• मदर टेरेसा का धर्म

    भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्य किस कदर खतरे में हैं और सांप्रदायिक शक्तियां कितनी ताकतवर हो चुकी हैं, इसके उदाहरण रोजाना पेश हो रहे हैं। ताजा मामले में मदर टेरेसा पर धर्मपरिवर्तन का आरोप लगाया गया है। ...

    भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्य किस कदर खतरे में हैं और सांप्रदायिक शक्तियां कितनी ताकतवर हो चुकी हैं, इसके उदाहरण रोजाना पेश हो रहे हैं। ताजा मामले में मदर टेरेसा पर धर्मपरिवर्तन का आरोप लगाया गया है। राजस्थान के भरतपुर में एक ग़ैर-सरकारी संगठन अपना घर के एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि गऱीबों की सेवा करने के पीछे मदर टेरेसा का मुख्य मक़सद लोगों को ईसाई बनाना था। मदर टेरेसा की सेवा अच्छी रही होगी, पर इसमें एक उद्देश्य हुआ करता था कि जिसकी सेवा की जा रही है उसको ईसाई बनाया जाए। आरएसएस के सरसंघचालक कहते हैं, सवाल सिर्फ़ धर्म बदलने का नहीं है। लेकिन यह धर्मांतरण सेवा के नाम पर किया जाता है, तो इससे सेवा का मूल्य ख़त्म हो जाता है। अब संघ और उस जैसी दक्षिणापंथी संस्थाएं देश को समझाएंगी कि सेवा का मूल्य क्या होता है। वैसे मदर टेरेसा पर इस तरह के आरोप पहली बार नहींलगे हैं। जब वे जीवित थींतब भी उन पर उंगलियां उठाई गईं कि वे ईसाई धर्म के प्रचार के लिए दीनदुखियों की सेवा करती हैं। लेकिन इन आरोपों से उन्होंने सेवा का जो आजीवन व्रत लिया था, उसे अधूरा नहींछोड़ा। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके द्वारा स्थापित संस्थाएं भूखे, गरीब, बीमार लोगों की सेवा-सुश्रुषा में लगी हुई हैं। भारत में ईसाई मिशनरियां हमेशा से हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर रहीं हैं। उन पर धर्मपरिवर्तन कराने के आरोप लगते रहे हैं। आरोप लगाने वाले कभी इस बात का जिक्र नहींकरते कि बीमार, भूखे, अशिक्षित और धर्म के नाम पर हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों को किन नारकीय परिस्थितियों में रहना पड़ता है, जिनमें जाना तो दूर, देखने की जहमत भी तथाकथित धार्मिक समाज नहींउठाता, वहां ये ईसाई मिशनरियां जाती हैं और मदद का हाथ बढ़ाती हैं। इसमें धर्मपरिवर्तन होता भी है तो सम्मान से जीवन की राह पर आगे बढऩे के लिए होता है। सदियों से चल रहे अपमान को बर्दाश्त करते रहने या फिर दंगों में जिंदगी भेंट करने के लिए नहीं। जहां तक सवाल मदर टेरेसा की आलोचना का है, तो इस समाज ने गांधीजी तक को नहींबख्शा। गांधीजी हों या मदर टेरेसा, वे इंसान ही थे, और उनमें अच्छाइयां और बुराइयां सामान्य मनुष्यों की तरह ही रही होंगी। लेकिन उन्होंने इतने अधिक नेक काम किए कि उनके दोष मामूली पड़ गए और वृहत्तर समाज उन्हें भगवान की ऊंचाई पर बिठाने लगा। आज गांधीजी को पूरा विश्व श्रद्धा से याद करता है और मदर टेरेसा को महान मानने वाले भी केवल ईसाई नहींहै, समाज के हर तबके में उनके सेवाभाव को आदर्श मानने वाले लोग मौजूद हैं। 1997 में उनकी मृत्यु पर विश्व के बड़े नेता भारत आए थे, यह इस बात का प्रमाण है कि समूची दुनिया में उनके प्रति कितना आदर था। 1949 में मदर टेरेसा ने मिशनरीज़ आफ चैरिटी की स्थापना की, 125 देशों में सात सौ से ज्यादा निराश्रित गृह खोले। सड़क पर छोड़ दिए गए नवजात शिशु, परिजनों द्वारा त्याग दी गईं मानसिक बीमारी का शिकार महिलाएं, घर से निकाल दिए गए कुष्ठ रोग या अन्य असाध्य रोगों के मरीज़, ऐसे लाखों-करोड़ों बेसहारा लोगों के लिए मदर टेरेसा ने ममता दर्शाई और उन्हें सहारा दिया, उनकी सेवा की। स्वर्ग और नर्क की अवधारणाएं मरने के बाद की हैं, लेकिन जीते जी इंसान को अगर गरिमा के साथ जीवन जीने का अवसर न मिले, तो यह नर्क के समान ही है। मदर टेरेसा के कार्यों ने इंसानी जीवन की गरिमा को महत्व दिया। जहां तक सवाल धर्म का है तो महावीर, बुद्ध, नानक सबने अपने दर्शन, आदर्श, सिद्धांतों के अनुरूप मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए नए धर्मों का प्रतिपादन किया और समाज को उस पर चल कर मानवधर्म निभाने का मार्ग दिखाया। धर्म परिवर्तन तो तब भी हुआ था, तो क्या अब बौद्ध, जैन, सिख सबको हिंदुत्व की राह पर चलने की साजिशें रची जाएंगी। मदर टेरेसा ने कहा कि वे जीसस क्राइस्ट की सेवा में हैं। भाजपा की सांसद मीनाक्षी लेखी ने उनकी इस बात को उद्धृत करते हुए कहा कि वे स्वयं कहती थींकि वे सामाजिक कार्यकर्ता नहींहैं, वे जीसस की सेवा में हंै, जिनका काम ईसाइयत से लोगों को जोडऩा है। नवीन चावला की किताब से लिए गए इस उद्धरण को महज एक वाक्य में नहीं, संपूर्णता में समझने की आवश्यकता है। लेकिन संघ ऐसा करेगा, इसमें संदेह है। उसका काम हिंदू धर्म को बढ़ावा देना, उसे बढ़ाने के लिए घर वापसी जैसे कार्यक्रम करना, सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ाना है। भाजपा भी यही चाहती है कि देश धर्म के झगड़े में उलझा रहे और वह अपने अघोषित आर्थिक, धार्मिक एजेंडे को लागू करे।

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