• 1984 दंगा : सिखों को मुआवजे का मरहम ,पीडि़तों को पांच-पांच लाख रुपए देगी सरकार

    नई दिल्ली ! यह केंद्र सरकार की राजनीतिक साफगोई है या फिर वोटों की सियासत जिसकी उदारता ने 1984 के सिख दंगों में मारे गए लोगों के पीडि़त परिजनों को एक बड़ी राहत दी है। मोदी सरकार ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों को परिजनों को मुआवजा देने का ऐलान किया है। जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार सिख दंगों में मारे गए 3325 लोगों में से प्रत्येक के नजदीकी परिजन को पांच-पांच लाख रुपए देगी। सिख दंगा पीडि़तों को करीब 30 साल बाद मुआवजा मिलेगा। विदित हो कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगे फैले थे। 31 अक्टूबर को पूर्व प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि है। इंदिरा गांधी की 1984 में उनके अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।...

      करीब 30 साल बाद मिलेगा मुआवजा  अन्य हिंसा पीडि़तों को भी मिलेगा लाभ   फैसले पर चौतरफा सियासी चुप्पी  बताया जा रहा राजनीतिक फैसला नई दिल्ली !    यह केंद्र सरकार की राजनीतिक साफगोई है या फिर वोटों की सियासत जिसकी उदारता ने 1984 के सिख दंगों में मारे गए लोगों के पीडि़त परिजनों को एक बड़ी राहत दी है। मोदी सरकार ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों को परिजनों को मुआवजा देने का ऐलान किया है। जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार सिख दंगों में मारे गए 3325 लोगों में से प्रत्येक के नजदीकी परिजन को पांच-पांच लाख रुपए देगी। सिख दंगा पीडि़तों को करीब 30 साल बाद मुआवजा मिलेगा। विदित हो कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगे फैले थे। 31 अक्टूबर को पूर्व प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि है। इंदिरा गांधी की 1984 में उनके अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह राहत सिर्फ पीडि़त सिखों को ही नहीं मिलेगी बल्कि साम्प्रदायिक, आतंकवादी या नक्सली हिंसा पीडि़त नागरिकों को भी इसका लाभ मिलेगा। इन सभी के लिए भी मुआवजे की राशि तीन लाख रुपए से बढ़ाकर पांच लाख रुपए कर दी गई। गृह मंत्रालय के अनुसार, इस सिलसिले में एक फैसला गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक उच्चस्तरीय बैठक के बाद लिया, जिसमें साम्प्रदायिक, आतंकवादी या नक्सली हिंसा के पीडि़त नागरिकों को मुआवजा देने के मुद्दे पर चर्चा हुई। इस तरह की हिंसा में मरने वाले या स्थाई रूप से अशक्त होने वाले नागरिकों को 2008 से तीन लाख रुपया अदा किया जाता था। सरकार के इस फैसले से पीडि़तों को बड़ी राहत मिली है लेकिन सरकार के इस फैसले को सियासी दृष्टिï से भी देखा जा रहा है। 

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