• हिंदी में पेश हो सकते हैं विधेयक!

    नई दिल्ली ! संसद में पेश होने वाले सभी विधेयकों की भाषा अब तक अंग्रेजी रही है, लेकिन जल्द ही हिंदी भाषा (देवनागरी) लिपी को भी यह दर्जा हासिल हो सकता है। सरकार हिंदी में भी विधेयक पेश करने की संभावना पर गंभीरता से विचार कर रही है। हिंदी का उपयोग करने के पीछे उच्चारण और वर्तनी संबंधी त्रुटि कम करना सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है। यदि सरकार की कोशिश सफल रही हो अंग्रेजी के साथ ही साथ हिंदी में भी विधेयक पेश किए जा सकेंगे। केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल उरांव ने अपने मंत्रालय के एक सौ दिन के कामकाज का ब्योरा पेश करते हुए कहा, अनुसूचित जनजाति की सूची में कुछ ऐसे लोग आरक्षण लाभ ले रहे हैं, जो इस वर्ग से संबंधित नहीं है। उन्होंने कहा,ऐसा वर्तनी या उच्चारण संबंधी दोष के कारण हो रहा है। ...

    हिंदी के कई अलग-अलग शब्दों का अंग्रेजी में एक ही उच्चारण होने से कई ऐसी जातियां आरक्षण का लाभ ले रही हैं जो इसकी अधिकारी नहीं हैं, यह उच्चरण संबंधी दोष के कारण हो रहा है : जुएल उरावं, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रीअंग्रेजी व्याकरण की परेशानी के विकल्प तलाशने में जुटी सरकारनई दिल्ली !  संसद में पेश होने वाले सभी विधेयकों की भाषा अब तक अंग्रेजी रही है, लेकिन जल्द ही हिंदी भाषा (देवनागरी) लिपी को भी यह दर्जा हासिल हो सकता है। सरकार हिंदी में भी विधेयक पेश करने की संभावना पर गंभीरता से विचार कर रही है। हिंदी का उपयोग करने के पीछे उच्चारण और वर्तनी संबंधी त्रुटि कम करना सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है। यदि सरकार की कोशिश सफल रही हो अंग्रेजी के साथ ही साथ हिंदी में भी विधेयक पेश किए जा सकेंगे।केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल उरांव ने अपने मंत्रालय के एक सौ दिन के कामकाज का ब्योरा पेश करते हुए कहा, अनुसूचित जनजाति की सूची में कुछ ऐसे लोग आरक्षण लाभ ले रहे हैं, जो इस वर्ग से संबंधित नहीं है। उन्होंने कहा,ऐसा वर्तनी या उच्चारण संबंधी दोष के कारण हो रहा है। उन्होंने कहा, कुछ जातियों के नाम अंग्रेजी में एक जैसी वर्तनी से लिखे जाते हैं लेकिन वास्तव में देवनागरी लिपि में उनकी वर्तनी अलग है और हिंदी भाषा में उनका उच्चारण भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। यह दोष अंग्रेजी को आधार भाषा मानने के कारण होता है। संसद में बनाए गए सभी कानूनों की आधार भाषा अंग्रेजी होती है। उन्होंने कहा, सरकार हिंदी या देवनागरी लिपि में भी विधेयक पेश करने की संभावना पर विचार कर रही है। उन्होंने बताया,  अनुसूचित जाति पर बने कार्यबल ने सिफारिश की है कि जातियों के नाम को हिन्दी में मानक माना जाना चाहिए। जातियों के नाम अंग्रेजी में मानक माने से त्रुटि की आशंका बढ़ जाती है।ज्ञात हो, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 120 के अनुसार संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है, लेकिन लोकसभाध्यक्ष या राज्य सभा का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकता है। लेकिन सदन में पेश होने वाले विधायकों को लेकर कोई छूट नहीं दी गई थी, ऐसे में सदन में पेश होने वाले सभी विधेयक अंग्रेजी में ही पेश किए जाते हैं। यह व्यवस्था संविधान सभा ने शुरू में 15 वर्षों के लिए की थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ाते हुए अनिश्चितकाल तक के लिए कर लिया गया। लेकिन यदि सरकार की योजना परवान चढ़ी तो भविष्य में संसद में भी हिंदी में विधेयक पेश किए जा सकेंगे।

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