स्वयं रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने उठाए हैं सवाल पहले के मुकाबले घटा औद्योगिक उत्पादन नई दिल्ली ! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी 'मेक इन इंडियाÓ कार्यक्रम के शुरू होने के तीन महीने के अंदर ही सवाल उठने लगे हैं। ये सवाल इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि ये विपक्ष के कोरे आरोप नहीं हैं, बल्कि इन्हें पिछले एक साल में महंगाई को काबू करने और अर्थव्यवस्था में तेजी लाने वाले रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने उठाया है। इसके अलावा 'मेक इन इंडियाÓ अभियान की शुरुआत के बाद के पहले महीने में ही औद्योगिक उत्पादन बढऩे की बजाय घट कर तीन साल के न्यूनतम स्तर पर आ गया है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विकास के नये स्तर तक ले जाने के लिए मेक इन इंडिया अभियान की घोषणा की थी, जिसकी शुरुआत 25 सितंबर को की गई। लेकिन, जब अक्टूबर महीने के औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े जारी किए गए तो अनपेक्षित रूप से उत्पादन बढऩे की बजाय 4.2 प्रतिशत घटकर तीन साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। यद्यपि इसे सीधे मेक इन इंडिया से नहीं जोड़ा जासकता, लेकिन यह गिरावट चिंता का सबब अवश्य है। इस तथ्य के दो पहलू हैं। पहला यह कि पहले से यहां जो कंपनियां हैं सरकार उनका मनोबल ऊंचा बनाए रखने में नाकाम रही है। दूसरे, औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ लीक से हटकर करने की जरूरत है। सरकार मेक इन इंडिया की इस समस्या का राम बाण समाधान बताती है। लेकिन, 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी की आहट तीन चार साल पहले ही पहचान लेने वाले आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनकी मानें तो यह सही है कि विनिर्माण और निर्यात के दम पर पिछले 30 साल में एशियाई देशों ने काफी तरक्की की है, पर इसका यह मतलब नहीं कि हम भी उसी राह पर चलकर तरक्की कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भारत अलग देश है और उसकी अर्थव्यवस्था अलग दौर में उभर रही है। यह वह दौर है जब दुनिया अभी भी 2008 की मंदी से पूरी तरह उबर नहीं पाई है। जिन विकसित देशों ने चीन में निवेश किया था वहाँ बेरोजगारी का संकट है। अब वे अपने ही देश में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए श्री राजन कहते हैं कि मेक इन इंडिया के साथ मेक फॉर इंडिया भी जोड़ा जाना चाहिए। यानि भारत में तो बनायें ही भारत के लिए भी बनायें। साथ ही उनका मानना है कि विनिर्माण या किसी खास क्षेत्र पर जोर देने की जरूरत नहीं है जैसा की सरकार कह रही है। वह विदेशी कंपनियों को विशेष छूट देने में भी यकीन नहीं रखते। उनका कहना है कि आप भारतीय कंपनियों और उद्यमियों के लिए यहाँ कारोबार के अनुकूल परिस्थितियां पैदा करें और वही परिस्थितियाँ विदेशी निवेशकों को भी आर्कषित करने में कामयाब होंगी। कुल मिलाकर श्री राजन मेक इन इंडिया के खिलाफ नहीं हैं बल्कि इसे सरकार जिस तरह और जिस लक्ष्य के साथ लागू करना चाहती है उससे यह सहमत नहीं है। सरकार का जोर विदेशी पूंजी पर है, जबकि श्री राजन को विदेशी पूंजी की बजाय घरेलू पूंजी पर ज्यादा भरोसा है। सरकार दूसरे देशों को अपने बाजार के रूप में देखती है जबकि वह पहले घरेलू माँग पूरी करने पर जोर देते हैं ताकि आयात पर निर्भरता कम की जा सके। विशेषग्यों का कहना है कि सरकार को श्री राजन और औद्योगिक उत्पादन के ॉंकड़ों से उठे इन सवालों से मायूस होने की बजाय सीख लेते हुये आगे बढऩे की जरूरत है ताकि देश की वर्तमान जरूरतों और मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य के अनुरूप उसे ढाल कर सफल बनाया जा सके।