुराने कानून कोई काम के नहीं हैं। सरकारें कारगर कानून बनाने के लिए तैयार नहीं हैं और राजनेताओं को सत्ता पाने के अलावा और किसी चीज से कोई सरोकार नहीं रह गया है। संविधान में भी जल को कोई खास अहमियत नहीं दी गई है।' यह बात 'जल-जन-अन्नÓ सुरक्षा के मुद्दे पर आज  जलगांव स्थित गांधी तीर्थ के विशाल सभागार में शुरु हुए दो दिन के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कही।  सर्वधर्म प्रार्थना के साथ शुरु हुए इस सम्मेलन में देश भर से सैंकड़ों की संख्या में समाज सेवी, जल योद्धा, योजनाकार, वैज्ञानिक और उद्योगपतियों के साथ युवा शिरकत कर रहे हैं। सम्मेलन के समापन पर प्रतिभागियों द्वारा दिए गए सुझावों के आधार पर जलगांव जल घोषणा जारी की जाएगी जिसे लागू करने के लिए सरकार और जल और अन्न सुरक्षा से जुड़े संगठनों को प्रेरित किया जाएगा। जल संरक्षण संबंधी कारगर कानून बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए राजेंद्र सिंह ने कहा मौजूदा दौर में पीने का पानी और खाने के लिए अन्न का संकट भयावह होता जा रहा है इससे देश और दुनिया के लोगों को तभी मुक्ति दिला सकेंगे जब हम इस दिशा में कुछ बेहतर करने के लिए तैयार होंगे। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम एक दूसरे को कोसने के बजाय आम लोगों के साथ मिलकर ऐसी कार्यनीति बनाएं जो जल संरक्षण के लिये जरूरी हो। गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्षा स राधा भट्ट ने बहुत तेजी से बड़े पैमाने पर जल के दोहन और दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि हमने धरती के ऊपर और उसके अंदर उपलब्ध जल को अपनी नादानी से खत्म कर दिया है। हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन केवल अधिक से अधिक मुनाफे के लिए इस कदर कर रहे हैं कि आने वाले संकट में चाहकर भी इससे मुक्त नहीं हो पाएंगे। उनने गांधी जी के दिखाए रास्ते पर चलकर निदान खोजने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा। नदियों को जोडऩे के प्रयासों को नकारते हुए राधा भट्ट ने कहा कि यह प्रकृति के साथ निर्मम खिलवाड़ होगा उनने कहा कि हर नदी का अपना व्यक्तित्व है और उसका परिवेश है। हम जिस तरह अपना धड़ किसी दूसरे के शरीर में जोड़ नहीं सकते उसी तरह एक नदी को दूसरी नदी को जोड़ नहीं सकते। उनने कहा कि प्रकृति में पहले से जो समन्वय और संतुलन बरकरार है उसे नदी जोडऩे के नाम पर खत्म नहीं किया जाना चाहिए। अपने बीज वक्तव्य में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के पूर्व सचिव माधव राव चितले ने वैश्विक स्तर पर जल की समस्या की चर्चा करते हुए कहा कि दुनिया के सभी देशों में कमोबेश जल संकट है और इससे मुक्ति के लिए केवल सरकार से उम्मीद करना बेकार है।मौजूदा दौर में पीने का पानी और खाने के लिए अन्न का संकट भयावह होता जा रहा है इससे देश और दुनिया के लोगों को तभी मुक्ति दिला सकेंगे जब हम इस दिशा में कुछ बेहतर करने के लिए तैयार होंगे: राजेन्द्र सिंह,जलपुरुष

अपनी राय दें