• जब दिल्ली पर बरपा था मौत का कहर

    नई दिल्ली ! पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को हत्या होने के बाद दिल्ली में सिख विरोधी हिंसा का वीभत्स रूप देखने को मिला था। हम दक्षिण दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के समीप थे, जहां पूर्व प्रधानमंत्री को दो अंगरक्षकों द्वारा गोली मार दिए जाने के बाद मृत घोषित कर दिया गया था। ...

    नई दिल्ली !  पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को हत्या होने के बाद दिल्ली में सिख विरोधी हिंसा का वीभत्स रूप देखने को मिला था। हम दक्षिण दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के समीप थे, जहां पूर्व प्रधानमंत्री को दो अंगरक्षकों द्वारा गोली मार दिए जाने के बाद मृत घोषित कर दिया गया था। अचानक कांग्रेस समर्थकों की एक उग्र भीड़ ने दिल्ली में निर्दोष सिखों और उनकी संपत्तियों के खिलाफ तांडव करना शुरू कर दिया। एम्स के पास ही एक संवाददाता जगप्रीत लूथड़ा और मैंने एक सिख की एक बस को जलता देखा। वहीं दिवई नगर बाजार में एक सिख की दुकान लूट ली गई।भीड़ चिल्ल रही थी, "मारो सिखों को!" आसपास कहीं पुलिस नहीं थी। हालांकि बड़ी संख्या में पुलिस एम्स परिसर में खड़ी थी। भीड़ को रोकने की किसी ने कोशिश नहीं की। जगप्रीत ने अपनी सिख पहचान छुपाने के लिए तुरंत अपना कड़ा खोलकर उसे पर्स में छुपा लिया।1947 के बाद पहली बार एक सिख होने का मतलब मौत को निमंत्रण देना हो गया था।चूंकि देश का ध्यान इंदिरा गांकी हत्या पर टिका था, इसलिए किसी ने यह सुध लेने की कोशिश नहीं की कि सिखों पर क्या जुल्म हो रहे हैं। तब सूचना क्रांति का युग नहीं था।एक नवंबर को दिन होगा, जब मैं अपने यूएनआई सहकर्मियों दीपांकर डे सरकार और राजीव पांडे के साथ रिपोर्ट की तलाश में घूम रहे थे। अचानक हमारी मुलाकात दिल्ली छावनी रेलवे स्टेशन के पास एक सैन्य अधिकारी से हो गई। वह पटरी किनारे एक मृत सिख के पास खड़ा था। अधिकारी ने हमसे कहा कि यदि हम स्थिति को वाकई जानना चाहते हैं तो दिल्ली पुलिस के शवगृह जाएं।अधिकारी की सलाह पर जैसे ही हम सब्जी मंडी में स्थित दिल्ली पुलिस के शवगृह में गए, हमने एक व्यक्ति को एक ठेले पर ढेर सारे शव लादे हुए लाते देखा। कई शवों के शरीर के कई हिस्से कटे हुए थे। ठेले वाले ने बाद में बताया कि वह इन शवों को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से लाया था। वहीं पास में शहर के विभिन्न हिस्सों में मारे गए सिखों के भी कई शव पड़े थे। जिन्हें मारे जाते समय पता नहीं था कि उनका कसूर क्या था।तब तक हमने शायद 172 या 173 शव गिने थे।तभी एक पुलिस अधिकारी ने धीरे से एक दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुए हमसे कहा, "वहां जाकर देखो।"जब हमने वहां जाकर देखा तो स्तब्ध रह गए। टीले की तरह एक दूसरे पर शव पड़े हुए थे। हम गिन नहीं पा रहे थे। उनमें कई पुरुषों के तथा कई महिलाओं के शव थे। सभी खून से लथपथ थे। किसी शव के शरीर पर कपड़े थे, तो किसी पर नहीं थे। चारो तरफ मौत की गंध पसरी हुई थी।शवगृहके एक डॉक्टर ने हमें आंकड़े दिए।करीब एक घंटे बाद जब हमने यूएनआई में अपनी रिपोर्ट दर्ज की, तो पहली बार दुनिया को पता चला कि दिल्ली में सैकड़ों की संख्या में हत्या हुई है।31 अक्टूबर की शाम के बाद पूरे तीन दिन मौत का यह तमाशा चलता रहा। वीवीआईपी क्षेत्र को छोड़ दिया जाए, तो हत्यारों ने किसी भी क्षेत्र को नहीं बख्शा। लोगों को रेलगाड़ियों, बसों और कारों से खींचकर बाहर किया गया और उन्हें मारा गया। सिखों के दुकान, होटल लूट लिए गए और जला दिए गए।उसी दौरान लंदन में इंदिरा गांधी की हत्या पर जश्न मनाते सिखों की प्रकाशित हुए एक तस्वीर ने स्थिति को और भी गंभीर बना दिया।जब तक मौत का तमाशा सन्नाटे में तब्दील हुई, शहर का काफी नुकसान हो चुका था। असांप्रदायिक मूल्यों का दावा करने वाले कांग्रेस की छवि तार-तार हो गई थी। यह घटना पूरे देश की इज्जत पर एक शर्मनाक धब्बे के रूप में जड़ गया था।

अपनी राय दें