• उत्तर प्रदेश में बेदम हुआ 'किसान राग'

    लखनऊ ! किसी जमाने में किसानों की पार्टी का प्रतिमान रहे राष्ट्रीय लोकदल से किसान इस कदर जुदा हो गए कि उन्हें जोडऩा मुश्किल है। पार्टी के मुखिया रहे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह सही मायने में किसानों के नेता थे लेकिन जब से उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह ने पार्टी की कमान संभाली है किसान ही इस पार्टी से दूर हो गए हैं। वह दौर भी खत्म हो गया जब चौधरी चरण सिंह की एक आवाज पर पूरे उत्तर प्रदेश के किसान कहीं भी रैली-आंदोलन के लिए टूट पड़ते थे।...

    अब कुंद पडऩे लगी है किसानों के नाम पर राजनीति लखनऊ !    किसी जमाने में किसानों की पार्टी का प्रतिमान रहे राष्ट्रीय लोकदल से किसान इस कदर जुदा हो गए कि उन्हें जोडऩा मुश्किल है। पार्टी के मुखिया रहे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह  सही मायने में किसानों के नेता थे लेकिन जब से उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह ने पार्टी की कमान संभाली है किसान ही इस पार्टी से दूर हो गए हैं। वह दौर भी खत्म हो गया जब चौधरी चरण सिंह की एक आवाज पर पूरे उत्तर प्रदेश के किसान कहीं भी रैली-आंदोलन के लिए टूट पड़ते थे।अब तो पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य क्षेत्र और बुंदेलखंड में इस पार्टी के नामलेवा ही नाममात्र के लिए बचे हैं। पार्टी संगठन को शायद अब इसकी कुछ चिंता हुई है, तभी तो रालोद नेता और चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी ने लखनऊ में डेरा डालकर कुछ लोगों को जोडऩे की कवायद शुरू की है लेकिन पार्टी कार्यालय में जितनी कम संख्या में लोग आए थे उससे लगता नहीं कि छोटे  चौधरी की योजना परवान चढ़ पाएगी। कारण कि संगठन के कर्ता-धर्ताओं की पुरजोर कोशिश के बावजूद महज 30-32 लोग ही पार्टी में शामिल होने पहुंच सके। हालांकि रालोद के प्रदेश महासचिव कहते हैं कि इसे संख्या बल के आधार पर देखने की जरूरत नहीं। हमारे साथ जो लोग जुड़ रहे हैं, अच्छे और संघर्षशील लोग हैं। पार्टी अपना सदस्यता अभियान तेज करेगी। रालोद के भविष्य के नेता की मौजूदगी होने के बावजूद इतने कम लोगों की कार्यालय में मौजूदगी पर एक किसान राम गोविंद की बात मौजूं लगी। कहा कि जब हमारे नेताओं को दिल्ली और मेरठ के अलावा कहीं जाने की फुरसत ही नहीं, तो इनके साथ कौन आए और क्यों आए। ये लोग तो सरकार में शामिल होते हैं और अपने व मेरठ क्षेत्र के लोगों के बारे में ही सोचते हैं। शेष उत्तर प्रदेश तो इनके एजेंडे में रहता ही नहीं। एक पदाधिकारी ने भी नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह सही है कि हमारा संगठन कुछ जिलों में तो है ही नहीं, और जहां है भी, काफी कमजोर है। कारण साफ है कि हमारे बड़े नेताओं को पश्चिगी उत्तर प्रदेश के अलावा कहीं कुछ दिखता ही नहीं। लखनऊ तक आने में भी संकोच करते हैं। उन्हें सिर्फ दिल्ली ही मुफीद लगती है।              जयंत चौधरी संगठन की बैठक के बाद जब पत्रकारों से मुखातिब हुए तो उन्हें यहां भी कुछ ऐसे ही सवालों से रूबरू होना पड़ा। हालांकि छोटे चौधरी ने यह कहकर जरूर अपना बचाव किया कि हमारी पार्टी किसानों के मुद्दों पर आंदोलन करती है। जब उनसे पूछा गया कि आपका सबसे बड़ा किसान आंदोलन कब हुआ तो जयंत बहुत साफ जवाब नहीं दे पाए। वर्ष 2009 के एक आंदोलन का हवाला दिया जिसमें किसान खुद ही अपने अधिकार के लिए अड़े थे।  

अपनी राय दें