• सर्वोच्च न्यायालय का बड़ा फैसला : पति को पत्नी से रिश्ता खत्म करने की दी अनुमति

    नई दिल्ली ! सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज से जुड़े एक मामले में आज महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर पत्नी अपने पति और उसके परिवार पर दहेज का झूठा मुकदमा करती है तो ऐसी स्थिति में पति को तलाक लेने का अधिकार होगा। न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद पंत की खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 (ए) से संबंधित एक मामले में के. श्रीनिवास और के. सुनीता को पति-पत्नी का रिश्ता खत्म करने की इजाजत दे दी। न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान हमने स्पष्ट तौर पर पाया कि पत्नी की तरफ से एक झूठी आपराधिक शिकायत दर्ज कराई गई। इस तरह की शिकायत वैवाहिक जीवन में हो रही कू्ररता को सामने ला देती है।...

     'पत्नी का झूठा मुकदमा तलाक का पुख्ता आधार' एक मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया फैसला अगर पत्नी अपने पति और उसके परिवार पर दहेज का झूठा मुकदमा करती है तो ऐसी स्थिति में पति को तलाक लेने का अधिकार होगा : सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली !  सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज से जुड़े एक मामले में आज महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर पत्नी अपने पति और उसके परिवार पर दहेज का झूठा मुकदमा करती है तो ऐसी स्थिति में पति को तलाक लेने का अधिकार होगा। न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद पंत की खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 (ए) से संबंधित एक मामले में के. श्रीनिवास और के. सुनीता को पति-पत्नी का रिश्ता खत्म करने की इजाजत दे दी। न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान हमने स्पष्ट तौर पर पाया कि पत्नी की तरफ से एक झूठी आपराधिक शिकायत दर्ज कराई गई। इस तरह की शिकायत वैवाहिक जीवन में हो रही कू्ररता को सामने ला देती है। उसने श्रीनिवास और सुनीता को अलग होने पर सहमति जताई। यह पूरा मामला 20 वर्षों पुराना है। तीस जून 1995 को पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया और 14 जुलाई 1995 को पति ने कू्ररता और रिश्ते में दोबारा सुधार की संभावना न हो पाने को आधार बनाते हुए तलाक का मुकदमा दाखिल किया था। इस मुकदमे के जवाब में पत्नी की ओर से पति और ससुराल पक्ष के सात लोगों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं और दहेज निरोधक कानून के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज कराई थी। पत्नी की इस शिकायत पर पति को परिवार सहित जेल जाना पड़ा। हैदराबाद की एक अदालत ने 30 जून 2000 को पति और उसके परिवारिक सदस्यों को राहत देते हुए पत्नी द्वारा लगाए आरोपों से मुक्त कर दिया। एक अन्य परिवार अदालत ने 30 दिसंबर 1999 को कू्ररता और रिश्ते में दोबारा सुधार की गुंजाइश न होने को आधार बनाकर पति को तलाक की स्वीकृति भी दे दी लेकिन पत्नी की अर्जी पर उच्च न्यायालय ने तलाक के फैसले को दरकिनार कर दिया जिसके खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर की गई। खंडपीठ ने कहा यह स्पष्ट रूप से इस तथ्य को मजबूत करता है कि काफी सोचने विचारने के बाद यह कदम उठाया गया था। ऐसा करना निश्चित तौर से हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (एक) के अंतर्गत निर्विवाद तरीके से कू्ररता के अंतर्गत आता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय को इन परिस्थितियों में इस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए था कि पत्नी ने जान-बूझकर एक झूठी शिकायत दर्ज कराई थी। ऐसे में स्पष्ट हो जाता है कि उसने पति और उसके परिवार वालों को शर्मसार करने और सजा दिलवाने के लिए ऐसा किया था।

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