'दिशा-निर्देश जारी करने के लिए स्कू ल स्वतंत्रÓनई दिल्ली । दिल्ली उच्च न्यायालय ने नर्सरी में दाखिले के लिए पिछले साल उपराज्यपाल की ओर से जारी दिशा-निर्देशों को आज निरस्त करते हुए कहा कि इससे स्कूल प्रबंधन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। न्यायमूर्ति मनमोहन ने उपराज्यपाल की ओर से जारी दिशा-निर्देश को निरस्त कर दिया। न्यायालय के इस फैसले के बाद दाखिले के लिए स्कूल से बच्चे के घर की निकटता, सहोदरों को तरजीह और माता-पिता के पूर्व में स्कूल के छात्र रहने जैसे पूर्व निर्धारित मानदंड समाप्त हो जाएंगे और स्कूल 2007 की गांगुली समिति की रिपोर्ट के अनुसार मानदंड तय कर सकेंगे। न्यायालय ने उपराज्यपाल की ओर से पूर्व में अधिसूचित दिशा-निर्देशों के संबंध में कहा कि इससे स्कूल प्रबंधन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। स्कूलों को छात्रों के नामांकन सहित अन्य मामलों में अधिक स्वायत्तता होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि 18 दिसंबर, 2013 को उपराज्यपाल ने नामांकन से संबंधित एक दिशानिर्देश जारी किया था, जिसके खिलाफ अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। दिशा-निर्देशों को निरस्त करते हुए अदालत ने कहा कि कोई बच्चा किस स्कूल में पढ़ेगा यह फैसला उसके माता-पिता को करना चाहिए, सरकार को नहीं। अदालत ने कहा, हमारी यह राय है कि बच्चा किस स्कूल में पढ़े, यह अधिकार उनके माता-पिता को देने और स्कूलों को नामांकन का अधिकार देने से निजी स्कूलों की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में छात्रों के नामांकन को लेकर किसी प्रकार की धांधली होती है या वे इस संबंध में अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं।