नई दिल्ली ! यदि विदेशी कंपनियां अपनी इकाई स्थापित करती हैं तो उनके लिए भारत में कोयला खनन करने का रास्ता खुल सकता है। मोदी सरकार ने कोयले के व्यावसायिक खनन के द्वार निजी कंपनियों के लिए खोल दिए हैं जो विषम परिस्थितियों से गुजर रहे देश के बिजली उद्योग के लिए बहुत बड़ी राहत है। आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिए भी बिजली की आपूर्ति में इससे मदद मिलेगी। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द 214 कोयला ब्लाकों को दोबारा आबंटित करने के उद्देश्य से सरकार ने अध्यादेश जारी किया है। कोयला मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी 27 पृष्ठों के इस अध्यादेश में आबंटन की पूरी प्रक्रिया स्पष्ट की गई है। इसमें कहा गया है कि भारत में बनाई गई किसी भी कंपनी को उसके स्वयं के उपभोग के लिए या बिक्री के लिए कोयला खनन की अनुमति दी जा सकती है जिसकी पिछले 42 वर्षों से प्रतिबंधित है। हालांकि इसमें विदेशी कंपनियों को खनन करने की अनुमति दिए जाने के संबंध में प्रत्यक्ष तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है। इस बीच मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि बिजली, सीमेंट और इस्पात संयंत्रों को निजी उपयोग के लिए कोयला ब्लाकों की नीलामी प्रक्रिया पूरी होने के बाद विदेशी कंपनियों को कोयला खनन क्षेत्र में आने की अनुमति दी जा सकती है। सरकार अभी इस पर विचार कर रही है। सरकार यदि विदेशी कंपनियों को यह अनुमति देती है तो रियो टिंटो बीएचपी बिलिटन और अमरीकी पीबाडी भारत में खनन में रुचि ले सकती है। उधर विश्लेषकों का कहना है कि भारी पूंजी निवेश करने में सक्षम विदेशी कंपनियों को कोयला खनन की अनुमति देना सरकार के हित में रहेगा। उन्नत और नवीन प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाली विदेशी कंपनियां खनन भी जल्द शुरू कर सकती हैं। दुनिया के पांचवें सबसे बड़े कोयला भंडार वाले भारत में अधिकांश बिजली उत्पादन कोयला आधारित है। विदेशी कंपनियों के लिए खनन को खोले जाने से न सिर्फ इस क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी कोल इंडिया पर उत्पादन बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा बल्कि देश में इसका उत्पादन भी बढ़ेगा और आयातित कोयले पर निर्भरता कम होगी। विश्लेषकों का कहना है कि सरकार ने यह पहला कदम बढ़ाया है जो बहुत महत्वपूर्ण है। सरकार का पूरा ध्यान घरेलू कोयले पर है क्योंकि वह प्रतिवर्ष 20 अरब डालर के कोयला आयात बिल को कम करना चाहती है ताकि विदेशी मुद्रा बचाई जा सके।