नयी दिल्ली ! सरकार ने उच्चतम न्यायालय द्वारा आवंटन रद्द किये गये 214 कोयला ब्लाको को दोबारा आवंटित करने के उद्देश्य से अध्यादेश लाने का निर्णय लिया है। इन ब्लाको का आवंटन ई नीलामी के जरिये किया जायेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आज यहां हुयी मंत्रिमंडल की बैठक की जानकारी देते हुये वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कोयला बिजली एवं नवीनकरण ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल की मौजूदगी में संवाददाताों को बताया कि रद्द किये गये ब्लाको के आवंटन में सरकारी कंपनियों को प्राथमिकता दी जायेगी और आवंटन की प्रक्रिया तीन से चार महीने में पूरी कर ली जायेगी। श्री जेटली ने कहा कि इस आवंटन में सरकारी बिजली कंपनियों जैसे एनटीपीसी और राज्यों के बिजली निगमो को वरीयता दी जायेगी लेकिन सीमेंट इस्पात और बिजली क्षेत्र की निजी कंपनियों के लिए एक पूल बनाया जायेगा और ई नीलामी के जरिये उन्हें खदानों को आवंटन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि कोयला ब्लाको का आवंटन वास्तविक उपभोक्ता कंपनियों को किया जायेगा।श्री जेटली ने बताया कि नीलामी के लिए आधार मूल्य एक समिति तय करेगी और इससे प्राप्त राजस्व संबधित राज्यों को दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि कोयला भंडार झारखंड. पश्चिम बंगाल. ओडिशा. छत्तीसगढ़ में है जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।स राजस्व से उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और लाखों लोंगो को रोजगार मिलेगा। इसके साथ ही इन ब्लाको में फंसे बैंको के धन को निकालने में मदद मिलेगी। इससे विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इससे कोयला खदानो का राष्ट्रीयकरण की व्यवस्था बनी रहेगी और वर्ष 1973 का कोयला राष्ट्रीयकरण अधिनियम मूल रूप में मौजूद रहेगा। कोल इंडिया के हितों की पूरी रक्षा की जायेगी। वित्त मंत्री ने कहा कि प्रतिवर्ष 20 अरब डालर के कोयले का आयात किया जा रहा है और इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी। गौरतलब है कि शीर्षा अदालत ने जुलाई 1993 से 2010 तक आवंटित किये गए 218 कोयला ब्लॉकों में से 214 का आवंटन गत 24 सितम्बर को निरस्त कर दिया था. लेकिन इसने इस फैसले के परिणामस्वरूप देश के ऊर्जा उत्पादन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इन कोयला ब्लॉकों को छह माह तक उत्पादन जारी रखने की अनुमति प्रदान कर दी थी। न्यायालय ने पेशे वकील मनोहर लाल शर्मा और गैर. सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिकाों पर गत 25 अगस्त को एक महत्वपूर्ण निर्णय में जुलाई 1993 से 2010 तक के सभी 218 कोयला ब्लॉकों के आवंटन को गैरकानूनी करार दिया था. लेकिन ऊर्जा के क्षेत्र में कोयले की उपयोगिता को ध्यान में रखकर इन ब्लॉकों के भविष्य पर सुनवाई करने पर सहमति जता दी थी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने 2012 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि 2005 से 2009 के बीच मनमाने तरीके से आवंटित किये गए कोयला ब्लॉकों के कारण देश को एक लाख 86 हजार करोड़ रुपये के राजस्व की हानि हुई है। इसके बाद इस मामले ने काफी तूल पकड़ लिया था और विपक्षी दलों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग की थी। उल्लेखनीय है कि नरसिंह राव सरकार के कार्यकाल (1993..96) के दौरान पांच. देवगौड़ा सरकार (1996..98) में चार. वाजपेयी सरकार (1998..2004) के दौरान 30 तथा मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 165 कोयला ब्लॉक आवंटित किये गए थे। इनमें 12 अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट तथा दो लिक्विड ब्लॉक शामिल नहीं हैं। इस बीच मामले की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इस सिलसिले में अब तक 36 प्राथमिकियां दर्ज की हैं। सबसे ताजा प्राथमिकी जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड एवं अज्ञात सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कल दायर की गई है। यह प्राथमिकी छत्तीसगढ़ में गारे पाल्मा. चतुर्थ(एक) कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़ा है।