• कई धुरंधरों के हिस्से आई हार तो कइयों ने बचाया अपना किला

    चंडीगढ़ ! हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार मतदाताओं ने राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवारों को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी। विरासत की राजनीति करने वाले कुछ लोग हारे, तो कुछ ने विजय का परचम लहराया। पूर्ण बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार बनाने की तैयारी कर रही है। जिन प्रमुख मुद्दों पर भाजपा ने हरियाणा में चुनाव लड़ा था, उसमें से एक यह भी था कि यहां विरासत की राजनीति को खत्म किया जाए।...

    चंडीगढ़ !   हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार मतदाताओं ने राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवारों को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी। विरासत की राजनीति करने वाले कुछ लोग हारे, तो कुछ ने विजय का परचम लहराया। पूर्ण बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार बनाने की तैयारी कर रही है। जिन प्रमुख मुद्दों पर भाजपा ने हरियाणा में चुनाव लड़ा था, उसमें से एक यह भी था कि यहां विरासत की राजनीति को खत्म किया जाए।भले ही भाजपा को जनता ने यहां बहुमत सौंप दिया हो, लेकिन राजनीतिक परिवारों से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवारों को भी उन्होंने पूरी तरह मायूस नहीं किया। कुल मिलाकर उनके लिए चुनाव परिणाम मिला-जुला रहा। वर्ष 2005 में सत्ता से बाहर होने के बाद फिर से वापसी के प्रयास में लगी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को फिर पांच वर्षों तक विपक्ष में बैठना पड़ेगा। 2009 में 31 सीटें जीतने वाली इनेलो 19 सीटों पर सिमटकर रह गई है। पूर्व मुख्यमंत्री बंसी लाल के परिवार से उनके बेटे रणबीर सिंह महेंद्र बधरा विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। लेकिन बंसी लाल की पुत्रवधू किरण चौधरी आराम से चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की बहन वंदना शर्मा कड़े मुकाबले में बेहद कम मतों के अंतर से साफीदोन सीट से चुनाव हार गई हैं। विवादित पूर्व मंत्री और चुनाव के पहले हरियाणा लोकहित पार्टी बनाने वाले गोपाल कांडा तथा उनके भाई क्रमश: सिरसा तथा रानिया से चुनाव हार गए हैं। चंडीगढ़ के एक राजनीतिक परिवार से संबंध रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा अंबाला सिटी सीट से चुनाव हार गए हैं। शर्मा की पत्नी शक्ति रानी भी कालका विधानसभा सीट से चुनाव में पराजित हो गई हैं।

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